29 April 2009

नेतागिरी का इलेक्शन लोचा

नेता बन गए पर कुछ खास नाम नहीं किया, तो चलो मंच पर और बक दो कुछ भी उल्टा-पुल्टा। फिर देखो कमाल। चुनावी दंगल में मंगल करवाना चाहते हो, तो कोई न कोई जुगत बैठानी ही पड़ेगी। अब लोग-लुगाई कौनसा 'उनचास ओ' को जानते ही हैं, तो मचाओ धमाल।
हम लाएं हैं तूफान से कश्ती निकालके... इस देश को रखना बच्चो संभालके। रेडियो पर गाना बज रहा था। बहुत ही पुराना गीत है। बचपन से सुनते आ रहे हैं। अब क्या करें? हमने तो बहुत ही कोशिश की थी, देश बचाने की। पर हमारे भीडू लोग चाहते ही नहीं। उनका तो एक ही नारा है... अपना काम बनता और भाड़ में जाए जनता। भीड़ू कौन? अरे वो ही भीडू लोग... जो आ रहे हैं दरवज्जों पे, आपके और हमारे माथा ढोकने। हम कोई कम थोड़े ही ना हैं। डंडे को तेल पिलाकर बैठे हैं चौक में। आने दो करमजले नेताओं को। पिछली बार धोखा दिया था ना ससुर के नातियों ने। अब की बार तो पूरी लिस्ट ही बना ली है हमने भी। कब-कब और कैसे-कैसे खून चूंसा था हमारा। सारा हिसाब करेंगे। कहा था कि शहर को स्वर्ग बना देंगे और अब देखते हैं, तो पता लगता है कि मोहल्ला तक गंदगी के मारे नरक बन चुका है। नल में पांच साल पहले भी पानी नहीं आता था और आज भी बेचारा प्यासा ही है। सड़क पे उस वक्त दो गड्ढे थे और आज तो गड्ढों में ढूंढऩा पड़ता है कि आखिर सड़क है कहां। अब आप ही बताओ कि वोट दें, तो किसे दें। सब एक से बढ़कर एक धूर्त। कोई चार सौ बीसी के चलते जेल में बंद हुआ है, तो किसी के लिए खून-खराबा रोज की बात। कोई मुद्दे की बात को करते नहीं। चूं-चपड़ कितनी ही करा लो। अपने राहुल बाबा थोड़ा सा चमकने लगे, तो ससुरी बीजीपे ने अपने 'गांधी' को मोर्चा संभला दिया। बको मंच पर कुछ भी। लूट-खसूट लो सारे वोटों को। हम गरीबन के पास है ही क्या संपदा। इकलौता वोट ही तो है। ऊ भी पांच बरस में एक ही बार तो मौका मिले है। वो भी हथिया लो भई। 'काट दूंगा' अरे मुन्नालाल, राजनीति में मार-काट करने आए थे क्या? मार-काट करनी है, तो बन जाओ मुंबई के डॉन। फिर कौन रोकेगा तुम्हें? अपने पीएम इन वेटिंग आडवाणीजी को तो वे पोस्टर बॉय ही नजर आने लगा है उसमें। न जाने कब से प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले बैठे थे। क्या मुद्दा बनाएं केंद्र की सरकार को हटाने के लिए। अब लगता है कि वापस पुराने रास्ते पर लौट ही आते हैं। अपना ही बच्चा है, वरुण। अब तक गांधियों से डरते थे, अब खुशी है कि एक 'गांधी' हमारे पास भी है। एक बात और। मुए दूर से ही अलग-अलग लगते हैं। पास जाके देखो, तो एक ही थाली के चट्टे-बट्टे। कौन सोच सकता था कि जो कल्याण सिंह कल तक बीजेपी का तारणहार दिखता था, वो आज सपा को पूजने लगगे। जो उमा भारती आडवाणी का दामन छोड़कर चली गई, वही आज बीजेएसपी से वापस बीजेपी-बीजेपी की रट लगाने लगेगी।अब तो संजूबाबा की भी फूंक निकल गई। अरे, वे खुद ही 'मामू' बन गए। अब क्या करें? ये इलेक्शन का लोचा अच्छे-अच्छे नहीं संभाल पाते, तो संजूबाबा कौनसा तीर मारते। महाराष्ट्र के सबसे बड़े गुंडे को तो आप जानते हैं ना। अरे बाल ठाकरे और कौन? आप कहेगा क्यों सबके सामने उसे गुंडा कह रहे हो? तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? अरे ये गुंडे नहीं, तो क्या हैं? बेचारी अंजलि बाघमारे। वही जो अजमल कसाब का केस लड़ने वाली थी। बोल दिया ठाकरे के गुंड़ों ने हमला। पर अंजलि कम थोड़े ही ना हैं। हिम्मत दिखाई है और हो गई हैं तैयार केस लड़ने को। ये सरेआम गुंडगर्दी नहीं तो और क्या है? टिकट देने में भी ये नेता कौनसी कसर रख रहे हैं? अभी अपन को रामप्यारे जन प्रतिनिधि अधिनियम पढ़ा रहे थे। बोले ये उनचास ओ भी कमाल है। हमने कहा ये क्या बला है? बोला गुस्सा निकालने का नया तरीका है भई। हमने पूछा- क्या होता है भई इसमें। तो बोले, भैया ये छोटी-सी धारा नेताओं की धार बदल सकती है। अगर वोटिंग मशीन में कोई उम्मीदवार पसंद ना आवै, तो नया कॉलम 'कोई पसंद नहीं' को दबा दो। यही है 'उनचास ओ'। ये तो कमाल है भई। चलो मन की भड़ास तो निकाल लेंगे। एक तो हमारे वो दोस्त हैं, जो वोट देने ही नहीं जाएंगे। अरे हम तो जाएंगे वोट देने, पर अगर कोई उम्मीदवार मन को नहीं भाया, तो 'उनचास ओ' का सहारा लेंगे जी। मेरा कहा मानो और आप भी आ जाओ आगे। इन नेताओं को छोड़ना मत। अगर अबके बख्श दिया, तो पूरे पांच साल में दर्शन होंगे। आगे आपकी मर्जी।
-आशीष जैन

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1 comment:

  1. आशीष .. बहुत अच्छा लिखा तुमने.. ब्लॉग पर 100 पोस्ट पूरी होने की बधाई..

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