28 February 2009

...हम हौसलों से उड़ा करते हैं

कलम थामने वाली कोमल कलाइयों ने फाइटर प्लेन को भी बखूबी कंट्रोल किया। अलीगढ़ की सुमन शर्मा ने सेना में कोई प्रशिक्षण नहीं लेने के बावजूद मिग-35 और एफ-16 को बड़ी कुशलता से उड़ाया। अब वे रूसी मिग उड़ाने वाली दुनिया की पहली महिला बन चुकी हैं। इस जोशीले सफर की कहानी, खुद सुमन शर्मा की जुबानी-
20 हजार फीट की ऊंचाई। हाथ में फाइटर प्लेन का कंट्रोल स्टिक। मुंह पर ऑक्सीजन मॉस्क। तेजी से धड़कता दिल। प्लेन का एसी चालू है, पर चेहरे पर पसीने छूट रहे हैं। नीचे झांकने पर पूरी दुनिया छोटा-सा खिलौना नजर आने लगी। ऐसे में जरा सी चूक हो जाए, तो जान पर बन आने का डर। कुछ-कुछ ऐसा ही एहसास मुझे 9 फरवरी को सातवें एयरो इंडिया में हुआ जब मैंने एफ-16 फाइटर प्लेन को उड़ाया। हवा को चीरते हुए प्लेन ज्यों ही आगे बढ़ा, मानो जिंदगी थम सी गई है। लगा मैं कोई पंछी हूं। बचपन में आसमान में उड़ते परिंदों को देखकर अक्सर मन करता था कि मैं भी नीलगगन में किसी पंछी की तरह उड़ती फिरूं। यकीन ही नहीं हुआ कि खुली आंखों से देखा मेरा सपना साकार हो रहा है। फिर तो कुछ ऐसा जोश आया कि तीन दिन बाद ही लड़ाकू विमान मिग-35 को भी उड़ा लिया।
मुकाबला गुरुत्वाकर्षण से

