खिड़कियों के पुराने परदे बदल दो।
पुराना मेजपोश अब दिल को नहीं भाता।
गर्द जमी रहती है कुर्सियों पर
मुझसे मिलने अब कोई नहीं आता।
अंगीठी की आंच धीमी पड़ गई है
रोटियों का स्वाद कसैला सा है।
दीवारों पर स्याही के छीटें हैं
मेरा प्यारा पीकदान मैला सा है।
बचपन के प्यारे एलबम में सारी फोटूएं
न जाने क्यों आपस में चिपककर धुंधली हो गई हैं।
वो चिडिया का घोसला अब खाली है
बचा है, तो बस घास-फूंस का ढेर।
पुराने अखबारों के पुलिंदों के बीच में
दबा सा मैं सोचता हूं- ये सब क्या है?
मेरे मोजे, रूमाल, तौलिया सब रूठे हुए
बोलते हैं तू घिस गया है हमें इस्तेमाल करते-करते।
बल्ब जो सालों से टिमटिमा रहा है बंद-बदबूदार कमरे में
अब आजाद होना चाहता है।
किवाड़ सारे चरमराते रहते हैं
वक्त की सुइयां टूटी हुई हैं।
क्या यही वाजिब समय है
जब मैं बदल दूं अपना कलैंडर।
ले आऊं चंद खुशियां।
क्या वो 2009 में लटक रहा नो
मेरी जिंदगी में उम्मीदों को यस कह पाएगा।
हां थोड़ी आशा तो है कि मैं सपनों को सपनों से ज्यादा कुछ तो मानूंगा।
मैं भरोसा करूंगा कि मैं मौजूद तो हूं इस दुनिया में चाहे
उसी नाम से जिससे बचपन से मेरे मां-बाप मुझे बुलाते हैं
और अब दोस्त पुकार लेते हैं गाहे-बगाहे।
हां, मैं झिलमिलाती रोशनी हूं 2009 की।
मैं बदल तो सकता हूं खुद को
पर शर्त है कि तुम मेरे रूप से नाराज नहीं होओगे, चिढ़ाओगे नहीं मुझे।
नहीं तो मैं अपने खोल में वापस घुस जाऊंगा
और अगले साल तक वापस नहीं निकल पाऊंगा।
मुझे भरोसा है कि इस बार आप मेरी मदद करोगे
मेरी सारे कूड़े-करकट को बाहर का रास्ता दिखलाने में।
- आशीष जैन
पुराना मेजपोश अब दिल को नहीं भाता।
गर्द जमी रहती है कुर्सियों पर
मुझसे मिलने अब कोई नहीं आता।
अंगीठी की आंच धीमी पड़ गई है
रोटियों का स्वाद कसैला सा है।
दीवारों पर स्याही के छीटें हैं
मेरा प्यारा पीकदान मैला सा है।
बचपन के प्यारे एलबम में सारी फोटूएं
न जाने क्यों आपस में चिपककर धुंधली हो गई हैं।
वो चिडिया का घोसला अब खाली है
बचा है, तो बस घास-फूंस का ढेर।
पुराने अखबारों के पुलिंदों के बीच में
दबा सा मैं सोचता हूं- ये सब क्या है?
मेरे मोजे, रूमाल, तौलिया सब रूठे हुए
बोलते हैं तू घिस गया है हमें इस्तेमाल करते-करते।
बल्ब जो सालों से टिमटिमा रहा है बंद-बदबूदार कमरे में
अब आजाद होना चाहता है।
किवाड़ सारे चरमराते रहते हैं
वक्त की सुइयां टूटी हुई हैं।
क्या यही वाजिब समय है
जब मैं बदल दूं अपना कलैंडर।
ले आऊं चंद खुशियां।
क्या वो 2009 में लटक रहा नो
मेरी जिंदगी में उम्मीदों को यस कह पाएगा।
हां थोड़ी आशा तो है कि मैं सपनों को सपनों से ज्यादा कुछ तो मानूंगा।
मैं भरोसा करूंगा कि मैं मौजूद तो हूं इस दुनिया में चाहे
उसी नाम से जिससे बचपन से मेरे मां-बाप मुझे बुलाते हैं
और अब दोस्त पुकार लेते हैं गाहे-बगाहे।
हां, मैं झिलमिलाती रोशनी हूं 2009 की।
मैं बदल तो सकता हूं खुद को
पर शर्त है कि तुम मेरे रूप से नाराज नहीं होओगे, चिढ़ाओगे नहीं मुझे।
नहीं तो मैं अपने खोल में वापस घुस जाऊंगा
और अगले साल तक वापस नहीं निकल पाऊंगा।
मुझे भरोसा है कि इस बार आप मेरी मदद करोगे
मेरी सारे कूड़े-करकट को बाहर का रास्ता दिखलाने में।
- आशीष जैन
bahut sundar aur hriday sparshi rachna hai.
ReplyDeleteMeri kaamna hai ki 2009 ka "No" apko kabhi "No" na kahe.Aapki sari kamnayen purna hon.
Itni sundar rachna dene ke liye dhanywad.
Bahut sundar evem hriday sparshi rachna hai bandhu.
ReplyDeleteIshwar kare ki 2009 ka ye 9 aapko kabhi "No" na kahe.
Aapki sabhi kaamnayen purna hon.
Itni sundar rachna dene ke liye dhanywad.
कुछ ही पलों में आने वाला नया साल आप सभी के लिए
ReplyDeleteसुखदायक
धनवर्धक
स्वास्थ्वर्धक
मंगलमय
और प्रगतिशील हो
यही हमारी भगवान से प्रार्थना है
कुछ ही पलों में आने वाला नया साल आप सभी के लिए
ReplyDeleteसुखदायक
धनवर्धक
स्वास्थ्वर्धक
मंगलमय
और प्रगतिशील हो
यही हमारी भगवान से प्रार्थना है
कुछ ही पलों में आने वाला नया साल आप सभी के लिए
ReplyDeleteसुखदायक
धनवर्धक
स्वास्थ्वर्धक
मंगलमय
और प्रगतिशील हो
यही हमारी भगवान से प्रार्थना है
ख़ुद को बदल हम नाराज नही होंगे, सुना मैंने नया साल आया पढ़कर लगा वाकई में नया साल आ गया.
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