30 December 2009

2010 की गजब गर्मी-बरसात

नया साल हो सकता है, अब तक का सबसे गर्म साल।
ब्रिटेन के मौसम विभाग की बात पर यकीन करें, तो 2010 में औसत वैश्विक तापमान नई ऊंचाइयों को छू सकता है। इसके पीछे वे अलनीनो का हाथ बताते हैं। अलनीनो मौसम संबंधी परिस्थिति है, जिसकी वजह से प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 2010 में 1998 के सबसे गर्म साल का रिकॉर्ड टूट सकता है। गौरतलब है कि अभी तक 1998 दुनिया में सबसे गर्म साल रहा था।

अब नए शोध बता रहे हैं कि 1860 से अब तक सबसे ज्यादा तापमान 2010 में दर्ज किया जा सकता है। उनके मुताबिक औसत तापमान 0.6 डिग्री तक बढऩे की संभावना है। हाल ही कोपेनगेहन में संपन्न हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भी इस शोध को पेश किया गया था। इसके साथ ही एक मजेदार बात यह भी है कि जहां साल 2010 के सबसे गर्म साल होने की संभावना जताई जा रही है, वहीं यह साल दुनिया का सबसे ज्यादा बरसात वाला साल भी हो सकता है क्योंकि गर्मी से ज्यादा आद्र्रता पैदा होगी, जिसकी वजह से बरसात भी ज्यादा होगी ।

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कितने-कितने नए साल!

हमारे देश में हर राज्य और समुदाय के लोग अपना-अपना नया साल मनाते हैं। एक नजर।

-हिंदुओं का नया साल 'नव संवत्सर' चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा में पहले नवरात्र से शुरू होता है।
-मुसलमानों का नया साल 'हिजरी' मोहर्रम महीने की पहली तारीख से शुरू होता है।
-बहाई धर्म का नया साल 'नवरोज' 21 मार्च से शुरू होता है।
-जैन धर्म का नया साल 'वीर निर्वाण संवत' दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है।
-पंजाबी नया साल 'बैसाखी' 13 अप्रैल को मनाया जाता है।
-सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार नया साल 'होला मोहल्ला' 14 मार्च को होता है।
-तमिलनाडु और केरल में नया साल 'विशु' 13 और 14 अप्रेल को मनाया जाता है।
-कर्नाटक में नया साल 'उगाड़ी' चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है।

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क्या साल है भाई!

साल नया आने वाला है, पर पुरानी आदत बदली नहीं है। नया कै लेंडर हाथ में आया नहीं कि छुट्टियों की लिस्ट बनाने लगे। कब किस दिन क्या त्योहार है, अभी से नोट कर रहे हैं। एक नजर फरमाइएगा-

26 जनवरी- रविवार
होली- रविवार
15 अगस्त- रविवार
दशहरा- रविवार
दीपावली- रविवार
चौंक गए ना। जनाब इस साल सारे बड़े उत्सव और त्योहार संडे को हैं, तो मारी गई न आपकी बेशकीमती छुट्टियां। क्या कहा, मजा नहीं आया? चलिए, जनाब काम करिए, कंपनी बोनस दे सकती है।

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इस साल को मैं क्या नाम दूं?

जब नई सदी आने वाली थी, तो दुनिया ने साल 2000 को नया नाम दिया था- वाई टू के। अब आने वाले साल 2010 को भी स्टाइलिश बनाने की कोशिश की जा रही है। इंटरनेशनल कार कंपनियां 2010 को क्रिकेट के मिनी संस्करण ट्वेंटी-ट्वेंटी की तर्ज पर ट्वेंटी टेन कहकर विज्ञापन प्रसारित कर रही हैं।

मीडिया से जुड़े लोगों का मानना है कि ट्वेंटी टेन में एक नयापन है और यह लोगों की जुबान पर जल्द ही चढ़ जाएगा। वहीं कुछ का मानना है कि टू थाउजेंड टेन भी बुरा नहीं है। हिंदी भाषी लोग भी 'बीस-दस' और दो हजार दस में से एक को चुनने के बारे में सोच रहे हैं। अब आप तय कर लें कि 2010 को आप क्या कहकर पुकारेंगे?

