08 July 2009

सुअरों से फ्लू: स्वाइन फ्लू

स्वाइन फ्लू का नाम कुछ दिनों पहले शायद डॉक्टरों या इतिहासकारों को ही पता था, पर अब इस बीमारी से पूरी दुनिया वाकिफ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) इसे विश्व महामारी घोषित कर चुका है। स्वाइन फ्लू या इन्फ्लुएन्जा या एक अत्यन्त संक्रामक किस्म के जुकाम के खिलाफ अब पूरी दुनिया में छठे स्तर का अलर्ट जारी है। पिछले चालीस सालों में पहली बार किसी बीमारी को वैश्विक स्तर पर खतरे की उच्चतम छठी अवस्था तक आंका गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आश्वासन है कि इस बीमारी का टीका सितंबर तक आ जाएगा। हमारे देश में इस वक्त स्वाइन फ्लू से पीडि़तों की संख्या 70 के करीब बताई जा रही है और तेजी से संख्या में इजाफा भी हो रहा है।

स्वाइन फ्लू का वायरस दुनिया के 80 देशों में फैला हुआ है और करीब 50 हजार लोग इससे पीडि़त हैं। इस बीमारी से 200 लोगों की मौत भी हो चुकी है। हमारे देश के नीतिनिर्धारकों को इस बीमारी पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। पोलियो, मलेरिया जैसी पुरानी बीमारियों के बीच इस नई बीमारी पर नियंत्रण के लिए हमें कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। गौरतलब बात है कि जिन देशों में स्वाइन फ्लू का असर ज्यादा देखने में आया है, वे सभी विकसित राष्ट्र रहे हैं, इन देशों की स्वास्थ्य प्रक्रिया का पूरा विकसित तंत्र है। ऐसे में विकासशील देशों को अपने सीमित संसाधनों को ध्यान में रखते हुए कुछ खास कदम उठाने होंगे।
नया फ्लू है ये
स्वाइन फ्लू सुअरों से उत्परिवर्तित वायरस से हुआ है। सुअरों को एविएन और ह्यूमन एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन दोनों का संक्रमण हो सकता है। इसलिए उसके शरीर में एंटीजेनिक शिफ्ट के कारण नए एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन का जन्म हो सकता है। किसी भी एन्फ्लूएंजा के वायरस का मानवों में संक्रमण श्वास प्रणाली के माध्यम से होता है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति का खांसना और छींकना या ऐसे उपकरणों का स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आता है, उन्हें भी संक्रमित कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सुअर (स्वाइन), पक्षी और इंसान तीनों के जीन मिलने से बना एच1एन1 वायरस सामान्य स्वाइन फ्लू वायरस से अलग है। पिछले कुछ सालों में मनुष्य में संक्रमित होने वाले इंन्फ्लुएंजा वायरस से इसका कोई वास्ता नहीं है। वैज्ञानिक अभी इस खोज में लगे हुए हैं कि इस वायरस का मूल स्रोत क्या है। बर्ड फ्लू और मानवीय फ्लू के विषाणु से सुअरों में संक्रमण शुरू हुआ। फिर सुअर के राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) से मिलकर नए वायरस स्वाइन इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) का जन्म हुआ। तब इन्फ्लुएंजा ए (एच1 एन1) का सुअर से मनुष्य में संक्रमण संभव हो सका। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायरस किसी भी मौसम में फैल सकता है और हर आयुवर्ग के लोगों को आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। स्वाइन फ्लू के दौरान बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खांसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण तेजी से उभरने लगते हैं। एन्फ्लूएंजा वायरस लगातार अपना स्वरूप बदलने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता। विशेषज्ञों का कहना है कि छींक के दौरान सभी लोगों को अपनी नाक पर रुमाल या कपड़ा रखना चाहिए। बाहरी खान-पान से ही परहेज ही रखना चाहिए। इस बीमारी में यह शंका गलत है कि हमें यात्रा से बचना चाहिए, नहीं तो हमें यह फ्लू हो सकता है। सुअर का मांस खाने से स्वाइन फ्लू नहीं होता। स्वाइन फ्लू खाने के जरिए नहीं फैलता। इसलिए सुअर के मांस से बने फूड प्रोडक्ट इस मामले में सुरक्षित हैं। कुछ एंटी वायरल दवाइयां स्वाइन फ्लू से राहत देने में असरकारक साबित हुई हैं। टेमिफ्लू तथा रेलेंजा जैसी दवाईयां इस फ्लू में फायदा देती हैं।

