10 September 2008

ख्वाबों के पंखों तले हकीकत

क्या आपके मन की पतंग गाहे-बेगाहे कल्पना की उड़ान भरने लगती है? क्या आपको कल्पना के संसार में डूबे रहना अच्छा लगता है? खुश हो जाइए, क्योंकि कल्पना के परों से ही हकीकत का संसार मिल पाता है। वाकई कल्पना से सब कुछ हासिल करिए।


कहा जाता है कल्पना की उड़ान सबसे तेज वायुयान से भी अधिक है। हम सब भी कल्पना की उड़ानें भरते हैं। इंसान की कल्पना की पतंग आसमान छू लेना चाहती है। इंसान इन्हें साकार करने की इच्छा संजोता है हर पल। लेकिन कल्पना की पतंग उड़ाना कुछ के लिए कोरी और सतही बात हो सकती है। पर असलियत में कल्पना एक इंसान के लिए बहुत मायने रखती है। कल्पना इंसान के व्यक्तित्व का कायाकल्प कर देती है। कल्पना हमें सिखाती है कि हम खुद अपने भाग्य निर्माता हैं। अगर खुद को ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं, तो कल्पना की शक्ति को पहचानना होगा। मन और मस्तिष्क को अगर कल्पना के पंखों का सहारा मिल जाए, तो सफलता का हर दरवाजा खुलने लगता है। कल्पना करें, अपने सपनों को मन की गहराइयों से महसूस करें और फिर आप पाएंगे कि धीरे-धीरे हर ख्वाब हकीकत बनता जा रहा है। आज के समय में कल्पना के सहारे व्यक्तित्व विकास की अवधारणा तेजी से फैलती जा रही है। दरअसल व्यक्तित्व विकास में सबसे अहम भूमिका मन, मस्तिष्क और शरीर की होती है। अगर कल्पना के सहारे हम मन, मस्तिष्क और शरीर का विकास कर अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित कर सकें, तो निश्चित ही सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। कल्पना पुरुष, महिला, युवा या बुजुर्ग सबके लिए अहमियत रखती है। व्यक्तित्व विकास का मूल हम सभी के भीतर ही निहित है, पर हम सब इस गुण को बाहरी संसार में खोजते रहते हैं। सोचें, पूरी शिद्दत से सोचें और मन की गहराइयों में डूब जाएं। आप देखेंगे कि कल्पना ने न केवल आपका शरीर बल्कि मन की आपकी हर सोच को पूरा करने में आपकी मदद कर रहा है। आपका व्यक्तित्व निखर रहा है। तो फिर खो जाइए कल्पना के महासागर में।

कल्पना का मन

आप चाहे कुछ भी हासिल कर लें, मन में एक न एक इच्छा फिर भी शेष रहती ही है। ऐसे में कल्पना के घोड़े दौड़ाते रहें, मन में अपने सपनों को पलने दें। मन की उड़ान को रोकें नहीं। ओशो के अनुसार, 'हर बीज अपने अंदर एक विशाल वृक्ष की संभावना लिए पैदा होता है। जब एक बीज वृक्ष बन सकता है, तो सारे बीज वृक्ष बन सकते हैं। बस जरूरत बीज की चाहत को हमेशा संजोकर रखने की है।' बचपन में हम सब कल्पना का एक विशाल संसार लेकर पैदा होते हैं। दिनभर उसी संसार में खेलते-कूदते हैं। धीरे-धीरे हमारा यह गुण लुप्त होने लगता है और हम अपनी कल्पना को तिलांजलि देकर तर्क को महत्त्व देने लगते हैं। तर्क से हम अपनी सीमाओं में बंधकर रह जाते हैं। हर चीज में हमें लाभ-हानि नजर आने लगती है। हम खुलकर सपने नहीं देख पाते। जिंदगी भर हमारे मस्तिष्क में ख्वाबों की अधूरी तस्वीर रहती है। हमें सपने बेकार लगते हैं। उनमें जीना और उन्हें महसूस करना बचपना लगने लगता है। अगर हम तर्क में थोड़ा सा कल्पना का रंग घोल दें, तो हमारी सोच का दायरा विशाल हो जाता है। कल्पनाशील व्यक्ति पहले दिल की सुनता है, फिर अपने दिमाग की। वह समस्या आने पर अपनी कल्पनाओं के परों को खोलता है। हर दिशा और पहलू से चिंतन-मनन करने के बाद मन उस हल को मान लेता है और फिर हकीकत में भी समस्या सुलझ जाती है। हम अनंत शक्ति लेकर पैदा हुए हैं। आइंस्टीन के मुताबिक, 'कल्पना ज्ञान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।' ऐसे में अगर आप मन की कल्पनाओं की सम्मान करना सीख जाएं और उनके मुताबिक अपना जीवन ढाल लें, फिर आप भी यही कहेंगे, 'मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।'