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पर्सनेलिटी मायने रखती है

नए साल पर आप चाहते हैं कि आप सब जगह छा जाएं, तो गौर करें पर्सनेलिटी से जुड़ी इन बातों पर।

1. बॉडी लैंग्वेज- पर्सनेलिटी निखारना चाहते हैं, तो सबसे जरूरी है बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान देना। अगर आप किसी के सामने हाथ बांधकर बैठें, तो यह आपकी असहमति दर्शाता है। पैरों को एक के ऊपर एक रखने से भी बचें। बातचीत करते समय सामने वाले व्यक्ति से आई कॉन्टेक्ट रखें। चेहरे के हावभाव और हाथों की मुद्राओं का भी ध्यान रखें।

2. ड्रेसिंग सेंस- परिधान पर्सनेलिटी का अहम हिस्सा होते हैं। मौके के हिसाब से कपड़े पहनें। शादी और पार्टी में तड़क-भड़क वाले कपड़े पहन सकते हैं, पर ऑफिस में फॉर्मल ड्रेस ही पहनें। कपड़े चाहे ब्रॉन्डेड न हों, पर साफ-सुथरे और प्रेस किए होने चाहिए। पैंट इतनी लंबी जरूर हो कि मोजे नजर न आएं। शर्ट के ऊपर के बटन खोलकर रखना भी आपकी गलत छवि पेश करता है।

3. वे ऑफ टॉकिंग- अपनी बातचीत में किसी को नीचा दिखाने से बचें। इसकी बजाय लोगों की छोटी-छोटी बातों पर तारीफ करना सीखें। बोलने के बेहतर तरीके में सबसे जरूरी है ध्यान से औरों की बातें सुनना। किसी की बात को बीच में न काटें। इससे आपकी पर्सनेलिटी का गलत असर पड़ता है। शब्दों का सही उच्चारण करें और तकियाकलाम से बचें।

4. हेयर स्टाइल- हेयर स्टाइल आपकी पर्सनेलिटी को उभार सकती है। बालों की सही देखरेख करें। जल्दी-जल्दी बालों की लुकिंग चेंज न करें। बालों की किसी अच्छे तेल से नियमित मालिश जरूर करें। ड्रेंडफ और बाल टूटने की समस्या पर समय रहते ध्यान जरूर दें। लोगों के सामने बालों में ज्यादा हाथ न फेरें।

5. शूज- किसी इंसान की पर्सनेलिटी का पता सबसे पहले शूज से ही चलता है। अगर आपने शूज पॉलिश नहीं किए हैं, तो इससे गलत इम्प्रेशन जाता है। स्पोर्टी शूज और लैदर शूज को भी जगह के हिसाब से ही पहनना चाहिए। गल्र्स हर तरह के शूज ट्राई करती हैं, पर अपने शरीर और जरूरत के मुताबिक ही शूज चुुनने चाहिए।

6. एटीट्यूड- आपका नजरिया हमेशा पॉजिटिव होना चाहिए। इससे लोगों के सामने अपनी अच्छी छवि बनेगी। लोग आपसे मुलाकात का मौका तलाशेंगे। पर ध्यान रखें, कभी भी अपने एटीट्यूड को लोगों पर थोपने की कोशिश न करें। एटीट्यूड में लोगों की मदद, सही मौका तलाशना और लक्ष्य पर नजर रखना भी शामिल होता है।

7. वॉलेट या पर्स- आपका पर्स आपकी जरूरत के मुताबिक होना चाहिए। ज्यादा महंगा या दिखावटी पर्स अपनी जेब में न रखें। पर्स ऐसा होना चाहिए, जिसमें नकदी के अलावा छोटे-मोटे सामान रखने की जगह मौजूद हो।

8. गॉगल्स- आजकल गॉगल्स फैशन में हैं। पर आपको हमेशा अपने चेहरे के आकार के हिसाब से ही गॉगल्स खरीदने चाहिए। ये आपकी पर्सनेलिटी को उभारते हैं। अगर आपकी आंखों में कुछ खराबी है, तो फैशनेबल चश्मों से बचना चाहिए। सनग्लासेज और नंबर ग्लासेज को अपनी जरूरत के हिसाब से पहनना चाहिए।

