21 February 2009

लहरों के सरताज

नौसेना में जिंदगी के असली अनुभवों से गुजरने वाले पांच फाइनलिस्ट में तीन महिलाएं भी।

'पांच फाइनलिस्ट, उनमें भी तीन लड़कियां। पानी के बीच सैन्य अभ्यास। हर कदम पर युवा दिलों के हौसले की कड़ी परीक्षा।' इन दिनों नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर हर सोमवार रात 9 बजे दिखाए जा रहे 'मिशन नेवी- लहरों के सरताज' में युद्धपोत, पनडुब्बी से लेकर मिसाइल तक, हर वह चीज शामिल है, जो नौसेना के लिए दिल में रोमांच पैदा कर दे। चयन के दौरान प्रतिभागियों को कई शारीरिक और मानसिक जांचों से गुजरना पड़ा। पांच अंतिम फाइनलिस्टों को नौसेना एक माह का असल प्रशिक्षण दे रही है। जिस फाइनलिस्ट को सीरीज के अंत में सबसे योग्य पाया जाएगा, उसे नौसेना के साथ एक अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर जाने का मौका मिलेगा। इन पांच में से तीन लड़कियां भी हैं- साक्षी, चैतन्या और सुरंजनी। 20 साल की साक्षी हवनूर बंगलौर की हैं और पुणे में बीए फर्स्ट इयर की पढ़ाई कर रही हैं। इनके पापा आर्मी में थे। साक्षी पढ़ाई पूरी करके पायलट बनना चाहती हैं। 28 साल की चैतन्या दातला पैदा आंध्रप्रदेश में हुई। पांडिचेरी में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बंगलौर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर विभाग में काम कर रही हैं। चैतन्या मिशन उड़ान में भी अंतिम 15 तक पहुंचने में कामयाब रही थीं। बकौल चैतन्या, 'मेरे लिए वाकई गर्व की बात है कि मैं भारतीय नौसेना की हिस्सा बनी। मेरे लिए यह नया सीखने का बहुत अच्छा अनुभव रहा।' 25 वर्षीया सुरंजनी एचआर बंगलौर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। साथ ही वे पर्यावरण के लिए काम कर रहे एक एनजीओ से भी जुड़ी हैं। वे बताती हैं, 'इस कंपीटिशन में चयन होने के लिए मैंने अपने भाई से वादा किया था। मैं आज तक 8 स्कूलों और 3 कॉलेजों में पढ़ाई कर चुकी हूं। इसलिए किसी भी परिस्थिति में आसानी से एडजस्ट हो जाती हूं।' सुरंजनी अपनी सफलता का मंत्र बताती हैं, 'सोचो मत, करो।' तीनों में एक बात समान है कि तीनों जिंदगी में संघर्ष को अहमियत देती हैं और आगे बढ़ने के लिए हर तरह की मुसीबत से टकराने के लिए तैयार रहती हैं।
-आशीष जैन

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