16 January 2009

आने वाला कल हमारा है

गणतंत्र के साठ साल पूरे होने को हैं, इस दौरान बहुत कुछ बदला, लेकिन औरतों के लिए जिंदगी फिर भी दुश्वार बनी रही। इसके बावजूद किरण बेदी हताश नहीं हैं। वे कहती हैं, 'मुझे पूरा भरोसा है कि आने वाला वक्त हम महिलाओं का ही है। चाहे कितनी बाधाएं आएं, हम हार मानने वाली नहीं हैं। मैं पूरे देश की महिलाओं को यकीन दिला देना चाहती हूं कि वे जिस शिद्दत से अपने-अपने कामों को अंजाम दे रही हैं, उसकी बदौलत आने वाला वक्त हमारी मुट्ठी में होगा।'

मैं शुरू से मानती रही हूं कि महिलाओं को दबाकर रखा गया है। समाज ने हमेशा कोशिश की है कि महिलाएं घर-परिवार तक ही सीमित रहें, पर हमने कभी हार नहीं मानी। इसी का नतीजा है कि अब महिलाओं की स्थिति में बदलाव साफ नजर आने लगा है। देश के कई हिस्सों में जाने पर मुझे पता लगता है कि गरीब से गरीब महिला में भी संघर्ष करने का गजब का हौसला है। वे बिना किसी मदद के आगे बढ़ रही हैं। पति, भाई या पिता के साथ की दरकार अब उन्हें नहीं रह गई है। वे अपनी आर्थिक स्वतंत्रता के लिए छोटे-छोटे काम कर रही हैं। अपना परिवार चला रही हैं। छोटी-छोटी बचत करके भविष्य के सपने भी संजो रही हैं। कुछ सालों पहले मेरे सामने शारदा नाम की एक ऐसी महिला का केस आया, जो दस बच्चों की विधवा मां थी। उसका बेटा अपराधी बन गया था। पर उसने कड़ी मेहनत की और बहुत अच्छे से बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी निभाई। मैं मानती हूं कि एक शारदा अगर ऐसा कर सकती है, तो देश की दूसरी 'शारदाएं' भी मुसीबतों के पहाड़ के आगे सिर नहीं झुकाएंगी।
हालात पहले से सुधरे
लेकिन महिलाओं पर होने वाले जुल्मों में कमी नहीं आई है। आज भी वे पति, जेठ, सास या आस-पास वालों की क्रूरता का शिकार बनती हैं। अब महिलाओं की सोच में बदलाव जरूर आया है। पहले महिलाओं को सिखाया जाता था कि वे पुरुषों की ज्यादतियां सहने के लिए ही हैं। पर अब गरीब, दलित और आदिवासी महिला भी अपने पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही है। ऐसा नहीं है कि मेरे साथ कभी ज्यादतियां नहीं हुई, पर मैंने इनसे घबराई नहीं, इनका डटकर सामना किया। मैंने क्रेन बेदी पुकारे जाने से लेकर तिहाड़ जेल के सुधारों तक, कभी हालात से समझौता नहीं किया बल्कि उन्हें बदलने में जी-जान से जुटी रही। मैंने पुलिस की नौकरी छोड़ी ताकि लोगों से सीधे तौर पर जुड़ सकूं। हालात पहले से सुधरे हैं। पर हमें और भी आगे जाना है।
अब हम मजबूर नहीं हैं
मैं देखती हूं कि देश की बेटियां पढ़-लिख कर अपनी मांओं के अधूरे सपने पूरे करना चाहती हैं। अब वे कॅरियर के लिहाज से कोई भी निर्णय लेने से नहीं हिचकतीं। सेना हो या साइंस का क्षेत्र, हर जगह उन्होंने खुद को साबित कर दिया है। उन्हें बहुत कम अवसर मिले, पर उन्हीं चंद मौकों से उन्होंने अपनी किस्मत संवारी। नारी ने जता दिया कि अब उनकी पहचान सिर्फ चूड़ी-बिंदी या चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं रह गई है। उनकी खुद की अलग पहचान है। आंचल अब घर-परिवार के छोटे-से आंगन से बाहर निकलकर आसमान में परचम की मानिंद फहरा रहा है। मेरे टीवी शो 'आपकी कचहरी' में महिलाएं अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के बारे में खुल कर बोल रही हैं। आज की नारी ज्यादा मुखर हो गई है। हाल के घरेलू हिंसा कानून के तहत महिलाओं ने खुलकर अपनी परेशानियां पुलिस को बताई हैं। अब पुरुषों को एकबारगी सोचने पर विवश होना पड़ा है कि वे कहां तक सही हैं?
आज की नारी मेरा आदर्श
मेरे मन में अक्सर यह सवाल आता था कि आखिर महिलाएं परेशानियों के आगे खुद-ब-खुद घुटने क्यों टेक देती हैं? पर अब हालात बदले हैं। वे हर समस्या पर सोचने लगी हैं। उन्होंने घर-परिवार के साथ-साथ खुद के लिए जीना सीख लिया है। आज की नारी बेटियों की शिक्षा-दीक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती।शुरू में लोग कहते थे कि आप देश की लड़कियों के लिए आदर्श हैं। पर आज की महिलाओं के जज्बे को देखकर वे मुझे खुद का आदर्श नजर आने लगी हैं। आज देश के सर्वोच्च पद पर महिला आसीन है। कई काम जिनको करने में पुरुष भी हिचकते हैं, उन्हें महिलाएं बखूबी अंजाम दे रही हैं। यह कमाल आगे भी होता रहेगा और जल्द ही ऐसा समय आएगा, जब महिलाओं के ऊपर से बेबसी का ठप्पा पूरी तरह से हट जाएगा।
-किरण बेदी (लेखिका, देश की पहली महिला आईपीएस अफसर हैं।)
प्रस्तुति- आशीष जैन