कैसे पड़ा नाम
इन्फ्लुएंजा ए वायरस की सतह पर दो प्रोटीन हीमाग्लूटीनिन (एच) और न्यूरामिनिडेज (एन) होते हैं। आनुवांशिक उत्परिवर्तन के कारण इन प्रोटीनों की संरचना में परिवर्तन होता है और वायरस की दूसरी किस्में तैयार हो जाती हैं। हर किस्म का नाम एक एच और एक एन संख्या के आधार पर तय किया जाता है। मनुष्यों में एच की 1,2,3 और एन की 1 और 2 किस्में पाई जाती हैं।

इंसान में स्वाइन फ्लू की अवस्थाएं-
स्थापित रोगी (कन्फम्र्ड)- ऐसे रोगी जिनमें स्वाइन फ्लू रोग के सारे लक्षण होते हैं। वे स्थापित रोगी होते हैं। इनके रोग की पुष्टि रियल टाइम पी.सी.आर. या वाइरस कल्चर या एच1एन1 वाइरस स्पेसिफिक न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज के स्तर में चार गुना इजाफे की बात एक या सब जांचों से पता हो चुकी होती है।
संभावित रोगी (सस्पेक्टेड)- वे रोगी जिनमें स्थापित रोगी के संपर्क में आने के सात दिन के अंदर-अंदर फ्लू के लक्षण उत्पन्न हुए हों और जिनकी जांच से पुष्टि होना शेष हो।
निकट संपर्क वाले रोगी (क्लोज कॉन्टेक्ट)- स्थापित और संभावित रोगी के आस-पास 6 फुट के दायरे में रहने वाले व्यक्ति जो अभी प्रकट रूप से स्वस्थ दिख रहे हों।

कौनसी बीमारी है महामारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक किसी बीमारी को महामारी घोषित करने के छह चरण तय किए गए हैं।
1. जब इंसान में संक्रमण की वजह किसी जानवर से आया इन्फ्लुएंजा वायरस नहीं होता।
2. जब पालतू या जंगली जानवर में फैल रहे वायरस से मनुष्य में संक्रमण फैलता है।
3. जब जानवरों में फैल रहा कोई वायरस या इंसान और जानवर के जीनों के मिलने से बना कोई वायरस एक बड़े समूह के बीच संक्रमण का कारण बनता है।
4. जब इंसान से इंसान में संक्रमण फैलने की पुष्टि हो जाती है।
5. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक क्षेत्र के ही दो या दो से अधिक देशों में संक्रमण बड़े पैमाने पर फैलने लगे।
6. विश्व स्वास्थ्य संगठन के ही किसी दूसरे क्षेत्र का कम से कम एक और देश जब इसी संक्रमण की चपेट में आ जाए।