कल्पना से सेहत

लेखक रव्मेज सासन के एक लेख के अनुसार नवीनतम शोधों के परिणाम बतलाते हैं कि कल्पनाशीलता हमारी सेहत को प्रभावित करती है। एक कल्पनाशील व्यक्ति खुशियों को कहीं बेहतर ढंग से महसूस करता है और जीवन की छोटी-छोटी बातों में खुशियां खोज लेता है। वह ऐसे लोगों की अपेक्षा स्वस्थ रहता है, जो जीवन में हर बात को तर्क के आधार पर लेते हैं। कल्पना की उड़ान क्रियाशीलता बढ़ाती है। सपनों और कल्पनाओं से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है और भयंकर बीमारियों से बाहर निकलने की ताकत मिलती है। जो लोग कल्पना करते हैं, उनका तनाव भी जल्दी दूर होता है। शरीर में रक्त का प्रवाह भी कल्पना से प्रभावित होता है। शोध में देखा गया है कि कल्पना के सहारे कई लोग सालों तक युवा बने रहे और जीवन का आनंद बेहतर ढंग से उठा पाए। जापान के वृद्ध लोगों से जब उनकी दीर्घायु का राज पूछा गया तो उनका जवाब था, 'हमने तो अपनी कल्पनाओं में अपने स्वस्थ जीवन की छवि बना रखी है।हम कल्पना करते हैं और वो साकार होने लगती है।'

सामाजिक गुणों की खान

ऐसा नहीं है कि कल्पनाशील व्यक्ति सिर्फ अपने खयालों में खोया रहता है। कल्पनाशील इंसान सामाजिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभा पाते हैं। व्यक्ति की एकाग्रता, धैर्यशीलता, हास्यबोध और आत्मविश्वास जाग्रत करने के लिए मनोवैज्ञानिक कल्पना-शक्ति का सहारा लेने की सलाह देते हैं। लेखक स्टेप जोन्स कहते हैं, 'इंसान कल्पना की मदद से संवेदनाओं को बेहतर तरीके से महसूस कर पाता है। दूसरों के दर्द और तकलीफ में भी शामिल होने के लिए एक सच्चा दिल चाहिए, जो कल्पनाशीलता से ही हासिल होता है।'

समस्याओं का हल

मनोवैज्ञानिक विषयों के लेखक मार्टिन रोसमैन के अनुसार, 'कल्पनाशीलता एक तरह की पॉजिटिव सोच होती है। इसमें हम अपने आने वाली हर चीज के बारव् में विस्तार से सोचते हैं। फिर उसका हल निकालते हैं। व्यक्ति को यह पता होता है कि यह सब वास्तविक नहीं है। पर असलियत में उन परिस्थितियों का सामना करने पर समस्या हल करने के कई विकल्प सामने होते हैं। कल्पना के सागर में गोता लगाते हुए उन्हें कोई न कोई ऐसा मोती मिलता है, जो उनका काम आसान बना देता है।'

लक्ष्य बनाए आसान

मनुष्य अपने जीवन काल में मस्तिष्क का पांच फीसदी हिस्सा ही इस्तेमाल कर पाता है। ऐसे में दिमाग के तार खोलने में भी कल्पना की अहम भूमिका है। थॉमस एडिसन, न्यूटन हों या जॉर्ज बनार्ड शॉ, ये सभी लोग किसी आविष्कार या कृति को वास्तविकता के धरातल पर उतारने से पहले मस्तिष्क में गहन कल्पना करते थे। अमरीकी मनोवैज्ञानिक दौड़ से पहले धावकों को कल्पना करने की प्रेरणा देते कि वे दौड़ जीत चुके हैं। इस कल्पना से उनका मस्तिष्क आने वाली बाधाओं पर केन्द्रित हो जाता और हल खोज लेता। इससे धावक जीत के लक्ष्य को आसानी से पा लेते। हेलेन केलेर बचपन से ही न सुन सकती थी, न देख सकती थी। फिर भी उनका मस्तिष्क मात्र कल्पनाओं के सहारे कई भाषाओं को सीखने में सक्षम हुआ। इससे साबित होता है कि कल्पना में आया एक आइडिया वाकई दुनिया बदलने की ताकत रखता है। हर मर्ज की एक दवाएक गृहिणी दिनभर अपने काम में इस तरह मशगूल रहती है कि अगर कुछ पल के लिए कल्पना के संसार में जीए, तो सारी थकान पलभर में दूर हो जाती है। ऑफिस में काम करता एक पुरुष अगर अपने काम लेकर थोड़ा सा हवाई हो जाए और कल्पना के सहारे खुद को थोड़ा बेहतर महसूस करे, तो उसकी कार्यक्षमता में इजाफा होता है। युवावर्ग जहां अपने करियर को लेकर चिंतित रहता है, वहीं बुजुर्ग अपने भविष्य को लेकर परेशान। ऐसे में अगर हम अपने जीवन में कल्पना के लिए थोड़ा सा समय निकाल पाएं, तो जिंदगी आसान लगने लगती है। हम सबके लिए जरूरी है कि हम बच्चों का भोलापन उधार लें और कल्पनाओं के संसार में खो जाएं। इससे हम खुद को जान पाएंगे। क्या हैं हम, क्या हैं हमारी इच्छाएं और क्या हैं उनका समाधान!

