10 June 2008

पिता हैं वे मेरे

पिता हैं वे मेरे
पर दोस्त से लगते हैं।
हर पल मेरे साथ साए से बने रहते हैं।
दर्द में, खुशी में या किसी डर में
मैं सदा उनकी उंगली थामे रहता हूं।

पिता हैं वे मेरे
पर प्यार जैसे लगते हैं।
जब कभी लगाते हैं गले से
लगता है मैं मैं ना रहा।
गले मिलकर भूल जाता हूं सारा जहां।

पिता हैं वे मेरे
लगते हैं गुरू जैसे।
जब-तब डांट देते हैं मुझे
लगता है सीख रहा हूं दुनिया की गणित
बताते हैं क्या भला है क्या बुरा।

पिता हैं वे मेरे
लगते हैं पुत्र से मेरे।
जब कभी जरूरत होती है
मैं ही देता हूं उन्हें सहारा।
सुनता भी हूं उनकी बात पूरी।

पिता हैं वे मेरे
लगता है हर रिश्ते से परे
बस वे पिता हैं मेरे।
- आशीष जैन

...आगे पढ़ें!