खुद की पहचान करें
ईश्वर ने हम सबको कोई न कोई काम अच्छी तरह से करने की योग्यता दी है। (रोमन्स, 12:6, टी.एल.बी)
हर्मन मेलविल कहते हैं, 'नकल करके सफल होने से ज्यादा अच्छा यह है कि मौलिक बनकर असफल हो जाएं।' सही बात है कि जब हम किसी दूसरे जैसा बनने की कोशिश करते हैं, तो हमारे दूसरे स्थान पर ही रहते हैं। अगर हमें आदर्श स्थिति पर पहुंचना है, तो खुद अपना रास्ता बनाना होगा। आम लोग लीक से हटकर चलने की बजाय भीड़ के साथ ही चलना पसंद करते हैं। प्रभु यीशु ने लोगों को दया और प्रेम का संदेश देने का निश्चय किया और वे इसमें सफल ही रहे। सही बात है कि अगर मैं अपने स्वरूप को ही कायम नहीं रख पाऊंगा, तो मेरी पहचान क्या होगी? दोस्तो, ईश्वर ने आपको बनाया है और अगर वह आपसे संतुष्ट है, तो आपको भी संतुष्ट होना चाहिए।
कर्म में यकीन करें
काम करने से अमीरी आती है, बातें करने से गरीबी आती है। (प्रोवब्र्स 14:23, टी.एल.बी)
जॉर्ज वाशिंगटन कार्वर कहते हैं, 'निन्यानवें फीसदी मामलों में वही लोग असफल होते हैं, जिनमें बहाने बनाने की आदत होती है।' हम में से ज्यादातर लोग काम करने की बजाय बहाने बनाते हैं। इस वजह से वे असफल हो जाते हैं। फिल. 2:14-15, टी.एल.बी में लिखा है, 'चाहें आप कोई भी काम करें, शिकायत करने और बहस करने से बचें, ताकि कोई आपके खिलाफ एक शब्द भी न बोल पाए।' ईश्वर के सामने बहाने चलते भी नहीं है। ईश्वर सिर्फ आपके काम को देखता है। अगर आप कर्म करेंगे, तो फल जरूर मिलेगा। जो व्यक्ति काम की बजाय सिर्फ बोलने में यकीन करता है, वह कभी भी ईश्वर का प्रिय नहीं हो सकता। ईश्वर और भाग्य को खुश करने का सबसे अच्छा है- काम करना।
दूसरों की मदद करें
और जो भी आपको एक मील चलने के लिए मजबूर करे, उसके साथ दो मील आगे तक जाएं। (मैथ्यू 5:41)
हमें पाने से पहले देना होता है। जीवन में सफलता का सबसे आसान तरीका है कि आप दूसरों को दें। आपकी की गई मदद आपके पास लौटकर आती है। ईसामसीह का कहना है कि जो व्यक्ति दयालुता के बीज बोता है, उसे लगातार फसल मिलती रहती है। प्रोवब्र्स 11:17 में लिखा है, 'जब आप दयालु होते हैं, तो आपकी आत्मा को पोषण मिलता है। जब आप क्रूर होते हैं, तो यह नष्ट हो जाती है।' दूसरों के लिए आपके बोले प्रशंसा के दो शब्द बहुत मूल्यवान होते हैं। इसमें कुछ भी खर्च नहीं होता है। ईश्वर दयालु और दाता है, उसकी तरह बनें और सबका भला करें। इससे आपकी जिंदगी में पहले से बेहतर होने लगेगी।
आलोचना से न घबराएं
अगर आप उपहास उड़ाने वाले को बाहर निकाल देंगे, तो आप तनाव, लड़ाई और झगड़े से मुक्त हो जाएंगे। (प्रोवब्र्स 22:10, टी.एल.बी.)
डेल कारनेगी ने कहा है, 'कोई भी मूर्ख आलोचना कर सकता है, बुराई कर सकता है और शिकायत कर सकता है और ज्यादातर मूर्ख यही करते हैं।' काम की आलोचना करना उसे करने से हजार गुना ज्यादा आसान काम है। हमें इससे बचना चाहिए। सभी प्रगतिशील लोगों में एक खास बात होती है कि आलोचना उनकी तरफ खिंची चली आती है। ऐसे में घबराना बेकार है। अगर आप कुछ नया करते हैं, तो लोग बातें बनाने लगते हैं। उन्हें लगता है कि यह इंसान कैसे बंधे-बंधाए नियमों को तोड़ सकता है। खुद को बड़ा बनाएं और किसी के आलोचक न बनें और न ही खुद की आलोचना से दुखी हों।
ईष्र्या न करें
आरामदेह नजरिया व्यक्ति के जीवन को लंबा करता है, ईष्र्या इसे कम करती है। (प्रोवब्र्स 14:30, टी.एल.बी.) ईश्वर के हम सब की दौड़ निश्चित कर रखी है। अगर हम दूसरों की गति को परखने लगेंगे, तो हम खुद गिर जाएंगे। चाल्र्स कोल्टन ने कहा है, 'सभी भावनाओं में ईष्र्या सबसे कठोर सेवा करवाती है और सबसे बुरी तनख्वाह देती है।' आपकी जिंदगी बेशकीमती है, इसमें दूसरों के पास मौजूद चीजों की चाहत में बर्बाद नहीं करना चाहिए। ईष्र्या की बजाय जीवन में प्रेम पैदा करना चाहिए। जोश बिलिंग्स ने कहा है, 'प्रेम दूरबीन से देखता है और ईष्र्या माइक्रोस्कोप से देखती है।' ईष्र्या की बजाय जब इंसान दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी खोजने लगता है, तो उसका जीवन सुखद बन जाता है।
धन्यवाद दें
उन सब चीजों के लिए खुश हों, जो ईश्वर आपको देने की योजना बना रहा है। मुश्किलों में धैर्य रखें और हमेशा प्रार्थना करें। (रोमन्स 12:12 टी.एल.बी)
आज के दिन धन्यवाद देने के लिए सौ चीजें खोजें। जीवन में कृतज्ञता का भाव रखने से जीवन सरल बन जाता है। हमें ईश्वर ने खुशियों से भरा जीवन जीने के लिए हर जरूरी चीज दी है। इनका आनंद उठाना सीखें। महत्वपूर्ण चीज यह है कि जो चीजें आपको हासिल हुई हैं, उन्हें आप अपने कर्मों का नतीजा मानते हैं या ईश्वर की नियामतें। ईश्वर की नियामतों के लिए उसे धन्यवाद दें और उससे प्रार्थना करें, 'हे ईश्वर, आपने मुझे इतना कुछ दिया है, मुझे एक चीज और दें- कृतज्ञ हृदय।'
-प्रस्तुति: आशीष जैन