मैंने सुन रखा था कि उड़ान के दौरान मुझे गुरुत्वाकर्षण का दबाव झेलना पड़ेगा, पर इसका अनुभव कतई नहीं था। उड़ान भरते ही कुछ सैकंड के लिए गुरुत्वाकर्षण ने असर दिखाना शुरू कर दिया। मेरा खास 'जी सूट' फूलता चलता गया। मैंने एफ-16 की उड़ान के दौरान 6 'जी' और मिग-35 की उड़ान के दौरान 7 'जी' गुरुत्वाकर्षण झेला। दरअसल 'जी' गुरुत्वाकर्षण को मापने की इकाई है। जितना 'जी' मुझ पर पड़ा, कुछ सैकंड के लिए मेरा वजन उतना गुना बढ़ गया। मैं सांस जल्दी-जल्दी लेने लगी। प्लेन ऊपर जा रहा था और गुरुत्वाकर्षण नीचे की ओर खींच रहा था। हृदय ने रक्त को तेजी से पंप करना शुरू कर दिया ताकि मस्तिष्क तक रक्त पहुंचता रहे और मैं बेहोश ना होऊं। उड़ान के दौरान बेहोश होने के बचने के लिए मैंने कुछ खास उपाय किए। उड़ान के 2 घंटे पहले ढेर सारा पानी पिया, मुझे पेट से तेजी से सांस लेनी थी और शरीर के निचले हिस्से को दबाए रखना था। उड़ान के दौरान मैं लगातार पायलट के संपर्क में रही। वे मुझे सुझाव और चेतावनियां देते रहे। फ्लाइट से 4 घंटे पहले पायलट ने मुझे पूरी चीजें समझाईं। मैंने एफ-16 चालीस मिनट तक और मिग-35 बयालीस मिनट तक उड़ाया। आगे मेरा सपना है कि मैं सुपरक्रूज स्पीड उड़ाऊं।
ना चक्कर ना बेहोशी
कई लोग कहते थे कि फाइटर प्लेन उड़ाने के लिए गजब की मानसिक शक्ति होनी चाहिए। हर कोई ऐरा-गैरा इन्हें नहीं उड़ा पाएगा। मैंने अब पूरी दुनिया को बता दिया कि हम महिलाओं को कम ना समझें। फाइटर प्लेन उड़ाने का सफर भी बड़ा रोमांचक रहा। तीन साल पहले मैं बंगलौर गई थी। वहां सेंट्रीफ्यूगल चैंबर में पायलट ट्रेनिंग हो रही थी। शौक-शौक में मैं भी उसमें बैठ गई। फिर तो पूरे एक घंटे तक मैंने उड़ान भरी। इस दौरान न तो मुझे चक्कर आए, न ही बेहोश हुई। इसी दौरान पिछले साल मैं अमरीका गई और वहां एफ-16 लड़ाकू विमान की फैक्ट्री में गई। वहां मैंने इसके सिम्युलेटर को बखूबी उड़ा लिया।तैयारी पूरी थीडिफेंस की रिपोर्टिंग के दौरान मुझे पता लगा कि हिंदुस्तानी एयरफोर्स के लिए 126 लड़ाकू विमान खरीदे जा रहे हैं। मैंने शुरू से ही सारे मामले पर नजर रखी। मेरी इच्छा थी कि क्यों न मैं इन फाइटर प्लेन को उड़ाकर देखूं। इसके लिए मैंने 2007 में पिछले एयरो इंडिया में एफ-16 की कंपनी को अर्जी दी कि मुझे प्लेन उड़ाने की इजाजत दी जाए। इस साल के एयरो इंडिया में मुझे इसके लिए इजाजत मिली। मैंने अपनी तैयारियां शुरू कर दीं। इंटरनेट पर लड़ाकू विमानों से जुड़ी हुई सामग्री खोजी। पुराने पायलट के बात की। साथ ही डॉक्टर्स से भी जानकारी ली कि मेरा शरीर उड़ान के दौरान कितना दबाव झेल पाएगा। शरीर को संतुलित रखने के लिए जैज डांस सीख लिया था।
मुश्किल नहीं है कुछ भी
मेरा जन्म गुजरात के जामनगर में हुआ, पर रहने वाले हम अलीगढ़ के हैं। दिल्ली में शुरुआती पढ़ाई के बाद देहरादून में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में इंस्ट्रेक्टर का काम किया। तभी से मेरा मन सेना से जुड़ गया। बाद में मैं पत्रकारिता की दुनिया में आ गई और डिफेंस के बारे में फ्रीलांसिंग करने लगीं। आज मैं दिल्ली में 'साउथ एशिया डिफेंस एंड स्ट्रेटजिक रिव्यू' में रक्षा मामलों के लिए रिपोर्टिंग करती हूं। मम्मी प्रेमा, पापा रिटायर्ड कमांडर एचपी शर्मा और भैया कर्नल राजेश के सहयोग के बिना यह काम करना मुश्किल था। अपनी जैसी लड़कियों से कहना चाहती हूं कि दुनिया में कोई भी काम मुश्किल नहीं है। हो सकता है लक्ष्य मिलने में थोड़ा समय लगे, पर अगर आप धैर्य रखकर काम में लगे रहेंगे, तो देर-सवेर फतह आपकी ही होगी। मेरा मानना है कि सफलता के लिए स्वस्थ शरीर भी होना चाहिए, तभी आप अपने सपने पूरे कर सकते हैं।(जैसा उन्होंने आशीष जैन को बताया)

...आगे पढ़ें!