स्वाइन फ्लू का इतिहास
1918 की ब्लैक डेथ डिजीज- 1918 में स्वाइन फ्लू की बीमारी इंफ्लुएंजा वाइरस एच1एन1 की वजह से फैली थी। रोग का वायरस सुअरों से इंसानों में फैला और फिर इंसानों के इंसानों में संपर्क में आने से पूरी दुनिया को चपेट में लेता गया। दुनियाभर में इससे करीब दो करोड़ लोगों की मौत हुई। तब इस बीमारी को ब्लैक डैथ का नाम दे दिया गया।
अमरीका में 1976 का स्वाइन फ्लू- 5 फरवरी, 1976 को अमरीका के फोर्ट डिक्स में अमरीकी सेना के सैनिकों को थकान की समस्या होने लगी। बाद में पता लगा कि यह बीमारी स्वाइन फ्लू ही है और एच1एन1 वायरस के नए स्ट्रेन की वजह से फैल रही है। इस वायरस का प्रकोप 19 जनवरी से 9 फरवरी तक ही रहा। यह वायरस फोर्ट डिक्स से बाहर नहीं फैल पाया। उस दौरान इसका टीका तैयार किया गया, जो तकरीबन 4 करोड़ लोगों को लगाया गया। इस टीके से कुछ लोगों की मौत भी हुई, तो तत्कालीन सरकार ने इस पर रोक लगा दी।
1988 का वॉलवर्थ काउंटी स्वाइन फ्लू- 1988 में जब एक दंपती बारबरा वीनर्स और एड वॉलवर्थ काउंटी में सुअरों के मेले में गए, तो वापस लौटने पर उन्हें फ्लू हो गया। डॉक्टर गर्भवती बारबरा को नहीं बचा पाए, पर उसका बच्चे को जीवित बचा लिया गया। बाद में सुअरों के साथ रहने वाले सैकड़ों लोगों में संक्रमण पाया गया। यह बीमारी गंभीर रूप धारण नहीं कर पाई। बाद में वैज्ञानिकों को पता लगा कि यह वायरस स्वाइन फ्लू वाइरस स्टे्रन एच1एन1 में उत्परिवर्तन के कारण सुअरों में विकसित हुआ था, जो बाद में इंसानों तक पहुंच गया था।
2007 का फिलीपींस का स्वाइन फ्लू- फिलीपींस में 20 अगस्त 2007 में नुयेवा एसिजा और सेंट्रल ल्यूजोन में स्वाइन फ्लू फैला था। इसमें रोगियों को भयंकर रूप से उल्टियां और दस्त होने लगे। स्थानीय लोगों ने इसे हॉग कॉलरा कहकर पुकारा। फिलीपींस में रेड अलर्ट जारी किया गया और यह विश्वव्यापी महामारी बनने से बच गया।
2009 का मैक्सिको का स्वाइन फ्लू- मैक्सिको से शुरू हुआ स्वाइन फ्लू इस बार फिर पूरी दुनिया में फैल चुका है और इससे पीडि़त लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को अब विश्वस्तरीय महामारी भी घोषित कर दिया है।

महामारियां अब तक
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1889 से अब तक दुनिया में पांच बार महामारियों का प्रकोप हो चुका है। 1889 में रशियन फ्लू से तकरीबन 10 लाख लोगों की मौत हुई। 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू से लगभग दो-तीन करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। 1957 के एशियन फ्लू में लगभग 30 लाख लोगों की जानें गईं। 1968 के हांगकांग फ्लू में 15 लाख लोग मरे और 2009 में इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) वायरस से लगभग 200 लोगों की मौत हो चुकी है।

भारत में महामारी
बंगाल में हैजा
1816 से 1826 के बीच बंगाल में हैजा महामारी से दस हजार से ज्यादा लोगों की जानें गई थीं।
स्पेनिश फ्लू
1918 से 1919 के दौरान भारत में फैले स्पेनिश फ्लू से तकरीबन एक लाख से ज्यादा लोगों को अपने हाथ से जान गंवानी पड़ी।
कोढ़ की बीमारी
1980 के दशक में चीन और इजिप्ट के साथ-साथ हमारे देश में फैली कोढ़ की बीमारी से बीस लाख से ज्यादा लोग विकलांग हो गए थे।
प्लेग
1994 में गुजरात के सूरत में फैले प्लेग से 52 लोगों की जानें गईं।

कुछ खास संक्रमित बीमारियां
सार्स
सार्स का पूरा नाम है- सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम। यह बीमारी चीन में 2002 और 2003 के बीच में फैली थी। इस बीमारी ने 37 देशों को जकड़ लिया था और लगभग एक हजार लोगों की मौतें हुईं।
एंथे्रक्स
2001 में अमरीका में एथे्रक्स के बायोलॉजिकल आक्रमण होने लगे और हजारों अमरीकी इससे संक्रमित हो गए।
-आशीष जैन

