31 December 2008

सुना मैंने नया साल आया


खिड़कियों के पुराने परदे बदल दो।
पुराना मेजपोश अब दिल को नहीं भाता।
गर्द जमी रहती है कुर्सियों पर
मुझसे मिलने अब कोई नहीं आता।
अंगीठी की आंच धीमी पड़ गई है
रोटियों का स्वाद कसैला सा है।
दीवारों पर स्याही के छीटें हैं
मेरा प्यारा पीकदान मैला सा है।
बचपन के प्यारे एलबम में सारी फोटूएं
न जाने क्यों आपस में चिपककर धुंधली हो गई हैं।
वो चिडिया का घोसला अब खाली है
बचा है, तो बस घास-फूंस का ढेर।
पुराने अखबारों के पुलिंदों के बीच में
दबा सा मैं सोचता हूं- ये सब क्या है?
मेरे मोजे, रूमाल, तौलिया सब रूठे हुए
बोलते हैं तू घिस गया है हमें इस्तेमाल करते-करते।
बल्ब जो सालों से टिमटिमा रहा है बंद-बदबूदार कमरे में
अब आजाद होना चाहता है।
किवाड़ सारे चरमराते रहते हैं
वक्त की सुइयां टूटी हुई हैं।
क्या यही वाजिब समय है
जब मैं बदल दूं अपना कलैंडर।
ले आऊं चंद खुशियां।
क्या वो 2009 में लटक रहा नो
मेरी जिंदगी में उम्मीदों को यस कह पाएगा।
हां थोड़ी आशा तो है कि मैं सपनों को सपनों से ज्यादा कुछ तो मानूंगा।
मैं भरोसा करूंगा कि मैं मौजूद तो हूं इस दुनिया में चाहे
उसी नाम से जिससे बचपन से मेरे मां-बाप मुझे बुलाते हैं
और अब दोस्त पुकार लेते हैं गाहे-बगाहे।
हां, मैं झिलमिलाती रोशनी हूं 2009 की।
मैं बदल तो सकता हूं खुद को
पर शर्त है कि तुम मेरे रूप से नाराज नहीं होओगे, चिढ़ाओगे नहीं मुझे।
नहीं तो मैं अपने खोल में वापस घुस जाऊंगा
और अगले साल तक वापस नहीं निकल पाऊंगा।
मुझे भरोसा है कि इस बार आप मेरी मदद करोगे
मेरी सारे कूड़े-करकट को बाहर का रास्ता दिखलाने में।
- आशीष जैन

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