21 February 2009

लहरों के सरताज

नौसेना में जिंदगी के असली अनुभवों से गुजरने वाले पांच फाइनलिस्ट में तीन महिलाएं भी।

'पांच फाइनलिस्ट, उनमें भी तीन लड़कियां। पानी के बीच सैन्य अभ्यास। हर कदम पर युवा दिलों के हौसले की कड़ी परीक्षा।' इन दिनों नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर हर सोमवार रात 9 बजे दिखाए जा रहे 'मिशन नेवी- लहरों के सरताज' में युद्धपोत, पनडुब्बी से लेकर मिसाइल तक, हर वह चीज शामिल है, जो नौसेना के लिए दिल में रोमांच पैदा कर दे। चयन के दौरान प्रतिभागियों को कई शारीरिक और मानसिक जांचों से गुजरना पड़ा। पांच अंतिम फाइनलिस्टों को नौसेना एक माह का असल प्रशिक्षण दे रही है। जिस फाइनलिस्ट को सीरीज के अंत में सबसे योग्य पाया जाएगा, उसे नौसेना के साथ एक अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर जाने का मौका मिलेगा। इन पांच में से तीन लड़कियां भी हैं- साक्षी, चैतन्या और सुरंजनी। 20 साल की साक्षी हवनूर बंगलौर की हैं और पुणे में बीए फर्स्ट इयर की पढ़ाई कर रही हैं। इनके पापा आर्मी में थे। साक्षी पढ़ाई पूरी करके पायलट बनना चाहती हैं। 28 साल की चैतन्या दातला पैदा आंध्रप्रदेश में हुई। पांडिचेरी में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बंगलौर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर विभाग में काम कर रही हैं। चैतन्या मिशन उड़ान में भी अंतिम 15 तक पहुंचने में कामयाब रही थीं। बकौल चैतन्या, 'मेरे लिए वाकई गर्व की बात है कि मैं भारतीय नौसेना की हिस्सा बनी। मेरे लिए यह नया सीखने का बहुत अच्छा अनुभव रहा।' 25 वर्षीया सुरंजनी एचआर बंगलौर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। साथ ही वे पर्यावरण के लिए काम कर रहे एक एनजीओ से भी जुड़ी हैं। वे बताती हैं, 'इस कंपीटिशन में चयन होने के लिए मैंने अपने भाई से वादा किया था। मैं आज तक 8 स्कूलों और 3 कॉलेजों में पढ़ाई कर चुकी हूं। इसलिए किसी भी परिस्थिति में आसानी से एडजस्ट हो जाती हूं।' सुरंजनी अपनी सफलता का मंत्र बताती हैं, 'सोचो मत, करो।' तीनों में एक बात समान है कि तीनों जिंदगी में संघर्ष को अहमियत देती हैं और आगे बढ़ने के लिए हर तरह की मुसीबत से टकराने के लिए तैयार रहती हैं।
-आशीष जैन

...आगे पढ़ें!

