08 September 2008

कलम के बूते


कलम के बूते

आइए जानते हैं आजादी के बारे में कुछ खास लोगों की राय।


गुलाम का न दीन है, न धर्म है, गुलाम के रहीम हैं न राम हैं।

- देवराज दिनेश (भारत मां की लोरी)


क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए जिंदा रहूं? नहीं, ऐसी जिंदगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।

- प्रेमचंद (गुप्तधन)


पिंजरा तो सोने का होने पर भी पिंजरा ही रहेगा।

- रांगेय राघव (कल्पना)


जंगल में रहने वाले पक्षी की अपेक्षा पिंजड़े का पक्षी ही अधिक फड़फड़ाता है।

- शरतचंद्र (बड़ी बहन)


जितने भी बंधन है, वे सब अबलों के ही अर्थ,बंधन बंधन ही है, तोड़ो यदि तुम सबल समर्थ।

- मैथिलीशरण गुप्त (द्वापर)


विचार और कार्य की स्वतंत्रता ही जीवन, उन्नति और कुशल-क्षेम का एकमेव साधन है।

- विवेकानंद


जो स्वतंत्र है, सारी प्रकृति उसकी अभ्यर्थना करती है, संपूर्ण विश्व उसके आगे सिर झुकाता है।

-स्वामी रामतीर्थ


स्वाधीनता सद् गुणों को जगाती है, पराधीनता दुगुर्णों को।

-प्रेमचंद(कायाकल्प)


स्वतंत्रता का मर्म समता है। विषमता में स्वतंत्रता भंग हो जाती है।

डॉ. रामानंद तिवारी


स्वतंत्रता अनुभव करना ही जीवन है। पराभूत सजीव होकर भी मृत है।

- यशपाल (दिव्या)


बेड़ियों में बंद राजा होने से तो आसमान का स्वतंत्र कबूतर होना ज्यादा अच्छा है।

- चंद्रप्रभ (प्याले में तूफान)


आजादी, सुख-समृद्धि, प्रेम, आशा और विश्वास ही भोर है।

- रामदरश मिश्र (जल टूटता हुआ)

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