9. एक्सेसरीज- आप किस तरह की एक्सेसरीज इस्तेमाल करते हैं, इससे भी आपकी पर्सनेलिटी का पता लगता है। मोबाइल फोन सस्ता हो सकता है, पर अपनी पसंद के फीचर्स के साथ आप सहज हैं, तो ये भी आपकी पर्सनेलिटी को चमका सकता है। इसी तरह आपकी कलाई पर चमकती सुंदर घड़ी भी दूसरों पर आपका प्रभाव डालेगी।

10. टाइम सेविंग- अगर आप काम के समय पर गप्प हांकते हैं, तो लोगों पर आपकी पर्सनेलिटी का गलत इम्प्रैशन पड़ता है। काम के समय और मस्ती के समय मस्ती, यही आपका जीवनमंत्र होना चाहिए। टाइम के मुताबिक चलने से लोग आपकी कद्र करेंगे।

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23 December 2009

बाइबिल यानी आधुनिक मैनेजमेंट बुक


प्रभु यीशु धरा पर आए और पूरी दुनिया में प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश दिया। बाइबिल में उन्होंने जो संदेश हमारे लिए छोड़े हैं, वे बड़ा गहरा अर्थ रखते हैं। जिंदगी को खुशनुमा और सफल बनाने की आधुनिक मैनेजमेंट बुक है बाइबिल। इसमें कही गई बातों को आज के संदर्भ में देखा जाए, तो पता लगेगा कि सकारात्मक चिंतन की बैस्ट बुक है बाइबिल।

खुद की पहचान करें
ईश्वर ने हम सबको कोई न कोई काम अच्छी तरह से करने की योग्यता दी है। (रोमन्स, 12:6, टी.एल.बी)
हर्मन मेलविल कहते हैं, 'नकल करके सफल होने से ज्यादा अच्छा यह है कि मौलिक बनकर असफल हो जाएं।' सही बात है कि जब हम किसी दूसरे जैसा बनने की कोशिश करते हैं, तो हमारे दूसरे स्थान पर ही रहते हैं। अगर हमें आदर्श स्थिति पर पहुंचना है, तो खुद अपना रास्ता बनाना होगा। आम लोग लीक से हटकर चलने की बजाय भीड़ के साथ ही चलना पसंद करते हैं। प्रभु यीशु ने लोगों को दया और प्रेम का संदेश देने का निश्चय किया और वे इसमें सफल ही रहे। सही बात है कि अगर मैं अपने स्वरूप को ही कायम नहीं रख पाऊंगा, तो मेरी पहचान क्या होगी? दोस्तो, ईश्वर ने आपको बनाया है और अगर वह आपसे संतुष्ट है, तो आपको भी संतुष्ट होना चाहिए।

कर्म में यकीन करें
काम करने से अमीरी आती है, बातें करने से गरीबी आती है। (प्रोवब्र्स 14:23, टी.एल.बी)
जॉर्ज वाशिंगटन कार्वर कहते हैं, 'निन्यानवें फीसदी मामलों में वही लोग असफल होते हैं, जिनमें बहाने बनाने की आदत होती है।' हम में से ज्यादातर लोग काम करने की बजाय बहाने बनाते हैं। इस वजह से वे असफल हो जाते हैं। फिल. 2:14-15, टी.एल.बी में लिखा है, 'चाहें आप कोई भी काम करें, शिकायत करने और बहस करने से बचें, ताकि कोई आपके खिलाफ एक शब्द भी न बोल पाए।' ईश्वर के सामने बहाने चलते भी नहीं है। ईश्वर सिर्फ आपके काम को देखता है। अगर आप कर्म करेंगे, तो फल जरूर मिलेगा। जो व्यक्ति काम की बजाय सिर्फ बोलने में यकीन करता है, वह कभी भी ईश्वर का प्रिय नहीं हो सकता। ईश्वर और भाग्य को खुश करने का सबसे अच्छा है- काम करना।

दूसरों की मदद करें
और जो भी आपको एक मील चलने के लिए मजबूर करे, उसके साथ दो मील आगे तक जाएं। (मैथ्यू 5:41)