19 February 2009

फैशन वही जो दिल को छू ले

फैशन के रंग डिजाइनर राघवेंद्र राठौड़ की जुबानी।

फैशन यानी जो मन को भाए या फिर जो पर्सनेलिटी को निखारे। शायद वही जो मन को जमा, पहना और बन गए स्टाइलिश। पर फैशनेबल फिर भी नहीं बन पाएंगे क्योंकि असल में फैशन छुपा होता है हमारी पर्सनेलिटी में, जिसे आप एक सादा-सी शर्ट में भी इम्प्रेसिव बना सकते हैं। बस प्रजेंट करने का तरीका आना चाहिए। परिधान किसी भी शैली के हों अगर आपने बिंदास तरीके से उन्हें पहन लिया, तो यकीन मानिए, लोग आपके कायल हो जाएंगे। एक फैशन डिजाइनर होने के नाते फैशन को मैं इन्हीं शब्दों में बांध सकता हूं। बॉलीवुड और फैशन इंडस्ट्री के लोग जब मुझसे यह पूछते हैं कि एक उम्दा डिजाइन की प्रेरणा मुझे कहां से मिलती है, तो मैं यही कहता हूं मेरे लिए फैशन एक सोच है। इसके लिए मुझे कहीं जाना नहीं पड़ता। मेरी जहां नजर पड़ती है, वहां से नया आइडिया मिल जाता है और इस तरह प्रकृति से लेकर संस्कृति तक सब कुछ मेरी डिजाइनिंग का हिस्सा बन जाता है।
कुदरत है पाठशाला
इस कायनात को जिसने भी डिजाइन किया है, वह अद्भुत है। हर तरह के रंगों को लेकर पेड़-पौधे, फूल-पत्तियों को जिस खूबसूरती से बनाया गया है, उसे देखकर अक्सर मैं दंग रह जाता हूं। कहीं झरने का निर्मल सफेद पानी, तो कहीं अंधेरे की कालिमा। क्या आपने कभी बया का घोंसला देखा है। किस खूबसूरती से वह अपना घर डिजाइन करती है। स्टाइल के लिए मुझे कहीं जाना नहीं पड़ता, मैं प्रकृति से ही अपने डिजाइंस की प्रेरणा लेता हूं। फैशन तो पूरी दुनिया में एक-सा रहता है। हां, हर देश के मुताबिक वहां के लोगों का नजरिया बदलता जाता है और फिर बदलाव होते-होते वहां की संस्कृति में ढल जाता है। आज हमारे यहां के बंधेज और साडिय़ां विदेशों में मशहूर हो रही हैं और हमारे देश में बाहर के स्टाइल जुड़ रहे हैं। कण-कण में डिजाइनराजस्थान के कण-कण में डिजाइन बसे हैं। चूंकि मैं जोधपुर में पला-बढ़ा हूं, इसकी माटी की महक ही मुझे मदहोश कर देती है। राजस्थानी महिला जिस तरह से घूंघट करके रहती है और कालबेलिया नृत्यांगना जिस जोश से चारों ओर घूमती है, वे मेरे दिमाग में उनके पहनावे के लिए खास जिज्ञासा पैदा करते हैं। राजस्थान की मिट्टी में ही ऐसी खासियत है कि यहां के लोग अपने सादा कपड़ों में भी दूर से ही चमकीले नजर आते हैं। उनके कपड़ों का कमाल है कि लगता नहीं कि किसान खेत में दिनभर मेहनत करके घर लौट रहा है। एक राजस्थानी किसान की इमेज सोचते ही