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सहना मुझे मंजूर नहीं

गणतंत्र दिवस के मौके पर यह जानना दिलचस्प रहेगा कि संविधान बनने के बाद देश की आधी आबादी के हितों के लिए क्या कानून बने हैं और उन्हें अमल में कैसे लाया जाए?

घरेलू हिंसा अधिनियम 2005-
अगर महिला के घर पर उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, तो उसे घरेलू हिंसा माना जाएगा।
- गाली-गलौच, मारपीट, ठीक से भोजन न देना, मानसिक रूप से परेशान करना भी घरेलू हिंसा में शामिल है।
- इस कानून में महिला किसी महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सकती है। यह कानून पुरुष प्रताड़ना से संरक्षण देता है।
- धारा 12 के मुताबिक विवाहित या अविवाहित महिला घर पर प्रताड़ित महसूस करने पर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सकती है। मजिस्ट्रेट उसे घर में रहने की व्यवस्था के निर्देश दे सकता है। घर के सदस्यों को भरण-पोषण के लिए निर्देश दिए जा सकते हैं।
- महिला अगर शादीशुदा है, तो पति, देवर या ससुर के खिलाफ शिकायत कर सकती है।
- अगर वह अविवाहित है, तो भाई या पिता की प्रताड़ना के खिलाफ शिकायत कर सकती है।
- अगर प्रताड़ना के मामले में घर वाले मजिस्ट्रेट के आदेश की पालना नहीं करते हैं, तो वह एक साल तक की सजा और बीस हजार रुपए तक का जुर्माना कर सकता है।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955-
धारा 24 के मुताबिक पति-पत्नी के बीच न्यायालय में कोई विवाद लंबित हो, तो पत्नी पति से मासिक भरण-पोषण की मांग कर सकती है। न्यायाधीश तय करता है कि पति को कितना पैसा पत्नी को देना चाहिए।
- धारा 25 के अनुसार अगर पति-पत्नी के बीच विवाह विच्छेद का फैसला लागू हो जाता है, तो उस समय या बाद में पत्नी को एक मुश्त भरण-पोषण पाने का अधिकार है।
- महिला पारिवारिक न्यायालय, जिला न्यायाधीश के सामने एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करके भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
- महिला का पर-पुरुष के साथ संबंध होने या पति के परित्याग करने पर वह भरण-पोषण की अधिकारी नहीं रह जाती।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956-
पिता की पैतृक संपत्ति में लड़कियों की लड़कों के बराबर हिस्सेदारी होती है।- लड़की का ससुराल जाने पर भी पिता की संपत्ति पर अधिकार है।
- अगर लड़की के पति की मृत्यु हो जाए, तो वह अपने पिता से भी भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
- अगर महिला अवयस्क है और पति जिंदा है, पर पति किसी वजह से पत्नी का भरण-पोषण नहीं कर पाए, तब भी अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकती है।

-धारा 14 के तहत हिंदू महिला के पास खुद की कोई संपत्ति है, तो वह पूर्ण रूप से उसकी ही संपत्ति होगी। महिला की संतान खुद इस संपत्ति की मांग नहीं कर सकती।
हिंदू दत्तक भरण-पोषण अधिनियम 1956-
धारा 8 के मुताबिक कोई भी वयस्क और स्वस्थचित्त हिंदू महिला किसी भी बच्चे को गोद ले सकती है। महिला का शादीशुदा होना जरूरी नहीं है।
- अगर महिला किसी लड़के को गोद लेती है, तो लड़के की उम्र महिला से 21 साल कम होनी चाहिए।
- गोद लेने वाली महिला के पास पहले से कोई जीवित संतान नहीं होनी चाहिए।
- अगर किसी के पास इकलौती संतान है, तो उसे गोद नहीं ले सकते।
-अगर महिला विवाहित है, तो उसके पति की सहमति जरूरी है।
- बच्चे को गोद देने व लेने वाली महिला के बीच स्टांप पेपर पर एक गोदनामा तैयार किया जाता है।
- हर जिले में मौजूद रजिस्ट्रार कार्यालय में जाकर गोदनामे को पंजीकृत करवाना जरूरी है।
दहेज निषेध अधिनियम 1961-
सिंध लेती-देती एक्ट 1949 को लागू करने के पीछे दहेज की प्रथा को रोकना ही था।
- धारा 3 के अनुसार अगर कोई दहेज के लेन-देन में लिप्त पाया जाता है, तो उन्हें पांच साल तक की सजा और15 हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
- धारा 4 के मुताबिक अगर कोई दहेज की मांग करता है, तो मजिस्ट्रेट दो साल तक की सजा और दस हजार रुपए तक का जुर्माना कर सकता है।
-आशीष जैन(राजस्थान उच्च न्यायालय के एडवोकेट भरत सैनी से बातचीत के आधार पर)

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