हमें पाने से पहले देना होता है। जीवन में सफलता का सबसे आसान तरीका है कि आप दूसरों को दें। आपकी की गई मदद आपके पास लौटकर आती है। ईसामसीह का कहना है कि जो व्यक्ति दयालुता के बीज बोता है, उसे लगातार फसल मिलती रहती है। प्रोवब्र्स 11:17 में लिखा है, 'जब आप दयालु होते हैं, तो आपकी आत्मा को पोषण मिलता है। जब आप क्रूर होते हैं, तो यह नष्ट हो जाती है।' दूसरों के लिए आपके बोले प्रशंसा के दो शब्द बहुत मूल्यवान होते हैं। इसमें कुछ भी खर्च नहीं होता है। ईश्वर दयालु और दाता है, उसकी तरह बनें और सबका भला करें। इससे आपकी जिंदगी में पहले से बेहतर होने लगेगी।

आलोचना से न घबराएं
अगर आप उपहास उड़ाने वाले को बाहर निकाल देंगे, तो आप तनाव, लड़ाई और झगड़े से मुक्त हो जाएंगे। (प्रोवब्र्स 22:10, टी.एल.बी.)
डेल कारनेगी ने कहा है, 'कोई भी मूर्ख आलोचना कर सकता है, बुराई कर सकता है और शिकायत कर सकता है और ज्यादातर मूर्ख यही करते हैं।' काम की आलोचना करना उसे करने से हजार गुना ज्यादा आसान काम है। हमें इससे बचना चाहिए। सभी प्रगतिशील लोगों में एक खास बात होती है कि आलोचना उनकी तरफ खिंची चली आती है। ऐसे में घबराना बेकार है। अगर आप कुछ नया करते हैं, तो लोग बातें बनाने लगते हैं। उन्हें लगता है कि यह इंसान कैसे बंधे-बंधाए नियमों को तोड़ सकता है। खुद को बड़ा बनाएं और किसी के आलोचक न बनें और न ही खुद की आलोचना से दुखी हों।

ईष्र्या न करें
आरामदेह नजरिया व्यक्ति के जीवन को लंबा करता है, ईष्र्या इसे कम करती है। (प्रोवब्र्स 14:30, टी.एल.बी.) ईश्वर के हम सब की दौड़ निश्चित कर रखी है। अगर हम दूसरों की गति को परखने लगेंगे, तो हम खुद गिर जाएंगे। चाल्र्स कोल्टन ने कहा है, 'सभी भावनाओं में ईष्र्या सबसे कठोर सेवा करवाती है और सबसे बुरी तनख्वाह देती है।' आपकी जिंदगी बेशकीमती है, इसमें दूसरों के पास मौजूद चीजों की चाहत में बर्बाद नहीं करना चाहिए। ईष्र्या की बजाय जीवन में प्रेम पैदा करना चाहिए। जोश बिलिंग्स ने कहा है, 'प्रेम दूरबीन से देखता है और ईष्र्या माइक्रोस्कोप से देखती है।' ईष्र्या की बजाय जब इंसान दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी खोजने लगता है, तो उसका जीवन सुखद बन जाता है।
धन्यवाद दें
उन सब चीजों के लिए खुश हों, जो ईश्वर आपको देने की योजना बना रहा है। मुश्किलों में धैर्य रखें और हमेशा प्रार्थना करें। (रोमन्स 12:12 टी.एल.बी)
आज के दिन धन्यवाद देने के लिए सौ चीजें खोजें। जीवन में कृतज्ञता का भाव रखने से जीवन सरल बन जाता है। हमें ईश्वर ने खुशियों से भरा जीवन जीने के लिए हर जरूरी चीज दी है। इनका आनंद उठाना सीखें। महत्वपूर्ण चीज यह है कि जो चीजें आपको हासिल हुई हैं, उन्हें आप अपने कर्मों का नतीजा मानते हैं या ईश्वर की नियामतें। ईश्वर की नियामतों के लिए उसे धन्यवाद दें और उससे प्रार्थना करें, 'हे ईश्वर, आपने मुझे इतना कुछ दिया है, मुझे एक चीज और दें- कृतज्ञ हृदय।'
-प्रस्तुति: आशीष जैन

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रुई के फोए पर खेलता तन-मन


आसमान से नर्म बर्फ रूई के फोए की मानिदं गिरी... किसी ने उनके गोले बनकर अपने दोस्तों पर फेंके, तो कुछ उन पर अठखेलियां करने लगे। यहीं से जन्म हुआ स्नो गेम्स का। खेलने वालों के साथ-साथ अगर देखने वालों को भी ठंड में तपिश का सा एहसास होने लगे, तो इसे कहिए बर्फीली खेलों का जादू।