पगड़ी, धोती, मोजड़ी और मूंछें एक साथ ही दिमाग में आ जाती हैं। इन्हीं को बढ़ावा देने के लिए एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूं। कपड़ों के डिजाइंस के साथ-साथ मैं टेक्सटाइल पर भी ध्यान देने लगा हूं। मेरा मानना है कि कपड़ों को एक कॉम्बिनेशन की दरकार होती है। अक्सर हम सोचते हैं कि फलां शर्ट फलां पेंट पर जंचेगी या नहीं। पर अगर हम अपने बालों, जूतों, चेहरे के आकार को भी इसमें शामिल कर लें, तो आपको मिस्टर या मिस परफेक्ट होने से कोई नहीं रोक सकता।
कम्युनिकेशन का जरिया
कम्युनिकेशन का एक बेहतरीन जरिया है कपड़े। कपड़ों की मदद से लोग अपने मन की बात कहते हैं। अगर मैं पीला चोला डाल लेता हूं, तो आपके मन में एकाएक ही मेरे लिए धार्मिक छवि आने लगेगी। पहली नजर में लोग पहनावे से ही आपको परखते हैं। आप किसी शोक सभा में जा रहे हैं, तो खुद-ब-खुद सफेद या सादे कपड़े पहनना पसंद करेंगे। आपने जो पहना है, वह सामने वाले को आपके बारे में अदृश्य संदेश भेजता है। इसी से सामने वाला आपकी इमेज बनाता है, इसलिए खुद को परखें। फिल्मों को देखकर प्रभावित ना हों। किसी की नकल करने से अच्छा है, खुद का स्टाइल पैदा करें। मैं खुद बहुत स्टाइलिश कपड़े पहनना पसंद नहीं करता। मुझे सफेद रंग बहुत लुभाता है। कॉटन पेंट, सफेद शर्ट, बंद जैकेट और नोकदार जोधपुरी जूतियां मुझे परफेक्ट लुक देने के लिए काफी हैं। फिल्म इंडस्ट्री में अमिताभ बच्चन का डे्रस सेंस कमाल का है। उन्हें फैशन की जबरदस्त समझ है। कोई फैशन डिजाइनर भी उन्हें अनफिट कपड़े पहनाने लगे, वे मना कर देते हैं। उनके शो 'कौन बनेगा करोड़पति' के लिए ड्रेस डिजाइन करने में बहुत मजा आया, पर मेरे दिल के करीब 'एकलव्य' है। इस फिल्म में राजस्थानी कपड़ों के खूबसूरत प्रेजेंटेशन का बहुत दबाव था। मुझे खुशी है, दर्शकों को मेरे डिजाइन पसंद आए।
सादगी की बहार होगी
अक्सर कहा जाता है कि फैशन डिजाइनर सिर्फ रैंप या मूवीज के लिए कपड़े डिजाइन करते हैं, पर ऐसा नहीं है। मैं हमेशा लोगों की भावनाओं और देश के मौजूदा हालातों के मुताबिक कपड़ों की डिजाइनिंग पर जोर देता हूं। आने वाले समय में डिजाइनिंग पर देश के हालातों का असर पड़ेगा। मुंबई बम हादसों के बाद हमारी यही कोशिश है कि अब सादगी पसंद चीजों पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। चकाचौंध की बजाय लोगों के दिलों को छूने वाले कपड़े मार्केट में आएं। अब जो फैशन मार्केट में आएगा, वह हकीकत के नजदीक होगा।
-आशीष जैन

