गणतंत्र दिवस के मौके पर यह जानना दिलचस्प रहेगा कि संविधान बनने के बाद देश की आधी आबादी के हितों के लिए क्या कानून बने हैं और उन्हें अमल में कैसे लाया जाए?
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005-
अगर महिला के घर पर उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, तो उसे घरेलू हिंसा माना जाएगा।
- गाली-गलौच, मारपीट, ठीक से भोजन न देना, मानसिक रूप से परेशान करना भी घरेलू हिंसा में शामिल है।
- इस कानून में महिला किसी महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सकती है। यह कानून पुरुष प्रताड़ना से संरक्षण देता है।
- धारा 12 के मुताबिक विवाहित या अविवाहित महिला घर पर प्रताड़ित महसूस करने पर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सकती है। मजिस्ट्रेट उसे घर में रहने की व्यवस्था के निर्देश दे सकता है। घर के सदस्यों को भरण-पोषण के लिए निर्देश दिए जा सकते हैं।
- महिला अगर शादीशुदा है, तो पति, देवर या ससुर के खिलाफ शिकायत कर सकती है।
- अगर वह अविवाहित है, तो भाई या पिता की प्रताड़ना के खिलाफ शिकायत कर सकती है।
- अगर प्रताड़ना के मामले में घर वाले मजिस्ट्रेट के आदेश की पालना नहीं करते हैं, तो वह एक साल तक की सजा और बीस हजार रुपए तक का जुर्माना कर सकता है।
हिंदू विवाह अधिनियम 1955-
धारा 24 के मुताबिक पति-पत्नी के बीच न्यायालय में कोई विवाद लंबित हो, तो पत्नी पति से मासिक भरण-पोषण की मांग कर सकती है। न्यायाधीश तय करता है कि पति को कितना पैसा पत्नी को देना चाहिए।
- धारा 25 के अनुसार अगर पति-पत्नी के बीच विवाह विच्छेद का फैसला लागू हो जाता है, तो उस समय या बाद में पत्नी को एक मुश्त भरण-पोषण पाने का अधिकार है।
- महिला पारिवारिक न्यायालय, जिला न्यायाधीश के सामने एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करके भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
- महिला का पर-पुरुष के साथ संबंध होने या पति के परित्याग करने पर वह भरण-पोषण की अधिकारी नहीं रह जाती।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956-
पिता की पैतृक संपत्ति में लड़कियों की लड़कों के बराबर हिस्सेदारी होती है।- लड़की का ससुराल जाने पर भी पिता की संपत्ति पर अधिकार है।
- अगर लड़की के पति की मृत्यु हो जाए, तो वह अपने पिता से भी भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
- अगर महिला अवयस्क है और पति जिंदा है, पर पति किसी वजह से पत्नी का भरण-पोषण नहीं कर पाए, तब भी अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
-धारा 14 के तहत हिंदू महिला के पास खुद की कोई संपत्ति है, तो वह पूर्ण रूप से उसकी ही संपत्ति होगी। महिला की संतान खुद इस संपत्ति की मांग नहीं कर सकती।
हिंदू दत्तक भरण-पोषण अधिनियम 1956-
धारा 8 के मुताबिक कोई भी वयस्क और स्वस्थचित्त हिंदू महिला किसी भी बच्चे को गोद ले सकती है। महिला का शादीशुदा होना जरूरी नहीं है।
- अगर महिला किसी लड़के को गोद लेती है, तो लड़के की उम्र महिला से 21 साल कम होनी चाहिए।
- गोद लेने वाली महिला के पास पहले से कोई जीवित संतान नहीं होनी चाहिए।
- अगर किसी के पास इकलौती संतान है, तो उसे गोद नहीं ले सकते।
-अगर महिला विवाहित है, तो उसके पति की सहमति जरूरी है।
- बच्चे को गोद देने व लेने वाली महिला के बीच स्टांप पेपर पर एक गोदनामा तैयार किया जाता है।
- हर जिले में मौजूद रजिस्ट्रार कार्यालय में जाकर गोदनामे को पंजीकृत करवाना जरूरी है।
दहेज निषेध अधिनियम 1961-
सिंध लेती-देती एक्ट 1949 को लागू करने के पीछे दहेज की प्रथा को रोकना ही था।
- धारा 3 के अनुसार अगर कोई दहेज के लेन-देन में लिप्त पाया जाता है, तो उन्हें पांच साल तक की सजा और15 हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
- धारा 4 के मुताबिक अगर कोई दहेज की मांग करता है, तो मजिस्ट्रेट दो साल तक की सजा और दस हजार रुपए तक का जुर्माना कर सकता है।
-आशीष जैन(राजस्थान उच्च न्यायालय के एडवोकेट भरत सैनी से बातचीत के आधार पर)
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