08 April 2009

कलम-कूंची कमाल की

राजनीति का तेज-तर्रार चेहरा ममता बनर्जी अपनी कोमल भावनाओं को लेखन और चित्रों के माध्यम से पेश करती हैं।
पैरों में हवाई चप्पल, सादगीभरा रहन-सहन और शरीर पर साधारण-सी साड़ी। यहां देहात की किसी महिला की नहीं, पश्चिम बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी की बात की जा रही है। ममता जहां खड़ी होती हैं, वहीं रणक्षेत्र बन जाता है। जहां मजलूमों के साथ अन्याय है, वहां ममता हैं। दीदी के नाम से मशहूर ममता की गोद में जब कोई पीड़ित औरत सिर रखकर अपने आंसू बहाती है, तो खुद को बहुत हल्का महसूस करती है। कम ही लोग जानते हैं कि ममता का साहित्य से भी गहरा लगाव है। वे लेखक होने के साथ-साथ चित्रकार भी हैं। पश्चिम बंगाल के सबसे प्रतिष्ठित प्रकाशन समूह 'देज पब्लिशिंग' से उनकी अब तक 21 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी बेस्टसेलर किताबों में से कुछ हैं- मां, नागोल, जन्मायनी, सरनी, आज के घड़ा, मां माटी मानुष, जनता दरबार। मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी को ममता की यह कविता बेहद पसंद है- 'मृत्यु कौन डरता है तुमसे? तुमको चुनौती देने का साहस नहीं है किसी में? इसीलिए तो कहती हूं सामने आओ।' राजनीतिक व्यस्तताओं के चलते ममता ने कभी अपने भीतर के सृजक को मरने नहीं देती। लेखन और चित्रों के जरिए अपने मन की बात कहती रहती हैं। दो साल पहले कोलकाता में उनकी चित्राकृतियों की प्रदर्शनी लगी थी। इन चित्रों की बिक्री से जो रकम उन्हें हासिल हुई, वह उन्होंने नंदीग्राम के पीड़ित लोगों को दान में दे दी। उनके बनाए चित्रों में कोमलता है। राजनीति का उग्र चेहरा तो नदारद ही है। उनके चित्रों की थीम की बानगी देखिए- कई फूल हैं, मां का चेहरा है, जगन्नाथ और गणेश हैं, तो मयूर नृत्य भी। पेंटिंग करते वक्त ममता कैनवास पर वाकई ममता उड़ेलने लगती हैं। कोई भी कभी भी उनसे मिलने को जा सकता है। उनके दरवाजे सभी के लिए चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। सबसे मिलने की गांधीजी की परंपरा को ममता बनर्जी आज भी जीवित रखे हुए हैं। वाकई मानना पड़ेगा ममता के आत्मबल को।

-आशीष जैन

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