सर्दी का मस्ताना मौसम अपने पूरे शबाब पर है। ठंडी-ठंडी हवा बह रही है। ऐसे में क्यों न कहीं सैर पर निकल चलें। अब कोई बहाना नहीं चलेगा, न सर्दी का और न जुकाम का। भई सर्द माहौल में मौसम का लुत्फ उठाने के साथ-साथ अब स्नो गेम्स की आपका इंतजार कर रहे हैं। कभी सफेद चादर सी जमी बर्फ, तो कभी रुई के गोले की तरफ फुसफुसी बर्फ... इस बर्फ पर आज तरह-तरह के गेम्स खेले जाते हैं। आइस स्केटिंग, स्कीइंग, स्लेडिंग और स्नोमोबाइल तो बानगीभर है। एक बार बर्फीली वादियों में घूमने निकल पडि़ए और बर्फ के हर टुकड़े के साथ स्नो गेम्स में शिरकत लीजिए, आपको लगेगा कि हरे मैदानों की बजाय ठंडे माहौल में खेल की ऊर्जा को महसूस करना वाकई एक नया रोमांचक अनुभव है।
लुत्फ आइस स्केटिंग का
आइस स्केटिंग का सीधा सा मतलब है- आइस स्केट्स की मदद से बर्फ पर चहलकदमी करना। ये आइस स्केट्स एक खास तरह के जूते होते हैं, जिनसे जुड़ी ब्लेड्स आपको बर्फ पर दौडऩे में मदद करती है। कुछ लोगों के लिए आइस स्केटिंग तफरीह का साधन है, तो कुछ के लिए पर्यटन तो कुछ इसकी मदद से तरह-तरह के खेल खेलते हैं। जमी हुई झील या नदी पर स्केटिंग करना का जो मजा है, वह शब्दों में बयां करना बेहद मुश्किल है, दोस्तो।
ऊर्जा से भरे ठंडे खेल
स्केटिंग का सबसे ज्यादा मजा बंडे, आइस हॉकी, रिंगगेट्टे जैसे खेलों में आता है। बर्फ पर खेले जाने वाले इन बेहद रोमांचक खेलों में स्टिक्स की मदद से विपक्षी टीम के खिलाफ गोल दागने होते हैं। बंडे खेल फुटबॉल जैसा ही होता है। हर टीम के पास ग्यारह खिलाड़ी होते हैं, जिनमें से एक खिलाड़ी गोलकीपर होता है। इस खेल में गेंद को विपक्षी टीम के गोलपोस्ट में डालना होता है। 45-45 मिनट के दो हॉफ में चलने वाले इस खेल का रोमांच देखते ही बनता है। आइस हॉकी की बात करें, तो इसमें गेंद की बजाय पुक (डिस्क) होती है। दोनों टीमें इस पुक को विपक्षी टीम के गोलपोस्ट में पहुंचाने की कोशिश करती हैं। इसमें हर टीम में पांच स्केटर्स और एक गोलकीपर होता है। आइस हॉकी का खुमार यूं तो पूरी दुनिया पर चढ़ा हुआ है, पर खासतौर पर यह कनाडा और रूस जैसे देशों में बेहद मशहूर है। वहीं रिंगगेट्टे ज्यादातर महिलाएं खेलती हैं, इसमें एक रबड़ की गेंद को स्टिक की मदद से गोलपोस्ट में पहुंचाया जाता है। इसमें भी हर टीम के पास छह खिलाड़ी होते हैं।
डांस का चांस
स्केटिंग के माहिर लोग झुंड बनाकर प्राकृतिक बर्फ पर लंबी सैर के लिए निकल जाते हैं और इसे जुबान देते हैं, ट्यूर स्केटिंग की। यह चलन स्वीडन, फिनलैंड और नार्वे में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। स्केटिंग की सबसे मशहूर विधा है फिगर या आर्टिस्टिक स्केटिंग। बर्फ के कोर्ट पर जब युगल हाथों में हाथ लेकर चारों ओर घूमते हैं, तो वाकई अद्भुत नजारा होता है। उनका फुटवर्क देखकर उंगलियां दांतो तले पहुंचने लगती हैं। युगल मस्ती में सराबोर होकर बर्फ पर झूमते जाते हैं और दर्शकों की तालियां हॉल में गूंजने लगती हैं। संगीत की लय पर शरीर के लोच के साथ महीनों की प्रेक्टिस इस खेल में खुद-ब-खुद नजर आती है। यह ओलंपिक खेल है, जिसे अकेले, युगल या समूह के साथ प्रदर्शित किया जाता है। इसी के मिलती-जुलती स्केटिंग है, सिंक्रेनाइज्ड स्केटिंग। इसमें 8 से लेकर 20 युवक या युवतियां अनुशासन और लयबद्ध तरीके तेज गति से बर्फ पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। बर्फ पर खुद को साधकर लोगों का मनोरंजन करना वाकई श्रमसाध्य काम है।