कल्पना को दें नई उड़ान

डॉ. विन वेनगेर अपनी पुस्तक 'दी आइंस्टीन फैक्टर' में कल्पनाशीलता को विकसित करने की तकनीक बतलाते हैं।

1. एक शांत जगह आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं और आंखें बंद कर मन को शांत रखें। कल्पनाओं के सागर में गोता लगाने के लिए एक अलग कमरा तय करें।

2. अब आप अपनी कल्पनाओं के द्वार खोल दें और आप जो कुछ अनुभव कर रहे हैं, उसे जोर-जोर से बोलें। जहां तक हो, किसी व्यक्ति से अपनी बात कहें या अपने सामने एक टेपरिकॉर्डर भी रख सकते हैं।

3. अपनी कल्पनाओं के इस कमरे में जो कुछ भी आप अनुभव करते जा रहे हैं, उसे बोलते जाएं। स्वाद, सुगंध, माहौल से जो कुछ आप ग्रहण कर रहे हैं, उसे बोलें।

4. बिना किसी दबाव के जो कुछ आप अनुभव कर रहे हैं चाहे वो चित्र हो, रंग हो, जोर से बोलें।

5. लगातार रोज यह प्रक्रिया 20 मिनट तक दोहराएं।

6. यह प्रक्रिया कम से कम 3 सप्ताह तक करें।

7. इस अभ्यास से आपका मस्तिष्क आपकी कल्पनाओं के अनुकूल ढलेगा और आपकी बुद्धिमता में इजाफा होगा।

एक्टिव इमेजिनेशन का कमाल

मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग ने 'एक्टिव इमेजिनेशन' पद्धति द्वारा व्यक्तित्व विकास की अवधारणा पेश की। इस पद्धति से व्यक्ति खुद के अवचेतन मन से संपर्क कर सकता है।

1. जुंग खुद से जुड़ने की सलाह देते हैं। अपने अंतर्मन का सम्मान करते हुए बुद्धिमता का महत्त्व आंकना चाहिए। हंसी से भी व्यक्ति का व्यवहार झलकता है। कभी भी खुद को जरू रत से ज्यादा गंभीरता से न लें। अपने अंतर्मन की यात्रा को सहजता से लें। आंखें बंद कर चित्रों की कल्पना करें। यह आपके सपनों का रास्ता हो सकता है। मन के चित्रों को स्पष्ट से अधिकतम स्पष्ट करें। अगर आपका अवचेतन इस चित्र में बदलाव चाहता है, तो उसे होने दें। स्वप्न, कल्पनाएं प्रतिपल बदलती हैं। इसलिए बिना घबराए चित्रों को चलने दें। इसके बाद अवचेतन आपसे बात करता जाएगा।

2. किसी व्यक्ति या वस्तु, जिससे आपको लगता है कि मदद मिल सकती है, उससे वार्तालाप करें। धीरे-धीरे करके जोर से बोलते जाएं। अपने संवाद लिखें। इन्हें अपने दिमाग में साकार करते जाएं। इसके बाद अपने मस्तिष्क को शांत करें और अवचेतन मन के बहाव को दुबारा स्थापित करें।3. कुछ समय बाद अवचेतन मन से भेजी गई सूचनाएं और अधिक साफ हो जाती हैं। इससे कल्पनाओं और वास्तविकता का भेद मिटने लगता है।

-आशीष जैन

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