03 September 2008

हमें नहीं जाना स्कूल...पर नोबल पाना है


माना कि स्कूल जाना जरूरी है। लेकिन घर पर मिली शिक्षा स्कूली शिक्षा से कहीं ज्यादा अहम है। यहां पेश हैं कुछ ऐसी नोबल पुरस्कार प्राप्त हस्तियां, जिन्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था।
जैसा कि कहा गया है- प्रथम शिक्षक मां होती है। वैसे ही घर बच्चे के लिए पहला स्कूल है। यहां जितना सीखोगे, उतने ही नोबल बन जाओगे।


नाम - रवींद्र नाथ टैगोर
उपलब्धि- 1913 में साहित्य का नोबल पुरस्कार

स्कूल के बारे में राय- मेरा विचार में यह रहस्यमयी संसार जिसका सृजन खुद ईश्वर ने किया है, उससे दूर ले जाने की जगह है स्कूल। यह एक ऐसी अनुशासन विधि है, जिसमें एक विद्यार्थी की नैसर्गिक प्रतिभा या मौलिक योग्यता का कोई स्थान नहीं है। स्कूल की जिंदगी तब अच्छी होती है, जब खुद को निष्क्रिय या अजीवित मान लें। शायद यह मेरा लिए अच्छा ही था, कि मुझे किसी सभ्य परिवार में रहने वाले लड़के की तरह स्कूल या कॉलेज की शिक्षा नहीं मिली। शायद मेरे विरोध ने ही मुझे साहित्य में कुछ नया रचने के लिए प्रेरित किया।
(1921 में अमरीका में और 1924 में चीन में दिए गए भाषणों के आधार पर)

नाम- अल्बर्ट आइंस्टीन

उपलब्धि- भौतिकशास्त्र में 1921 में नोबल पुरस्कार
स्कूल के बारे में राय- मुझे हमेशा स्कूली अनुशासन से चिढ़ थी। ज्यादातर समय मैं भौतिकशास्त्र की प्रयोगशाला में काम करता रहता, इससे मुझे किताबी बोरियत से छुट्टी मिलती और सीधे प्रयोग करके कुछ पाने का सुखद एहसास होता। इसके बाद बचे बक्त में मैं पढ़ाई और दूसरे कामकाज करता था। परीक्षाओं का हौव्वा भी मेरे दिमाग पर गहरा असर डालता था। इनसे मुक्त होते ही मैं बेहद हल्का महसूस करता।
(आत्मकथा 'आटोबायोग्राफिकल नोट्स' से)


नाम- जार्ज बनार्ड शा
उपलब्धि- 1925 में साहित्य का नोबल पुरस्कार

स्कूल के बारे में राय- दुनिया में मासूम बच्चों के लिए सबसे डरावनी जगह अगर कोई है, तो वह स्कूल है। इसकी शुरुआत बंद कमरे से होती है। यहां उन लोगों की पुस्तकों को भी पढ़ना पड़ता है, जो लिखना नहीं जानते। ऐसी पुस्तकें जिनसे कुछ सीखना एक मुशिकल बात होती है।
(किताब 'ए ट्रीटीज ऑन पैरेट्स एंड चिल्ड्रन' से)


नाम- बरट्रेंड रसेल
उपलब्धि- 1950 में साहित्य का नोबल पुरस्कार

स्कूल के बारे में राय- स्कूल से ज्यादा घर में दी जाने वाली शिक्षा कारगर है। शिक्षण अधिकारी दिखावा जरूर करते हैं, मगर अपवादस्वरूप ही उनमें विद्यार्थियों के लिए उत्तरदायित्व की चिंता होती है। घर में संस्कारों के साथ संबंधों की शिक्षा मिलता है। यह समाज स्कूल के कृत्रिम वातावरण से ज्यादा जरूरी है।
(किताब 'एजुकेशन एंड सोशल ऑर्डर' से)


नाम- विंस्टन चर्चिल
उपलब्धि- 1953 में साहित्य का नोबल पुरस्कार

स्कूल के बारे में राय- जब मैं सात साल का हो गया, तो मुझे आफत की पुडिया समझकर घर से दूर शिक्षा के लिए भेज दिया गया। स्कूल के दिन मेरव् लिए खासे बोझिल और चिंता के विषय रहे। मैं यहां खेल में तो पीछे था ही, जो पाठ मुझे पढ़ाया जाता, उसमें भी बुरा हाल था। ये बड़े उदासी वाले दिन थे। स्कूल के हटकर कोई भी काम करना गुनाह था। मगर मैं भी पक्का था, जहां मेरी दिलचस्पी नहीं थी, वहां पढ़ना-सीखना मेरे बस का नहीं था।
(किताब 'माई अर्ली लाइफ' से)


नाम- सुब्रमण्यन चंद्रशेखर
उपलब्धि- 1983 में भौतिकशास्त्र का नोबल पुरस्कार
स्कूल के बारे में राय-
मुझे प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही मिली। मां ने तमिल और पिता ने अंग्रेजी और अंकगणित की शिक्षा दी थी। अधिकतर बच्चों को उस समय घर पर ही शिक्षा दी जाती, ताकि बच्चा अच्छी तरह ज्ञान पा सके। मेरे पिता दफ्तर जाने से पहले मुझे घर पर ही पढ़ाकर जाते थे।
(सी वी रमन की आत्मकथा से)


नाम- आंद्रई सखारोव
उपलब्धि- 1975 में शांति का नोबल पुरस्कार
स्कूल के बारे में राय-
मेरे अनुसार स्कूल जाना 'वेस्ट ऑफ टाइम' यानी समय की बर्बादी है। स्टालिन के दौर में मेरी पढ़ाई-लिखाई घर पर ही हुई।
(एक प्रश्न के जवाब में)


-आशीष जैन

...आगे पढ़ें!