बर्फ पर तैरता शरीर
बर्फ पर सैर करने का मन कर रहा है, तो स्कीस की मदद से बढ़ जाइए अपने सफर पर और इसे नाम दीजिए स्कीइंग का। आज स्कीइंग बर्फ के खेलों की एक मशहूर विधा बन चुकी है। स्कीस में बूट्स के साथ जुड़े हुए स्की होते है, जिनकी मदद से बर्फ पर कदम रखते ही लगता है, मानो आसमान में तैर रहे हों। स्कीइंग कई तरह की हो सकती है, जैसे- डाउनहिल स्कीइंग, फ्री स्टाइल स्कीइंग, स्की जंपिंग। डाउनहिल स्कीइंग में बर्फ से ढकी चोटी पर पहुंचकर उन्मुक्त भाव से चोटी की हर ऊंचाई से गहराई तक को नापा जा सकता है। इसके लिए खास हैलमेट और पोल्स की भी जरूरत होती है। पोल्स की मदद से स्कीयर को जमीन की सतह पर सहारा मिल जाता है। सबसे खास होती है फ्री स्टाइल स्कीइंग। इसके लिए आपको खास अभ्यास की दरकार होती है। चोटी पर जाकर स्कीज की मदद से शरीर को बैलेंस करते हुए तरह-तरह की आर्ट पेश की जाती है। हवा में लहरते हुए बदन को सर्किल बनाना, पैरों और हाथों को कलात्मक अंदाज में पेश करना ठंडे माहौल में गर्माहट पैदा कर देता है। स्की जंपिंग में उड़ान भरने के करतबों को अंजाम दिया जाता है और हवा में ऊंचे से ऊंचा पहुंचाता है। यह विंटर ओलंपिक खेलों का हिस्सा भी है।
एहसास भुलाए ना भूले
स्लेड राइडिंग में एक वाहन या ऐसा यंत्र होता है, जिसकी मदद से आप आइस ट्रेक पर आप सैर करते हैं। अपने साथी के साथ इस पर बैठकर बर्फीली एहसास का मजा आपने अगर एक बार ले लिया, तो ताउम्र नहीं भूल पाएंगे। स्कीबोबिंग में स्की के पहियों की बजाय एक साइकिलनुमा फ्रेम होता है, जिसकी मदद से बर्फीली रास्ते तय करने का मजा लिया जाता है। इसी तरह स्नोमोबाइल में बर्फीले रास्तों की लंबी दूरी तय करने के लिए यह व्हीकल होता है, इसमें बैठने के लिए कुर्सी की तरह जगह होती है।
गेम्स ऑन, विंटर गोन
देश के हिल स्टेशनों पर सर्दी के महीनों में बर्फ पडऩे लगती है और समां बड़ा सुहाना हो जाता है। देश में स्नो गेम्स के लिए दीवानगी तो है, पर इसके लिए उन महीनों का इंतजार करना पड़ता है, जब माहौल पूरा बर्फ से ढका रहता हो। गुलाबी ठंड के बीच कश्मीर, श्रीनगर, गुलमर्ग, औली जैसी जगहें स्नो गेम्स के लिए सबसे अच्छी हैं। हिमालय की वादियों में बर्फ से लदी ऊंची-ऊंची चोटियों पर पेशवर खिलाडिय़ों के हैरतंगेज खेलों को देखने के लिए पूरे देश से पर्यटक पहुंचते हैं। बादल, झरने और हरियाली के बीच अगर स्नो गेम्स का मजा नहीं लिया जाए, तो लगता है कि यात्रा अधूरी रह गई है। बर्फ के पहाड़ों को रूई का ढेर मानकर उसमें मस्ती करने का मौका भला कौन छोडऩा चाहेगा, तो हो जाइए तैयार ऊर्जा से लबरेज ठंडे सफर के लिए। हमारे देश में हिमालय की गोद में बसी एक जगह है औली। यहां मशहूर स्कीइंग प्रशिक्षण संस्थान हैं। यहां से सीखे हुए लोग विश्व स्कीइंग प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई करते हैं।यहां की परिस्थितियां और ढलान स्नो स्कीइंग के लिए आदर्श हैं। गौरतलब है कि औली में स्कीइंग के लिए मुफीद एशिया की सबसे बड़ी ढलान है। गुलमर्ग, रोहतांग पास, मनाली और कुल्लू की ढलानें भी स्कीइंग के शौकीनों के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
-आशीष जैन