...आगे पढ़ें!

10 February 2009

साहस की नैया सफलता का किनारा

छप्पन साल की अमरीकी महिला जेनिफर फिगे बनीं अटलांटिक महासागर तैरकर पार करने वाली दुनिया की पहली महिला।

'पानी मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है। इसे छूते ही मुझमें गजब का जोश आ जाता है। मैंने 24 दिन पानी में गुजारे और 3,380 किलोमीटर की दूरी समंदर में तैरकर पार कर ली। फिर जब मैंने अपने पांवों के नीचे कैरव्बियाई बालू महसूस की, तो मेरी सारी थकान दूर हो गई। मैं खुशी से पागल हुए जा रही थी।' यह बात एक जलपरी कह रही है। जी हां, 56 वर्षीय अमरीकी महिला जेनिफर फिगे किसी जलपरी से कम नहीं हैं। जेनिफर ने अफ्रीका के केप वर्डे द्वीप से त्रिनिदाद तक तैराकी की और अब वे अटलांटिक महासागर तैरकर पार करने वाली दुनिया की पहली महिला बन गई हैं।
काश, शार्क मिलती
उन्होंने अपनी यात्रा इसी 12 जनवरी को शुरू की थी। तेज हवाओं और नौ मीटर ऊंची लहरों का सामना भी उन्होंने किया, पर हिम्मत नहीं हारी। अटलांटिक महासागर की यात्रा के दौरान उनका सामना बहुत सी व्हेलों, कछुओं और डॉल्फिनों से हुआ। वे बताती हैं, 'मैं समंदर में एक बार शार्क से सामना करना चाहती थी, पर रास्ते में मुझे एक भी शार्क नजर नहीं आई। शार्क से मुकाबले के लिए मैं एक खास किस्म के खोल में तैरती थी।'इस यात्रा से पहले उन्होंने अपने घर के स्वीमिंग पूल में घंटों मेहनत की और खुद को समंदर की परिस्थितयों से निपटने के लिए तैयार किया। इस सफर के बारे में जेनिफर कहती हैं, 'मेरा सालों पुराना सपना पूरा हो गया। मैंने बचपन में ही अपनी मम्मी को बता दिया था कि मुझे अटलांटिक महासागर पार करना है। जब मैं 11 साल की थी, तब एक बार मैं अपनी मां के साथ इटली जा रही थी। अटलांटिक महासागर के ऊपर से हवाई यात्रा के दौरान मैंने मजाक में मम्मी से कहा कि काश, मैं समुद्र में गिर पड़ूं और आगे का सफर तैरकर पूरा करूं और आज मेरा वही सपना पूरा हो गया है।'
आठ घंटे पानी में
सफर के बारे में बताते हुए जेनिफर रोमांचित हो उठती हैं और बोलती हैं, 'रोज मेरे आठ घंटे पानी में बीतते थे और उसके बाद मैं अपनी नाव में वापस आ जाती थी।' जब वे तैरती थी, तो उनकी नाव पर उनके साथ चलने वाली टीम उन्हें एनर्जी ड्रिंक फेंकते थे। कभी-कभी जब लहरें बहुत तेज चलती थीं, तो टीम के सदस्य खुद उनके पास जाकर पेय पदार्थ देकर आते थे। जेनिफर बोट पर सुबह 7 बजे उठती थीं। पास्ता और भुने हुए आलू खाकर समुद्री मौसम का अनुमान लगाती थीं। ऐसा भी हुआ कि खराब मौसम के चलते एक बार समुद्र में वे सिर्फ 21 मिनट तक ही तैर सकीं। तैराकी के समय फिगे लाल टोपी और वैट सूट पहनती थी। इसका कारण पूछने पर उनका जवाब रहता है, '1926 में इंगलिश चैनल तैरकर पार करने वाली पहली महिला गेर्टरूडे एडरले की एक तस्वीर हमेशा मेरे पास रहती है। वे भी तैराकी को अपनी जिंदगी मानती थीं। वे मेरव् लिए सबसे बड़ी आदर्श हैं और सबसे बड़ी बात है कि तैराकी के दौरान वह भी यही ड्रेस पहनती थीं।' साथ ही वे 1952 में 39 साल की उम्र में अटलांटिक महासागर में पहली बार नाव चलाने वाली महिला अन्ना डेविसन से भी बहुत प्रभावित हैं। बकौल फिगे, 'मैं अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और पिता की साइन की गई लाल शर्ट को भी अंदर पहनकर रखती हूं। यह मेरे लिए लकी चार्म है। इसी ने मुझे मुश्किलों से बचाया।' रात के समय वे मांस-मछली पर निर्भर रहती थीं। खान-पान पर इतना ध्यान देने की खास वजह थी कि उन्हें रोज 8 हजार कैलोरी बर्न करनी होती थी।
भटकी पर हारी नहीं
ऐसा नहीं है कि उनके लिए सब आसान था, पर जेनिफर बताती हैं, 'मैं कभी डरी नहीं। मैं हमेशा से ही बड़ा काम करने में भरोसा रखती थी। मुझे बहामा द्वीप समूह तक पहुंचना था, पर मैं थोड़ा भटक गई और 5 फरवरी को त्रिनिदाद के एक टापू तक पहुंचने में सफल हुई। मैंने लोगों को बता दिया कि एक महिला भी तूफानों का सामना कर सकती है।' पूरे सफर के दौरान उनके एक मित्र डेविड हिगडॉम उनसे संपर्क में रहे। आगे उनकी योजना फरवरी के अंत तक त्रिनिदाद से ब्रिटिश वर्जिन द्वीप तक तैरकर जाने की है। इसके बाद वह एस्पेन के कोलोराडो स्थित अपने घर जाकर अलास्काई रिश्तेदारों के साथ कुछ दिन बिताएंगी। फिगे का सत्ररह साल का बेटा एलेक्स रव्सिंग कार ड्राइवर है और अपनी मां की तरह ही रोमांचक खेलों को अपनी जिंदगी बनाना चाहता है।
-प्रस्तुतिः आशीष जैन

...आगे पढ़ें!

