14 March 2009

हर रंग कुछ कहता है

रंग कहां नहीं हैं? सारा संसार रंगमय है। रंग रसोईघर के मसालों से भरे हैं। फलों और साग-भाजियों में उनकी गहरी पैठ है। परिधानों में रंग लिपटे हुए हैं। रंग मां की माथे की बिंदिया में, बेटी की आंख के काजल में, बहिन के हाथों की मेंहदी में हैं। रंग कभी दादी के पांव की नुपूर में झकनते हैं, तो कभी प्रियतमा के होठों की लाली में बस जाते हैं। रंग प्रकृति की जय में हैं, विजय में हैं। रंगों की महक से ही तो भंवरे चंपा-चमेली से चुगली कर रहे हैं। गेंदे और सूरजमुखी में गलबांही इन्हीं की वजह से ही तो होती है। बगिया रंगों की बस्ती है, जहां हर रंग अपनी धुन में मगन है। रंगों से हर रोज खेलने वाले चितेरे से पूछें, तो पता लगेगा कि रंग तो बहुत ही मासूम हैं। कभी तिरंगे में केसरिया, सफेद और हरा रंग बनकर वे हमारे दिल में बस जाते हैं, तो कभी बारिश की नन्ही बूंदों के सहारे इंद्रधनुष बनकर फिजा में फैल जाते हैं।रंगों की दुनिया का अपना अलग ही एहसास है। इनकी बात चलती है, तो हर मन में नया उल्लास, उमंग और जोश सा भर जाता है। रंग असल में हमारे मन के उत्सव की परछाई हैं। मानव मन ने हर क्षण को जीवंतता से जीने का एक बहाना ढूंढा है। रंग कभी त्योहार बनकर हमसे मिलते हैं, तो कभी खुशियों की वजह बन जाते हैं। फिर चाहे कोई भी रूप हो, रंग सदा हमारे साथ रहते हैं। हर खुशी, हर गम में रंग की खासी भूमिका रहती है। बच्चे की किलकारी में, बारिश की बूंदों में, बांसती सरसों में या फिर दुल्हन की चुनर में। हमें कभी लाल, पीले या नीले रंग खोजने नहीं पड़ते हैं। रंग खुद हमसे बातें करते हैं। मानव जीवन भी रंगों से बेखबर दुनिया नहीं जी सकता। हर मोड पर कोई ना कोई रंग हमसे टकरा ही जाता है। रंगों से हर रोज खेलने वाले चितेरे से पूछें, तो पता लगेगा कि रंग तो बहुत ही मासूम हैं। कभी तिरंगे के केसरिया, सफेद और हरे रंग बनकर वे दिल में बस जाते हैं, तो कभी बारिश की नन्ही बूंदों के सहारव् इंद्रधनुष बनकर फिजा में फैल जाते हैं। बसंत के मौसम में थोड़ी सी देर के लिए अगर प्रकृति से उसका पीला रंग उधार मांगकर रख लें, तो बहारों में वो रौनक रह जाएगी। अगर सूरज की लालिमा मिटने लगे, तो क्या हमारे दिलों में सुकून रह पाएगा। रंगों से ही तो रोशन हैं दुनिया के जमीन और आसमान। यूं तो रंगों की अपनी एक अलग दुनिया है, पर जब रंग इंसानी जज्बात के साथ मिलते हैं, तो गजब का जादू बिखेरते हैं।जीवन की मुस्कान हरे, नीले पीले, लाल, गुलाबी रंग मानवीय उल्लास के ही तो प्रतीक हैं। रोते हुए बच्चे को अगर एक रंग-बिरंगा गुब्बारा थमा दें, तो उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगती है। प्रेयसी जब आपका घंटों इंतजार करते-करते थक सी जाती है, तो आप ही तो उसके लिए सुर्ख लाल या गुलाबी रंग का गुलाब का फूल ले जाते हैं। आपकी प्रियतमा फूल की रंगीन दुनिया में खो जाती है और इंतजार के शिकन को भुला देती है। बसंत के पीले रंग से सजी खेतों की चुनर पर सर्वस्व लुटाने को जी चाहता है। बचपन के दिन याद कीजिए, जब हम दो रंग मिलाते थे और तीसरा रंग बन जाता था। जिंदगी में खुशी और गम, मिलना और बिछुड़ना, संवाद और विवाद रंगों की तरह की तरह साथ-साथ मिलकर एहसास की गहराइयों में नए-नए भावों को पैदा करती रहती है। यूं तो हर रंग का एक खास मानी होता है। नीला रंग शांति देता है, पीला रंग बौद्धिक क्षमता विकसित करता है। पर मेरी समझ में ये चीज आज तक नहीं आई कि क्योंकर हम टे्रफिक लाइट की लाल बत्ती देखकर तो परेशान हुए जाते हैं, वहीं दुल्हन को सुर्ख लाल जोड़ा पहने देखकर बधाइयां गाने लगते हैं। भई रंग तो एक ही है। फिर यह मन भेद क्यों हो जाता है? मुझे तो लगता है कि रंग भी मन के धागों से मिलकर हर बार अपने लिए एक नया अर्थ या प्रयोजन गढ़ते जाते हैं। चलिए छोड़िए, इस लाल रंग को वरना हो सकता है, कोई सांड (वामपंथी भी हो सकता है) आपको प्यार करने के वास्ते दौड़ा चला आ रहा हो।
अब हम अपने चारों ओर निगाह डालते हैं। पहली बारगी क्या नजर आता है? सतरंगी पंछी, मटमैले पहाड़, नीला अंबर। हां, मुझे भी तो ऐसा कुछ नजर आ रहा है। पर गौर करने वाली बात है कि इन सबमें खास बात है रंगों का मन पर गहरे असर की छाप। पूरी प्रकृति अपने मन, वचन और कर्म से रंगभरी है, किसी बच्चों की ड्राइंग की कॉपी की तरह। पर इस कॉपी को देखने के लिए बच्चों की सी ही निगाह भी चाहिए। रंगों के मायने अगर हमें सीखने हैं, तो सबसे सही तरीका है किसी बच्चों के साथ पूरा एक दिन गुजारा जाए। तब हमें पता लगेगा कि रंगों को जीना, देखना, महसूस करना और खुद में संजोना कितना आसान है।लोग कहते हैं कि रंग बदलना में गिरगिट बहुत माहिर होता है, पर इंसानी फितरत भी तो पल-पल बदलती रहती है, हम यह क्यों भूल जाते हैं? रंगों की तासीर को दिल में बसा लेने की ख्वाहिश ही तो हमें होली जैसे त्योहार से जोड़े रखती है। आइए रंगों से सराबोर हो, हम भी गिले-शिकवों को भूलकर नई नजर से दुनिया के नए रंगों से रूबरू हो जाएं। प्यार बांटें, प्यार पाएं और खुश हो जाएं।
-आशीष जैन

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