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20 December 2009

अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो

नन्ही कली खिलना चाहती है। अगर आपने इसे बढऩे में मदद की, तो ये फूल बनकर फिजां में खुशबू बिखेरा करेगी। वाकई निराली हैं हमारी बेटियां। एक बेटी ही बहन है, पत्नी है, जननी है और परिवार को जोड़कर रखने वाली डोर भी। एक मायने में सृष्टि की सृजनकर्ता हैं बेटियां... ये बेटियां ममता की मूरत हैं। इनकी उपलब्धियां असीम हैं। जीवन को अमृत तुल्य बनाने वाली इन बेटियों को इतना लाड़ और प्यार दो कि हर लड़की की जुबान पर यही बात हो... अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो।

जिस घर में लड़कियां हैं, पूरे घर में आपको प्यारी-सी महक मिलेगी। एक अनोखी किस्म की नजाकत और नफासत, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। बेटियां घर को सजाती है, संवारती है और घर को संबंधों की ऊर्जावान डोर में बांध लेती हैं। बेटियां परिवार के लिए लक्ष्मी हैं। वे चाहे जहां रहें, हमेशा परिवार की चिंता उन्हें सालती रहती है। देश के विकास में अगर बेटियों का योगदान देखें, तो पता लगेगा कि आजादी और आजादी के बाद हर मोर्चे पर बेटियों ने अपना हुनर दिखाया है। लड़कियों ने आसमान से लेकर समंदर की गहराइयों तक सफलता का परचम लहराया है। आज भी घर के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि लड़कियां जिस घर में पैदा होती है, वहां बरकत आती है।
इन्हें देखकर लगता है कि कुदरत ने सारी ममता बेटियों की झोली में डाल दी है। आज भी समाज में ऐसी कई बेटियां हैं, जिन्होंने समाज और दुनिया के लिए खुद को जोखिम में डाला। सानिया मिर्जा और कल्पना चावला के पिता से बात करके देखिए, बेटियों के कमाल की बदौलत आज इनके परिवार को फख्र है।
कौन लेगा जिम्मेदारी?
पंजाब जाकर देखिए, यह राज्य आज बहनों के लिए तरस रहा है। राखी के दिन वहां हजारों लड़कों की कलाइयां सूनी रहती हैं। कारण साफ है। पंजाब में लड़कियों की तादाद तेजी से घटती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। नई रिपोट्र्स पर विश्वास करें, तो देश में कन्या भू्रण हत्या तेजी से बढ़ रही है। अब वो दिन दूर नहीं, जब आपको नवरात्रों पर जिमाने के लिए कन्या कहीं नजर नहीं आएंगी। बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या के लिए अनपढ़ या पिछड़े लोगों की बजाय मॉडर्न और एजुकेटेड लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं। उच्च मध्यवर्गीय परिवारों तक में लड़कियों को दोयम दर्जा दिया जाता है। अगर यह चलन जारी रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब नारी जाति के अस्तित्व पर ही खतरा होगा। इंस्टीट्यूट ऑफ डवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में स्नातक या इससे अधिक पढ़े-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढ़कर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए। अध्ययन बताते हैं कि जहां पढ़े-लिखे लोग भ्रूण हत्या के लिए आधुनिक तरीकों जैसे अल्ट्रासाउंड तकनीक आदि का इस्तेमाल करते हैं, वहीं ग्रामीण लोग कन्या जन्म के बाद ऐसा करते हैं।
प्रयास जरूरी
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है। सामाजिक चेतना के लिए कई संस्थाएं सालों से काम कर रही हैं, पर नतीजे सामने हैं। बजाय इन सारी बातों के, हर परिवार को सोचना होगा कि बेटी का क्या मोल है? एक बेटी ही बहन है, पत्नी है, जननी है और एक मायने में सृष्टि की संचालक भी। हिमाचल सरकार की योजना काबिले तारीफ है। वहां पिछले दिनों 'बेटी अनमोल हैÓ अभियान चलाया गया, जिसमें जागरूकता जत्थे के लोगों ने घर-घर जाकर बताया कि यदि कन्या शिशु दर गिरती रही, तो आने वाले बरसों में लड़कियां ढूंढें नहीं मिलेंगी और समाज का संतुलन ही गड़बड़ा जाएगा। हालांकि हिमाचल प्रदेश का लिंगानुपात अन्य राज्यों की तुलना में ठीक है, लेकिन फिर भी आंकड़ों के मुताबिक 2019 में इस दर से तीन लड़कोंं पर एक लड़की और 2031 में सात लड़कों पर एक लड़की रह जाएगी। ऐसी सार्थक पहल को सभी राज्यों में अमल किया जाना चाहिए। सरकार और कानून को सबसे ज्यादा जोर तो इस बात पर देना चाहिए कि किसी तरह से महिलाओं की आबादी बनी रहे, नहीं तो अनर्थ होने में देर नहीं लगेगी।