05 February 2009

क्या यही प्यार है?

'आइसक्रीम खाओगी?' 'नहीं, जानू आज पिज्जा खाना है।' 'यार, इस ड्रैस में तुम बड़ी हॉट लग रही हो।' 'डियर, आज नाइट को क्या खास कर रहे हो?' 'बाय डार्लिंग, आई लव यू।' ये है आज का प्यार करने का अंदाज। समय बदला, दुनिया बदली और बदले हैं प्यार करने के तरीके। पर एक चीज जो जस की तस है, वह है जज्बात, दिल और उसके धड़कने का अंदाज। गौर करते हैं वेलेंटाइन डे के बहाने।
युवा कौन? अक्सर सवाल मन में उठता है। हर बार दिल से यही आवाज आती है, जो सारे बंधनों को तोड़ दे और पूरी दुनिया को प्यार के धागों में बांधते हुए आगे बढ़ता जाए, वही है असल मायने में युवा। तन-मन, जीवन हर कोने से प्यार की सुगंध महके। बातों में मिठास भरा उल्लास हो। मतलब जिंदगी से प्यार साफ-साफ झलके।

चाहिए मैक्डी में ट्रीट
जब कोई बांका जवान या युवती प्यार की राह पर आगे बढ़ते हैं, तो दिल का धड़कना दूर से ही सुनाई देता है। झरने के ठंडे पानी की तरह मन में अजीब-सी छुअन महसूस होती है। कोई ख्वाबों का राजकुमार या सपनों की शहजादी, मिली नहीं कि लगने लगता है, बस अब सारे सपने पूरे हो गए। अब जमाने को दिखा देंगे कि हमारे पास भी बॉयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड है। 'हाय, वो कितनी स्वीट है। मैं तो मर ही जाऊंगा।' 'वाउ, कितना मजा आएगा, जब मैं उसकी पल्सर पर उसके साथ बैठूंगी।' इन्हीं खयालों के साथ झूमने को दिल करता है। मुलाकात होती है, नजरें आज भी उसी अदा से मिलती-झुकती हैं, पर नखरे हैं, अदा है, शरारत है साथ ही खट्टी-मीठी नोंक-झोंक भी। 'स्वीट हार्ट, आज तुमने नया मोबाइल खरीदा है, मुझे मैक्डी में ट्रीट चाहिए।' अब होठों पर कोई चाह दबी नहीं है, प्यार में डिमांड शामिल हो गई है। हर तरह की डिमांड।
बिंदास मेरा साथी
आज के युवा प्रेमियों के पास इंतजार का वक्त नहीं है। उसे झकास साथी चाहिए, बोल्ड और बिंदास। उसकी हर जरूरत को पूरा करने वाला। उसके पास सिक्स पैक एब भी होने चाहिए और 'गजनी' के आमिर जैसा हेयर स्टाइल। प्यार स्टेटस सिंबल है, अगर अपने फ्रैंड्स से मिलवाऊं, तो सब की जुबान पर एक ही बात होनी चाहिए 'काश! तेरा बॉयफ्रैंड मुझे मिल जाए।' सैंटी या बहनजी टाइप की नहीं, प्यार के लिए तो बिंदास कुड़ी ही चलेगी।
