रोहतांग दर्रे की सपाट चट्टानों पर क्लाइबिंग करके छोड़ दीजिए अपने हौसलों के निशान।
तेज होती सांसें... चोटी पर पहुंचने का जुनून... नीचे गहरी खाई से उठता धुआं... ऊपर खुला विशाल आसमान। ये सब नजारव् हैं रॉक क्लाइंबिंग के। चट्टान की चुनौतियां स्वीकार ली हैं, तो अब घबराने से काम नहीं चलने वाला है। सपाट चट्टान की छाती पर हौसलों के निशान बनाते हुए आगे बढ़ने का मजा ही कुछ और है। हवाएं आपको बेचैन कर रही हैं कि कब टॉप पर पहुंचेंगे। वहीं चट्टान पर रेंगते छोटे कीड़े आपको आगे लगातार बढ़ने को कह रहे हैं। दरारों से झांकती हुई काई, तह दर तह तक जमी बर्फ। कभी फिसलन तो कभी रपटन। विश्राम का कोई नामलेवा नहीं। किसी का नाम आप पुकारने लगे, तो बार-बार वही नाम चारों ओर से गूंजने लगे। ऊपर से लुढ़कते पत्थरों से घबराना भी मना है। एक बात तो इस सबमें तय है कि पहाड़ पर चढ़ने के लिए ताकत की बजाय हिम्मत ज्यादा जरूरी है। कुल्लू जिले में 13050 फीट की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे को रॉक क्लाइबिंग के लिए बहुत मुफीद माना जाता है। लाहौल घाटी जाने के लिए आपको रोहतांग दर्रे से होकर गुजरना पड़ता है। रोहतांग दर्रा ही कुल्लू और लाहुल को आपस में जोड़ता है। इस दर्रे का पुराना नाम है- भृग-तुंग। यह दर्रा तेजी से मौसम बदलाव के लिए भी बहुत मशहूर है। बर्फबारी के चलते अक्सर नवंबर से अप्रेल तक इस दर्रे को बंद कर दिया जाता है। यहां की चट्टानों पर चढ़ाई करते वक्त आपको चारों और ग्लेशियरों, छोटी-बड़ी चोटियों, लाहौल घाटी से बहती चंद्रा नदी और प्रकृति के मनोरम दृश्यों का लुत्फ आसानी से मिलेगा। रॉक क्लाइंबिंग के लिए कई लोग बिना किसी बाहरी मदद से उंगलियों से ही ऊपर चढ़ने की जुगत करते हैं। आजकल कई उपकरणों की मदद से रॉक क्लाइबिंग आसान हो गई है। रस्सी और जीवन रक्षक उपकरण आपको थामे रहते हैं और आप ऊपर चढ़ते जाते हैं। कमर में बंधी रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ते हुए आपको खयाल रखना होगा कि आप बिल्कुल चोटी की बजाय मात्र दो फुट आगे ही निगाह रखें। इस तरह आप धीरे-धीरे बिना घबराए अपनी मंजिल पा लेंगे। इसके लिए शरीर में लचक होना भी बहुत जरूरी है। रॉक क्लाइबिंग में संतुलन, शक्ति और हलन-चलन पर नियंत्रण जैसी चीजों पर ध्यान रखना जरूरी है। चढ़ाई करते वक्त आपको कपड़ों और जूतों के चयन का खास खयाल रखना होगा। माउंट आबू, सरिस्का, पावागढ़, मनाली घाटी, मणिकर्ण, रोहतांग दर्रा, हंपी, दार्जिलिंग और स्पिति जैसी जगहों पर आप रॉक क्लाइबिंग की योजना बना सकते हैं।
तेज होती सांसें... चोटी पर पहुंचने का जुनून... नीचे गहरी खाई से उठता धुआं... ऊपर खुला विशाल आसमान। ये सब नजारव् हैं रॉक क्लाइंबिंग के। चट्टान की चुनौतियां स्वीकार ली हैं, तो अब घबराने से काम नहीं चलने वाला है। सपाट चट्टान की छाती पर हौसलों के निशान बनाते हुए आगे बढ़ने का मजा ही कुछ और है। हवाएं आपको बेचैन कर रही हैं कि कब टॉप पर पहुंचेंगे। वहीं चट्टान पर रेंगते छोटे कीड़े आपको आगे लगातार बढ़ने को कह रहे हैं। दरारों से झांकती हुई काई, तह दर तह तक जमी बर्फ। कभी फिसलन तो कभी रपटन। विश्राम का कोई नामलेवा नहीं। किसी का नाम आप पुकारने लगे, तो बार-बार वही नाम चारों ओर से गूंजने लगे। ऊपर से लुढ़कते पत्थरों से घबराना भी मना है। एक बात तो इस सबमें तय है कि पहाड़ पर चढ़ने के लिए ताकत की बजाय हिम्मत ज्यादा जरूरी है। कुल्लू जिले में 13050 फीट की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे को रॉक क्लाइबिंग के लिए बहुत मुफीद माना जाता है। लाहौल घाटी जाने के लिए आपको रोहतांग दर्रे से होकर गुजरना पड़ता है। रोहतांग दर्रा ही कुल्लू और लाहुल को आपस में जोड़ता है। इस दर्रे का पुराना नाम है- भृग-तुंग। यह दर्रा तेजी से मौसम बदलाव के लिए भी बहुत मशहूर है। बर्फबारी के चलते अक्सर नवंबर से अप्रेल तक इस दर्रे को बंद कर दिया जाता है। यहां की चट्टानों पर चढ़ाई करते वक्त आपको चारों और ग्लेशियरों, छोटी-बड़ी चोटियों, लाहौल घाटी से बहती चंद्रा नदी और प्रकृति के मनोरम दृश्यों का लुत्फ आसानी से मिलेगा। रॉक क्लाइंबिंग के लिए कई लोग बिना किसी बाहरी मदद से उंगलियों से ही ऊपर चढ़ने की जुगत करते हैं। आजकल कई उपकरणों की मदद से रॉक क्लाइबिंग आसान हो गई है। रस्सी और जीवन रक्षक उपकरण आपको थामे रहते हैं और आप ऊपर चढ़ते जाते हैं। कमर में बंधी रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ते हुए आपको खयाल रखना होगा कि आप बिल्कुल चोटी की बजाय मात्र दो फुट आगे ही निगाह रखें। इस तरह आप धीरे-धीरे बिना घबराए अपनी मंजिल पा लेंगे। इसके लिए शरीर में लचक होना भी बहुत जरूरी है। रॉक क्लाइबिंग में संतुलन, शक्ति और हलन-चलन पर नियंत्रण जैसी चीजों पर ध्यान रखना जरूरी है। चढ़ाई करते वक्त आपको कपड़ों और जूतों के चयन का खास खयाल रखना होगा। माउंट आबू, सरिस्का, पावागढ़, मनाली घाटी, मणिकर्ण, रोहतांग दर्रा, हंपी, दार्जिलिंग और स्पिति जैसी जगहों पर आप रॉक क्लाइबिंग की योजना बना सकते हैं।
कैसे पहुंचें- निकटतम सड़क मार्ग, रेलमार्ग और एयरपोर्ट मनाली (51 किलोमीटर)।
-आशीष जैन
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