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लेबनान में लोकतंत्र की बहार

पूरी दुनिया की निगाह हमेशा की तरह दक्षिण एशिया पर टिकी हुई है। अमरीका के नए राष्ट्रपति बराक ओबामा और विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन चाहते हैं कि मध्यपूर्व में उनकी सत्ता हमेशा कायम रहे। मध्य पूर्व के इराइराल-फिलिस्तीन, ईरान, लेबनान, सीरिया जैसे देशों की राजनीतिक गणित दरअसल अमरीका ने ही बिगाड़ रखी है। इन सब देशों में भी मध्य-पूर्व में बसे लेबनान देश पर पूरी दुनिया की निगाह हमेशा से टिकी रहती हैं। खासकर इन दिनों दुबारा उस पर अमरीका सहित दुनिया के देशों का ध्यान है। हाल ही लेबनान में संपन्न आम चुनावों में लेबनान में सत्तारूढ़ मार्च 14 गठबंधन ने भारी बहुमत हासिल किया और फिर से सरकार बनाने का दावा पेश किया। इस गठबंधन को अमरीका, फ्रांस, इजिप्ट और सऊदी अरब का समर्थन हासिल था। अमरीका और उसके समर्थक देश चाहते थे कि सत्तारूढ़ गठबंधन इस बार भी विजय प्राप्त करे और उसे लेबनान के लिए अपनी नीतियों में ज्यादा फेरबदल ना करना पड़े। जबकि दूसरी ओर इन चुनावों में सीरिया और ईरान समर्थित हिजबुल्लाह गठबंधन था। चुनावों में इसको करारी हार का सामना करना पड़ा। मार्च 14 गठबंधन के अध्यक्ष साद हरीरी के प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद जताई जा रही है। लेबनान की संसद में कुल मिलाकर 128 सीट हैं। जिनमें 64 मुसलमानों के लिए और 64 ईसाइयों के लिए हैं। इन चुनावों में मार्च 14 गठबंधन को 71 सीटें मिली हैं। चरमपंथी हिजबुल्लाह समर्थित क्रिस्चियन पार्टी को 57 सीटें ही मिलीं। हिज्बुल्लाह को शिया उग्रवादी समूह माना जाता रहा है। दरअसल लेबनान का ईसाई समुदाय दोनों खेमों के बीच बंटा रहता है। हिजबुल्लाह को भी ईसाइयों और शियों के समर्थन से इस चुनाव में जीत की उम्मीद थी। लेबनान में मतदान करने के योग्य लोगों की संख्या तकरीबन 30 लाख है।