युवा मन के लिए प्यार एक ऐसा नशा है, जो जिंदगी की पहली जरूरत है। पहले मुलाकात, दोस्ती और फिर डेटिंग के रास्ते कब प्यार की बांसुरी बजने लगती है, इस बात से वे खुद बेखबर होते हैं। मिलने का मन करा, तो मोबाइल के बटनों से खेलने लगे। सजे-संवरे भंवरे अपने प्यार के लिए सबसे अच्छे तोहफे की खोज में दर-दर भटकते हैं। तब जाकर कहीं बैचेन दिल को करार आता है। 'उसने बोला था कि 11 बजे आ जाएगी, पर आई नहीं। बात करता हूं।' और शुरू हो गए मोबाइल फोन पर। हजारों का बिल आता-जाता है, पर बातें होती रहती हैं। रूठना, मनाना, हंसना, रोना सब चीज मोबाइल पर ही पूरी होती हैं। सच पूछें, तो आशिक अक्सर उस शख्स को दुआ देते मिलते हैं, जिसने मोबाइल बना छोड़ा। और कुछ नहीं, तो एसएमएस का सिलसिला यूं शुरू होता है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। चोरी के इमोशनल मैसेज लिख-लिखकर झूठी वाहवाही बटोरते हैं। बाकी कसर इंटरनेट, ई-मेल और चैटिंग पूरी कर देते हैं। शहर से दूर कहीं जाना हुआ, तो टेंशन किस बात की, ऑरकुट पर चैटिंग करेंगे न।
हो जाए रोमांटिक मूवी
किताबें हाथों में होती हैं, पर दिल करता है कि अपने जानेमन के सलोने चेहरे को ही पढ़ते रहें। क्लास में जब तक साथी के पास वाली सीट न मिल जाए, मन में उथल-पुथल मची रहती है। कैंटीन में बैठे, हाथों में हाथ डाले समय कब पंख लगाकर उड़ जाता है, पता नहीं लगता। मॉर्निंग वॉक से सुबह की शुरुआत होती है, तो विंडो शॉपिंग के बहाने शाम गुलजार होती है। चाहे पार्टी हो या कोई जश्न, जाना तो साथ ही है। पापा से, दोस्तों से सब से मिन्नतें मांगीं, उधार लिया और पहुंच गए किसी मल्टीप्लैक्स में रोमांटिक मूवी देखने। खुद को राज और प्रियतम को सिमरन मानकर डूब गए ख्वाबों की हसीन वादियों में। हर चीज में सपनीला संसार। गिफ्ट भी थोड़ा हटके और सरप्राइजिंग ही देंगे। 'तुम हमेशा पीली टीशर्ट ही क्यों पहनती हो?' जीभर कर तारीफ चाहे न कर पाएं, पर जो चीज मन को नहीं भाती, उसे सीधे मुंह पर बोल देते हैं। 'डैड, ये रोहन है, मेरा बैस्ट फ्रैंड।' अपने प्यार को घरवालों से मिलवाने में भी उन्हें कोई गुरेज नहीं।
खुलकर प्यार करेंगे
'डार्लिंग, आज तो बिजी हूं। प्रिया के साथ डेट पर जा रहा हूं। तुमसे कल बात करूंगा।' इस तरह एक-दूसरे को चिढ़ाने के बाद मनाने में जो मजा है, उसका जवाब नहीं। प्यार में कुछ तो नया होना चाहिए। कुछ एक्साइटिंग सा, कुछ थ्रिल भरा। प्यार करा है भई, जमकर करेंगे। किसी के रोके, रुकेंगे थोड़ा ही न। जिंदगी एक जश्न का नाम है। क्या पता, कल हो न हो। हमारे प्यार से दुनिया जलती है, तो हम क्या करें? जिसे चाहते हैं, उसका हाथ पकड़कर चल लिए, तो जमाने का क्या बिगाड़ दिया? प्यार, इश्क और मोहब्बत नहीं, युवा इसे चाहत का नाम देते हैं। कहते हैं प्यार, इश्क या मोहब्बत में इनके शब्दों की तरह ही कुछ आधा-अधूरा रहता है। पूरी तो चाहत ही होती। क्या खूब है युवा मन की उड़ान।
-आशीष जैन

...आगे पढ़ें!