शर्मसार करते आंकड़े
- देश में हर 29वीं लड़की जन्म नहीं ले पाती है, वहीं पंजाब में हर पांचवी लड़की का कोख में कत्ल हो जाता है।
- देश में हर 1000 पर 14 लड़कियां कम हो रही हैं, वहीं पंजाब में हर एक हजार पर 211 लड़कियां कम हो
रही हैं।
- इंस्टीट्यूट ऑफ डवलप मेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में मैट्रिक से कम पढ़े-लिखे लोग 40 फीसदी थे, जबकि 2006 में यह घट कर 31.8 फीसदी रह गई। इसी तरह दसवीं से स्नातक के बीच शिक्षित 39 फीसदी लोगों ने जहां 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाया था, वहीं 2006 में यह गिनती 32.9 फीसदी रह गई। इसके विपरीत 2002 में स्नातक या इससे अधिक पढ़े-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढ़कर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए।
- 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में 1000 लड़कों पर 927 लड़कियां हैं।


मां को पुकार

क्या हो गया है देश की मांओं को? अपनी कोख में फूल-सी बेटी को जगह देकर क्यों उसका कत्ल करने को तैयार हो जाती है वो? लड़के की चाह में वो ये क्यों भूल जाती है कि वह भी तो औरत है? ममता की मूरत... जीवन को सींचने वाली औरत। फिर क्यों वह अपनी बिटिया को जन्म देने में कतराती है? क्यों कन्या भ्रूण हत्या करके वह अनगिनत अजन्मी बेटियों का श्राप ले रही है? दुनिया में महिला ही शायद एकमात्र ऐसी जाति हो सकती है, जो अपने जैसी किसी लड़की को जन्म देने से कतराने लगी है। देश की महिलाओं के लिए यह शर्म का विषय है कि वे कन्या भ्रूण हत्या पर अपनी मौन स्वीकृति देती आ रही हैं।
बेटी की पुकार
मां... तेरी कोख में रहकर मुझे लग रहा है कि तू मुझे जरूर जन्म देगी... मैं दुनिया में आना चाहती हूं... तेरी पनाह पाकर मैं दुनिया को दिखलाना चाहती हूं कि कन्या को श्राप समझने वाले लोग गलत हैं। मुझे पता है कि देश में करोड़ों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है... पर अगर तू मुझे जन्म देगी, तो मैं एक लड़के से बढ़कर तेरे परिवार का नाम ऊंचा करूंगी। मां मैं कहना चाहती हूं कि अगर दुनिया में इसी तेज रफ्तार से कन्या भ्रूण हत्याएं होती रही, तो दुनिया का सौंदर्य ही खत्म हो जाएगा...

- आशीष जैन

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