31 May 2008

मन भर कर हंस लो


भाई ये ऑटोमेटिकली क्या होता है रे?
अरे, भई सिंपल है, जब किसी ऑटो में कोई टकली लड़की बैठे, तो इसे ऑटोमेटिकली कहवे हैं।

यार एक बात ये नोटबुक क्या बला होती है?
वेरी सिंपल है रे यार, जब कदै कोई आदमी नै नोटां की भूख बढ़ जावै तो इनै नोटबुक कहवै छै।

यार एक बात बता, ये आदमी अगर चांद से छलांग लगाएगा, तो कहां गिरेगा?
अबे सोच ना.... यार मुझे लगता है कि वो आदमी धरती पर गिरेगा।
तू बावड़ो ही छै कांई....
अबे चांद से छलांग लगाएगा, तो चांद पर ही गिरेगा।

यार मेरी पत्नी से आज मेरी कहासुनी हो गई।
अरे, वो कैसे?
यार, क्या करूं?
वो कहती रही, मैं सुनता रहा। वो कहती रही, मैं सुनता रहा।

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कविता

पाना है क्या खोना है क्या।
क्या मुझको पता।

मन में थी एक आस, वो पूरी हुई।
फिर उठी है एक प्यास, करनी है फिऱ पूरी आस।

मन का विश्वास सदा रहे साथ, खुदा रहे सदा मेरे पास।
दिल का बात सुन रह कोई, मन का दर्द ना जाने कोय।
मन की बात को सुन ले, ऐसा कोई मिल जाए।।

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29 May 2008

चल चला चल


कोई नहीं है तेरा, तू हंसता चल।
राह के साथी के, दर्द में फंसता चल।।

मंजिलें मिलेंगी तुझे, ना घबरा।
तूफानों में फंस, मझधारों से निकलता चल।।

खूब हंस, नाच ले, झूम ले।
दिल तोड़ दे कोई, तो सिसकता चल।।

दूर है किनारा, सेहरा में फंस गया।
लेकर दिल के अरमां, मचलता चल।।

मिले खुशियां, तरक्की, शोहरत।
राह भर फिर तू चहकता चल।।

इंसां है तू भी, दर्द होता है।
जाम बनके, तू भी होठों से छलकता चल।।

- आशीष जैन

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28 May 2008

कविता


ये समय क्या है?
इक खता है।
हर समय, हर पल
गलती के निशां छोड़ जाता है।
बीता हुआ हर पल क्यों रूलाता है?
पल कभी पल-पल करके
तो कभी सदी बनके गुजरता है।
पल को पाने की जुर्रत क्यों करता हूं मैं
पल को पाने के लिए पल-पल गंवाता हूं मैं।

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