16 September 2008

ये बंधन है दोस्ती का

दुनिया में जब हम आते हैं, तो अनायास ही एक-एक रिश्ते में बंधते चले जाते हैं। सिर्फ दोस्ती ही ऐसा रिश्ता है, जो हम खुद बनाते हैं। लेकिन जब रिश्तेदारी में दोस्ती भी शुमार हो, तो क्या कहना।

दोस्ती की आंच पर पके रिश्तों की मजबूती गजब की होती है। एकदम खिले हुए, सहज और भरोसे के लायक। ऐसा होगा, तो आपको कभी रिश्तों में जटिलता या जकड़न महसूस नहीं होगी, बल्कि विचारों के खुलेपन की नई तस्वीर नजर आएगी। दिल की बात जुबां पर आसानी से आएगी और इसका फायदा आपके संबंधों को ही मिलेगा, फिर चाहे कोई भी रिश्ता हो। कुछ इसी फलसफे के साथ अपने रिश्तों में दोस्ती को जीते हुए लोगों की दास्तां-

जाने कब दोस्त बन गए
सचिवालय में कार्यरत माला जैन का कहना है कि मैं जितनी धूम-धाम और खुशी से बहू लाई थी, वह खुशी आज भी कम नहीं हुई। मैंने तो ज्यादातर सास-बहू को आपस में बुराइयां करते ही सुना है। मैं मानती थी कि यह रिश्ता कभी दोस्ताना नहीं बन सकता। लेकिन मेरी सोच गलत थी। हम कब सास-बहू से दोस्त बन गए, पता ही नहीं चला। यदि उसे कोई काम नहीं आता, तो मैं बिना डांटे या ताना दिए उसे प्यार से समझा देती हूं। कभी मैं कुछ गलत करती हूं, तो वह भी दोस्त की तरह मुझे समझाती है। हम कभी एक-दूसरे की बात का बुरा नहीं मानते। संस्कार के साथ-साथ मेरी बहू में रिश्तों को निभाने की समझ भी है। दूसरी तरफ बहू कविता का कहना है कि जब मैं शादी होकर इस घर में आई थी, तो बहुत झिझक रही थी। जैसा कि हर बहू के साथ होता है। लेकिन सास का ऐसा साथ मिला कि न जाने कब यह घर अपना लगने लगा। मुझे घर का काम करने की आदत नहीं थी। लेकिन कभी मेरी सास ने इस बात को मुद्दा नहीं बनाया। घर के बाकी लोगों को तो यह भी नहीं पता कि मुझे क्या बनाना आता है और क्या नहीं। कभी मेरी सास ने किसी तरह की शिकायत नहीं की। इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे कॅरियर बनाने की भी सलाह दी। फिलहाल मैं बैंक परीक्षा की तैयारी कर रही हूं और इसमें मेरी सास का पूरा सहयोग मिल रहा है। वे मेरे खान-पान से लेकर हर चीज का ध्यान रखती हैं। आज मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि वे मेरी सास कम और दोस्त ज्यादा हैं।
माला जैन, कविता जैन(सास-बहू)

बुरा होता नहीं देख सकता
लोग हमें पिता-पुत्र कम और दोस्त ज्यादा मानते हैं। इसमें उनकी गलती नहीं, हमारा रहन-सहन ही कुछ ऐसा है। हम जहां भी जाते हैं फुल मस्ती करते हैं। ये कहना है ट्यूरिस्ट कोच से जुड़े सुरेंद्र शर्मा का। वे अपने बेटे अमन को दोस्त समझकर हर बात में उससे सलाह लेते हैं। वे कहते हैं कि चाहे अमन का कॉलेज में एडमिशन हो या मोबाइल खरीदना हो, मैंने कभी अपनी मर्जी नहीं थोपी। हमने आज तक हर छोटी-छोटी बात एक-दूसरे से शेयर की है। खाली समय में हम किसी भी विषय पर चर्चा करने लगते हैं। मेरव् साथ रहकर उसे दोस्तों की कमी नहीं खलती। एक बार ग्यारहवीं क्लास में उसका अपने दोस्तों के साथ मनमुटाव हो गया था। इस वजह से वह काफी डिप्रेशन में था। मैंने उस वक्त एक दोस्त की तरह मानसिक रूप से सपोर्ट किया। कभी मोबाइल पर कोई अच्छा मैसेज आता है, तो मैं उसे अमन को फॉरवर्ड कर देता हूं। बड़ी से बड़ी गलती करने पर भी उसे डांट दूं, तो बाद में दिल मेरा ही दुखता है। वहीं बेटे अमन का कहना है कि पापा शुरू से ही क्रिकेट खेलते थे। उन्होंने मुझे एक दोस्त की तरह क्रिकेट की बारीकियां सिखाईं। उन्होंने मुझे क्लब क्रिकेट खेलने की सलाह भी दी। मैंने जयपुर क्लब में क्रिकेट जॉइन किया। लेकिन पढ़ाई के चलते उसे निरंतर नहीं रख पाया। इस बारे में पापा को पता चला, तो उन्होंने मुझे वापस क्लब जॉइन करने को कहा। मैं भी उनका कहा टाल न सका। एक अच्छे दोस्त की यही निशानी होती है कि वह अपने दोस्त का बुरा होता नहीं देख सकता और यही मेरे पापा ने किया।
सुरेंद्र शर्मा, अमन शर्मा (पिता-पुत्र)

