20 December 2009

अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो

नन्ही कली खिलना चाहती है। अगर आपने इसे बढऩे में मदद की, तो ये फूल बनकर फिजां में खुशबू बिखेरा करेगी। वाकई निराली हैं हमारी बेटियां। एक बेटी ही बहन है, पत्नी है, जननी है और परिवार को जोड़कर रखने वाली डोर भी। एक मायने में सृष्टि की सृजनकर्ता हैं बेटियां... ये बेटियां ममता की मूरत हैं। इनकी उपलब्धियां असीम हैं। जीवन को अमृत तुल्य बनाने वाली इन बेटियों को इतना लाड़ और प्यार दो कि हर लड़की की जुबान पर यही बात हो... अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो।

जिस घर में लड़कियां हैं, पूरे घर में आपको प्यारी-सी महक मिलेगी। एक अनोखी किस्म की नजाकत और नफासत, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। बेटियां घर को सजाती है, संवारती है और घर को संबंधों की ऊर्जावान डोर में बांध लेती हैं। बेटियां परिवार के लिए लक्ष्मी हैं। वे चाहे जहां रहें, हमेशा परिवार की चिंता उन्हें सालती रहती है। देश के विकास में अगर बेटियों का योगदान देखें, तो पता लगेगा कि आजादी और आजादी के बाद हर मोर्चे पर बेटियों ने अपना हुनर दिखाया है। लड़कियों ने आसमान से लेकर समंदर की गहराइयों तक सफलता का परचम लहराया है। आज भी घर के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि लड़कियां जिस घर में पैदा होती है, वहां बरकत आती है।
इन्हें देखकर लगता है कि कुदरत ने सारी ममता बेटियों की झोली में डाल दी है। आज भी समाज में ऐसी कई बेटियां हैं, जिन्होंने समाज और दुनिया के लिए खुद को जोखिम में डाला। सानिया मिर्जा और कल्पना चावला के पिता से बात करके देखिए, बेटियों के कमाल की बदौलत आज इनके परिवार को फख्र है।
कौन लेगा जिम्मेदारी?
पंजाब जाकर देखिए, यह राज्य आज बहनों के लिए तरस रहा है। राखी के दिन वहां हजारों लड़कों की कलाइयां सूनी रहती हैं। कारण साफ है। पंजाब में लड़कियों की तादाद तेजी से घटती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। नई रिपोट्र्स पर विश्वास करें, तो देश में कन्या भू्रण हत्या तेजी से बढ़ रही है। अब वो दिन दूर नहीं, जब आपको नवरात्रों पर जिमाने के लिए कन्या कहीं नजर नहीं आएंगी। बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या के लिए अनपढ़ या पिछड़े लोगों की बजाय मॉडर्न और एजुकेटेड लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं। उच्च मध्यवर्गीय परिवारों तक में लड़कियों को दोयम दर्जा दिया जाता है। अगर यह चलन जारी रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब नारी जाति के अस्तित्व पर ही खतरा होगा। इंस्टीट्यूट ऑफ डवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में स्नातक या इससे अधिक पढ़े-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढ़कर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए। अध्ययन बताते हैं कि जहां पढ़े-लिखे लोग भ्रूण हत्या के लिए आधुनिक तरीकों जैसे अल्ट्रासाउंड तकनीक आदि का इस्तेमाल करते हैं, वहीं ग्रामीण लोग कन्या जन्म के बाद ऐसा करते हैं।
प्रयास जरूरी
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है। सामाजिक चेतना के लिए कई संस्थाएं सालों से काम कर रही हैं, पर नतीजे सामने हैं। बजाय इन सारी बातों के, हर परिवार को सोचना होगा कि बेटी का क्या मोल है? एक बेटी ही बहन है, पत्नी है, जननी है और एक मायने में सृष्टि की संचालक भी। हिमाचल सरकार की योजना काबिले तारीफ है। वहां पिछले दिनों 'बेटी अनमोल हैÓ अभियान चलाया गया, जिसमें जागरूकता जत्थे के लोगों ने घर-घर जाकर बताया कि यदि कन्या शिशु दर गिरती रही, तो आने वाले बरसों में लड़कियां ढूंढें नहीं मिलेंगी और समाज का संतुलन ही गड़बड़ा जाएगा। हालांकि हिमाचल प्रदेश का लिंगानुपात अन्य राज्यों की तुलना में ठीक है, लेकिन फिर भी आंकड़ों के मुताबिक 2019 में इस दर से तीन लड़कोंं पर एक लड़की और 2031 में सात लड़कों पर एक लड़की रह जाएगी। ऐसी सार्थक पहल को सभी राज्यों में अमल किया जाना चाहिए। सरकार और कानून को सबसे ज्यादा जोर तो इस बात पर देना चाहिए कि किसी तरह से महिलाओं की आबादी बनी रहे, नहीं तो अनर्थ होने में देर नहीं लगेगी।

शर्मसार करते आंकड़े
- देश में हर 29वीं लड़की जन्म नहीं ले पाती है, वहीं पंजाब में हर पांचवी लड़की का कोख में कत्ल हो जाता है।
- देश में हर 1000 पर 14 लड़कियां कम हो रही हैं, वहीं पंजाब में हर एक हजार पर 211 लड़कियां कम हो
रही हैं।
- इंस्टीट्यूट ऑफ डवलप मेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में मैट्रिक से कम पढ़े-लिखे लोग 40 फीसदी थे, जबकि 2006 में यह घट कर 31.8 फीसदी रह गई। इसी तरह दसवीं से स्नातक के बीच शिक्षित 39 फीसदी लोगों ने जहां 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाया था, वहीं 2006 में यह गिनती 32.9 फीसदी रह गई। इसके विपरीत 2002 में स्नातक या इससे अधिक पढ़े-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढ़कर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए।
- 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में 1000 लड़कों पर 927 लड़कियां हैं।


मां को पुकार

क्या हो गया है देश की मांओं को? अपनी कोख में फूल-सी बेटी को जगह देकर क्यों उसका कत्ल करने को तैयार हो जाती है वो? लड़के की चाह में वो ये क्यों भूल जाती है कि वह भी तो औरत है? ममता की मूरत... जीवन को सींचने वाली औरत। फिर क्यों वह अपनी बिटिया को जन्म देने में कतराती है? क्यों कन्या भ्रूण हत्या करके वह अनगिनत अजन्मी बेटियों का श्राप ले रही है? दुनिया में महिला ही शायद एकमात्र ऐसी जाति हो सकती है, जो अपने जैसी किसी लड़की को जन्म देने से कतराने लगी है। देश की महिलाओं के लिए यह शर्म का विषय है कि वे कन्या भ्रूण हत्या पर अपनी मौन स्वीकृति देती आ रही हैं।
बेटी की पुकार
मां... तेरी कोख में रहकर मुझे लग रहा है कि तू मुझे जरूर जन्म देगी... मैं दुनिया में आना चाहती हूं... तेरी पनाह पाकर मैं दुनिया को दिखलाना चाहती हूं कि कन्या को श्राप समझने वाले लोग गलत हैं। मुझे पता है कि देश में करोड़ों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है... पर अगर तू मुझे जन्म देगी, तो मैं एक लड़के से बढ़कर तेरे परिवार का नाम ऊंचा करूंगी। मां मैं कहना चाहती हूं कि अगर दुनिया में इसी तेज रफ्तार से कन्या भ्रूण हत्याएं होती रही, तो दुनिया का सौंदर्य ही खत्म हो जाएगा...

- आशीष जैन

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