इतना मतदान पहली बार
खास बात है कि साद हरीरी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ मार्च 14 गठबंधन ने ही 2005 में भारी जीत के साथ सरकार बनाई थी। साद हरीरी लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री रफीक हरीरी के बेटे हैं। उसी वर्ष साद हरीरी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री रफीक हरीरी की बेरूत में एक कार बम धमाके में मौत हो गई थी। इस कार बम धमाके के बाद सीरिया को करीब 29 वर्ष बाद लेबनान से हटना पड़ा था क्योंकि उस पर कार बम धमाके में शामिल होने के आरोप लगे थे। हालांकि सीरिया इसका खंडन करता रहा है। रफीक हरीरी की मौत के बाद सीरिया विरोधी पार्टियों ने मिलकर मार्च 14 गठबंधन का एलान किया था। इस गठबंधन का एजेंडा लेबनान की सरकार में सीरिया के हितों के लिए काम कर रहे तत्वों को खत्म करना और लेबनान में तैनात सीरिया के सैनिकों को वापस भेजना था। सीरिया ने 1976 में लेबनान में चल रहे गृह युद्ध को खत्म करने के लिए वहां अपने 40,000 सैनिक तैनात किए थे। लेकिन गृह युद्ध खत्म होने के बाद भी सीरिया के सैनिक लेबनान में ही रहे। रफीक हरीरी की मौत के बाद बने दबाव के चलते सीरिया ने 2005 में अपने सारे सैनिकों को वापस बुला लिया था। इतना मतदान लेबनान के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। साल 2005 के मुकाबले इस बार ज्यादा लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया और चुनावों में करीब 52 फीसदी मत पड़े। इन नतीजों से अमरीका को राहत मिली है, क्योंकि उसने स्पष्ट किया था कि अगर विपक्षी गठबंधन को चुनाव में जीत मिलती है तो अमरीका लेबनान से अपने रिश्तों की समीक्षा करेगा। ऐसे में अमरीका चुनावी नतीजों से बेहद खुश है।
हिजबुल्लाह को जनता का समर्थन
लेबनान सालों से युद्ध की विभीषिका, सम्प्रदायिक हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता को झेल रहा है। ऐसे में स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली से दुबारा स्थायी सरकार का बनना देश के भविष्य के लिए सुखद संदेश है। लेबनान की घटनाएं मध्यपूर्व की सामरिक स्थिति में बदलाव का संकेत प्रस्तुत करती हैं। 2006 की बात करें, तो उस वक्त इजराइल ने लेबनान पर हमला कर दिया था। ऐसे में हिजबुल्लाह ने ही इजराइल को मुंह की खाने पर विवश कर दिया था। इजराइल अमरीका का समर्थन प्राप्त करके लेबनान पर धावा बोल चुका था और अमरीका लोकतंत्र का छद्म चेहरा दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका था। ऐसे में हिजबुल्लाह ने राष्ट्रवादी नीतियों को तवज्जोह देते हुए लेबनान को संकट से बचाया था। ऐसे में अगर अमरीका दुनिया के सामने यह कहता है कि अगर इन चुनावों में हिजबुल्लाह की जीत हो जाती, तो लेबनान में नए संकट आ सकते थे, पूरी तरह गलत है। 2006 के हमले के दौरान इजराइल ने लेबनान को तहस-नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेबनान के एक हजार से ज्यादा नागरिकों की जानें गई थीं। ऐसे में लेबनानी सरकार ने इजराइल को सबक सिखाने की बजाय हिजबुल्लाह के निशस्त्रीकरण की मांग शुरू कर दी थी। यह सब अमरीका की ही कारगुजारियां थीं। ऐसे में हिजबुल्लाह ने भी सरकार में एक तिहाई भागीदारी की मांग की। उस वक्त सिनोरिया सरकार अड़ी रही और हिजबुल्लाह के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। पर हिजबुल्लाह ने भी सिनोरिया सरकार को धूल चटा दी क्योंकि हिजबुल्लाह को भी लेबनान में जनता का भारी समर्थन प्राप्त है।
राष्ट्रपति चुनाव अभी बाकी हैं
सिनोरिया सरकार की चाल थी कि वह अपने देश लेबनान की सेना को इजराइल के खिलाफ नहीं बल्कि हिजबुल्लाह के खिलाफ उतारना चाहती थी। सिनोरिया सरकार समर्थक पार्टियों में उस वक्त सबसे बड़े घटक के नेता साद हरीरी एक बड़ी निर्माण कंपनी के मालिक हैं, इस कंपनी की गणना दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में होती है। साद हरीरी ने संभवत यही सोचा होगा कि इजराइली हमलों से लेबनान के विध्वंस से उनकी कंपनी को बहुत सा कारोबारी फायदा हो सकता है। इसके साथ ही अब मार्च 14 गठबंधन चाहता है कि किसी तरह राष्ट्रपति पद भी उनके कब्जे में आ जाए। अभी लेबनान में सीरिया समर्थक राष्ट्रपति एमीले लाहोद सत्ता में हैं। 2004 में सीरिया के दबाव के चलते लेबनान में संविधान में संशोधन करते हुए लाहोद के कार्यकाल को विवादास्पद रूप से तीन सालों से लिए बढ़ाया था। तब से लेकर लगातार मांग उठ रही है कि राष्ट्रपति लाहोद को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। यह मुद्दा अभी सुलझना बाकी है। मार्च 14 गठबंधन ने अपना नाम इस तर्ज पर रखा है कि जब 2005 में रफीफ हरीरी की हत्या हुई थी, तो 14 मार्च को ही बेरूत में सीरिया के प्रभाव को लेबनान से कम करने के लिए इस गठबंधन ने भारी विरोध प्रदर्शन किए थे। इन चुनावों में मार्च 14 गठबंधन को जिताने में अमरीका सरकार ने जी-जान लगा दी थी। उसने लेबनान के लोगों को चेतावनी भी दी थी कि अगर हिजबुल्लाह को वे जीताते हैं, तो अमरीका द्वारा दी जाने वाली सारी मदद रोकी जा सकती है। लेबनानी लोगों को भी पता था कि जब फिलीस्तीन में हमास की जीत हुई थी, तो अमरीका ने उसे आर्थिक मदद देना बंद कर दिया और इजराइल को उस पर हमला करने की छूट दे दी थी। ऐसे में देखना दिलचस्प रहेगा कि लेबनान के राष्ट्रपति चुनावों का क्या हाल रहता है और सीरिया की दखलअंदाजी को खत्म करके गठबंधन 14 मार्च किस तरह लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करता है।
-आशीष जैन

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