दो जिस्म एक जान हैं हम
कौन कहता है कि हम दो बहनें हैं। हम तो दुनिया की सबसे अच्छी दोस्त हैं। दोस्ती के इस रिश्ते से ही हमारे चेहरों पर मुस्कान बनी रहती है। यह कहना है जीएनएम नर्सिंग कर रही शमा का। वह बताती है कि मेरी छोटी बहन पिंकू बहुत सीधी है। किसी से कुछ नहीं कहती। मन की हर बात छुपा कर रखती है। लेकिन मैं उसका चेहरा पढ़ लेती हूं। वह भी मम्मी-पापा और दोस्तों की बजाय मुझसे हर बात शेयर करती है। हम दोनों बहनें जरूर हैं लेकिन दोस्तों की तरह कॉम्पिटीशन भी रखते हैं। एक-दूसरे से शिकायत करते हैं तो कभी नोंक-झोंक भी हो जाती है। लेकिन एक सच्चे दोस्त की तरह मैं अपना हर फर्ज निभाने की पूरी कोशिश करती हूं। जब कभी पिंकू की तबियत खराब होती है या वो किसी परेशानी में होती है, तो मैं अपना काम छोड़कर उसके पास पहुंच जाती हूं। दूसरी ओर छोटी बहन पिंकू का कहना है कि मैं पहले बहुत सीधी-सादी लड़की थी। लेकिन दीदी ने मुझे समझाया कि आज की दुनिया में इतना सीधापन अच्छा नहीं होता। उन्होंने मेरी हर आदत को सुधारकर मेरे व्यक्तित्व को निखारा है। उन्होंने मुझे इतना प्यार और भरोसा दिया कि मैं हर बात उनसे खुलकर कर सकती हूं। यह काम कोई दोस्त ही कर सकता है। मैंने भी कभी उनकी बात का बुरा नहीं माना और जैसा उन्होंने कहा, वैसा ही किया।
शमा पंवार, पिंकू पंवार (बहनें)

पूरा ध्यान रखता हूं
ज्वैलरी का काम करने वाले विनोद शर्मा बड़े भाई की भूमिका में तो सभी को नजर आते हैं लेकिन अपने छोटे भाई कमलेश के लिए वे दोस्त भी हैं। वे बताते हैं कि वह मनचला है। या यूं कहें कि उसमें बचपना ज्यादा है। होने को तो उसकी शादी हो गई है लेकिन उसमें उतनी परिपक्वता नहीं है, जितनी होनी चाहिए। यही वजह है कि मैं बिजनेस और उसके व्यक्तिगत जीवन का पूरा ध्यान रखता हूं। वह भी हर काम मुझसे पूछकर करता है। काम को लेकर कभी तकलीफ नहीं हुई। छोटे भाई कमलेश का कहना है कि जितने सीधे और सरल भाईसाहब हैं, उतनी ही चंचलता मुझमें है। यूं तो हमारा बिजनेस एक है लेकिन सारा ध्यान वे ही रखते हैं। मुझे पार्टियां करने का शौक है। यदि मैंने घर में अपनी ओर से कोई कार्यक्रम रखा है, तो उसे पूरी तरह संभालते वे ही हैं। कभी कोई काम करने से मना नहीं करते। जब भी मैं किसी परेशानी में होता हूं, तो वे मुझे दोस्त की तरह संभाल लेते हैं। मेरे पूरे परिवार को लगता है कि वे मेरे साथ हैं, तो मुझे कुछ नहीं हो सकता। मेरा विश्वास भी यही है। सच कहूं तो मैंने भाई के रूप में सच्चा दोस्त पाया है।
विनोद शर्मा, कमलेश शर्मा (भाई)

प्रीति स्वर्णकार, आशीष जैन

...आगे पढ़ें!