06 May 2009

सलाखों में कैद मां


जेल में सजा काट रही महिलाएं अपराधी तो हैं, पर अपने साथ पल रहे बच्चों के लिए इनके सीने में भी धड़कता है एक मां का दिल...। पेश है जयपुर की महिला जेल में रहने वाली महिला कैदियों के मातृत्व की एक झलक।
जेल का नाम आते ही दिमाग में ऐसे अपराधियों की छवि उभरती हैं, जो बहुत खतरनाक हैं। पर इन सखीचों के पीछे बैठी मां की ममता और दुलार का जवाब नहीं। ये महिलाएं जमाने भर के लिए मुजरिम हैं, पर अपने बच्चों के लिए सिर्फ एक मां है। इनकी भगवान से केवल एक ही दुआ है कि इनका राजदुलारा हमेशा खुश रहे।
छिपा लेती हूं आंचल में

नाम- ज्योत्सना, उम्र- 26 साल, अपराध- हत्या, सजा- आजीवन कारावास
मेरे दिन की शुरुआत मेरे बेटे अंकुश को देखकर होती है। मुझे दुख इस बात का है कि मेरी गलती की सजा इस मासूम को भी भुगतनी पड़ रही है। मां हूं ना इसके बिना रह भी तो नहीं सकती। इसलिए इसे यहां ले आई। अभी दो साल का ही तो है। जेल में मजदूरी करके दिनभर में नौ रुपए कमा पाती हूं। इन्हें इसके लिए जमा करती हूं। छह साल का हुआ नहीं कि इसे मुझसे अलग कर दिया जाएगा। यह सोचकर ही मैं सिहर उठती हूं। यहां यह सबका दुलारा है। कोई ना कोई इसे दिनभर खेल खिलाता रहता है। पर मैं इसे एक पल भी मेरे से दूर नहीं रखना चाहती। इसलिए हमेशा इसे गोद में रखती हूं। कई बार मेरे साथ वाली औरतें कहती हैं, 'इसे अपनी आदत मत डाल कि यह तुझसे दूर ना रह सके।' यह सुनते ही मन इसके दूर जाने के डर से कांप उठता है। अभी यह थोड़ा-थोड़ा बोलने लगा है। अपनी तुतलाती आवाज में मां सुनना बहुत अच्छा लगता है।
... अगली बार कब

नाम- अनीता, उम्र- 35 साल, अपराध- हत्या, सजा- आजीवन कारावास
मेरा बेटा आकाश दस साल का हो गया है। आश्रम में रहता है। वहां रहने वाले दूसरे बच्चों के साथ पढ़ने जाता है। सारी सुख-सुविधाएं हैं वहां पर। पर मेरा दिल नहीं मानता। इसलिए हर वक्त उसके लिए तड़पती रहती हूं। पता नहीं ठीक से खाना खाता होगा या नहीं। आज भी याद है वो दिन जब उसे यहां से ले जाने के लिए बोला गया था। मेरा तो उस दिन से ही खाना-पीना छूट गया था। पर उसे नहीं बताया, छिप-छिप के रोती थी। उसने पूछा, 'मम्मी कौन कहां जाने के लिए बोल रहा है?' मैंने कहा, 'तू यहां सबसे प्यारा है ना, इसलिए ये लोग तुझे घूमाने के लिए लेकर जाएंगे।' मैंने अपने दिल पर पत्थर रखकर उसे आश्रम भेज दिया। उसके जाने के बाद बिलकुल अकेलापन लगता है। अब सारे दिन अपने आपको यह समझाती रहती हूं कि जेल से बाहर जाकर उसे पढ़ना-लिखना है, बड़ा आदमी बनना है। इसलिए अपनी मजदूरी से पैसे जमा कर उसे देती हूं। सोचती हूं कि मेरे यहां से छूटने में कुछ साल बाकी हैं। रिहा होने के बाद आकाश के साथ रहूंगी। मेहनत-मजदूरी करके उसे खूब पढ़ाऊंगी। पर यह सपने एक ही पल में टूट जाते हैं जब हकीकत का खयाल आता है कि एक खूनी मां बेटा होने के कारण समाज वाले उसे परेशान करेंगे। इस डर के कारण मन करता है कि मैं आकाश से हमेशा दूर रहूं। ताकि वो समाज में सुख से तो रह सके।

इसका हक कैसे छीनती...

नाम- सुलेखा, उम्र- 30 वर्ष, अपराध- वेश्यावृत्ति, सजा- 7 साल मेरी बेटी बिट्टू का जन्म जेल में ही हुआ था। कोई मां कल्पना नहीं कर सकती कि उसकी संतान की आंखें जेल की चार दीवारी में ही खुलें। जब मुझे सजा हुई तभी पता लगा कि मैं मां बनने वाली हूं। सबने कहा कि मैं इसे जन्मा ना दूं। ताकि इसकी जिंदगी तो बर्बाद ना हो। पर मां का यह दिल कैसे मानता। मैं कैसे इसके जन्म लेने के हक को छीन सकती थी। आज बिट्टू तीन साल की हो गई है। इसके साथ कैसे समय गुजरता है, पता ही नहीं चलता। पर हर वक्त इसके आने वाले कल को लेकर चिंता रहती है। लड़की है, कैसे अकेले रहेगी। यह भी तो दुल्हन बन किसी के घर जाएगी। पर कौन इसे ब्याहना चाहेगा। जब पता चलेगा कि इसकी मां तो जेल में है। इसकी खुशियों के लिए मन करता है कि मेरा साया भी इस पर न आने दूं। बड़ी होने पर जब इसे मेरी सच्चाई के बारे में पता लगेगा, तो बहुत दुख होगा। इसलिए अभी से बिट्टू को मुझसे दूर भेज देती हूं। ताकि धीरे-धीरे यह मुझे भूल सके।
इसको हर खुशी मिले

नाम- रेखा, उम्र- 32 वर्ष, अपराध- हत्या, सजा- आजीवन कारावासमेरे जीने का मकसद मेरा बेटा राजू है। पांच साल का हो गया है यह। एक साल बाद यह अपनी नानी के पास रहने जाएगा। मुझे पता है, मां इसे अच्छी तरह रखेगी। पर मेरी कमी को तो कोई पूरा नहीं कर सकता। अभी यह मेरे बिना नहीं रहता, तो वहां कैसे रहेगा। कई बार तो खाना खिलाते हुए रोना आ जाता है कि अभी तो मैं खिला रही हूं। बाद में कौन खिलाएगा? मुझे रोता देख यह मेरे आंसू पोछने लगता है और कहता है, 'मम्मी तुम तो खाती ही नहीं और मुझे खिलाती रहती हो।' लेकिन इसे कैसे बताऊं कि इसे खिलाए बिना मेरे गले से एक निवाला तक नहीं उतरता। अभी तो मैंने इसे बताया तक नहीं कि इसे मुझे छोड़कर जाना पड़ेगा। सोचती हूं बताऊं, पर अगले ही पल यह सोचकर रुक जाती हूं कि न जाने इस पर क्या गुजरेगी। अभी थोड़े दिन पहले राजू बीमार हो गया था। मेरी तो भूख-प्यास सब बंद हो गई थी, बड़ी मन्नतें करने के बाद ठीक हुआ।

(महिला कैदियों के नाम बदल दिए गए हैं।)
सधन्यवाद- विजया का लेख जो मदर्स डे 2009 के मौके पर परिवार में छपा।

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