20 November 2008

प्रज्ञा पर प्रश्न चिह्न





मालेगांव बम धमाके के सिलसिले में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की जिंदगी पर एक नजर-


अधूरी हसरतों का दूसरा नाम है प्रज्ञा। उसकी जिंदगी के हर पन्ने में एक कहानी छुपी हुई है। मध्यप्रदेश के भिंड जिले के लहार कस्बे के गल्ला मंडी रोड पर आयुर्वेदिक क्लिनिक चलाने वाले वैद्य पिता चंद्रपाल सिंह और मां सरला देवी की बेटी है प्रज्ञा। उनका जन्म तो मध्यप्रदेश के दतिया जिले में हुआ पर लालन-पालन लहार में। चार बेटियों और एक बेटे में दूसरे नंबर की प्रज्ञा में बचपन से ही लड़कों जैसी चपलता थी। जूड़ो-कराटे में महारत हासिल करके वह बिगडै़ल लड़कों की पिटाई तक कर दिया करती थी। लड़कियों की बजाय उसे लड़कों जैसे कपड़े- जींस और कमीज पहनना पसंद था। कॉलेज के दिनों से ही वह मोटर साइकिल पर घूमने की शौकीन थी। पल्सर और बुलैट जैसी भारी गाडियां भी प्रज्ञा आसानी से चला लेती थी। पढ़ाई में औसत विद्यार्थी थी। लहार से इंटरमीडिएट परीक्षा पास की और भिंड कॉलेज से इतिहास में स्नातक भी किया।सिलसिला चलता रहाकॉलेज के दिनों में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गई। नब्बे के दशक के आखिर तक वह विद्यार्थी परिषद में रही। वाक्‌पटुता और हाजिरजवाबी के चलते काफी मशहूर हुई और भोपाल, देवास, जबलपुर, इंदौर में अपने भाषणों से छा गई। ऐसा माना जाता है कि 1998 के विधानसभा चुनाव से पहले भिंड जिले की मेहगांव सीट से चुनाव लड़ने की भी उसने कोशिशें कीं। गुजरात चुनाव के दौरान भी उसे चुनावी सभाओं में देखा गया। सन्‌ 2002 में उसने 'जय वंदेमातरम' और 'राष्ट्रीय जागरण मंच' बनाया।प्रज्ञा के साध्वी बनने के पीछे में प्रेम में असफलता को खासी वजह माना जाता रहा। अपने एक साथी नेता की किसी और से शादी होने पर फिर कभी शादी के बारे में नहीं सोचा। सन्‌ 2004 में उसके पिता लहार छोड़कर सूरत में बस गए।


बन गई संन्यासिन

जनवरी 2007 में जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद के समक्ष संन्यास लेकर साध्वी पूर्ण चेतनानंद गिरि बन गई और प्रवचन करने लगी। सूरत को अपनी कार्यस्थली के रूप में स्थापित करने के बाद वहां अपना आश्रम बना लिया। उनके परिजन अभी सूरत में ही रह रहे हैं। उसके पिता चंद्रपाल सिंह का कहना है, 'मुझे 99 फीसदी विश्वास है कि प्रज्ञा का मालेगांव बम मुझे विस्फोट में कोई हाथ नहीं है। पर एक फीसदी अविश्वास इसलिए है क्योंकि साध्वी बनने के बाद वह पिछले दो साल से घर नहीं लौटी। अब वह मुझे पिताजी नहीं डॉक्टर साहब कहकर पुकारती है। सबकी तरह मैं भी चाहता हूं कि सच्चाई जल्द से जल्द सबके सामने आए।'

- प्रस्तुति- आशीष जैन

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