13 August 2009

चीन में दंगा

चीन मुश्किल में है। पिछली साल तिब्बत में दंगे और अब उइगरों के गढ़ शिनजियांग में मुसीबत। चीन सोच रहा है कि कम्युनिस्ट राज्य बनने की हीरक जयंती (60 साल) सकुशल पूरी हो जाए और वह दुनिया को बताए कि वह कम्युनिज्म को खुशी-खुशी अपनाए हुए है। पर मुश्किल कम नहीं हैं। दंगों पर लगाम तो कस ली गई है, पर वैश्विक स्तर पर चीन की जो किरकिरी हुई है, उसके चलते वह सोच रहा है कि क्या दमन नीति ही सर्वोच्च नीति है? चीन के शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमची में हाल के दिनों में जातीय दंगे हुए। चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ को आनन-फानन में इटली से जी-5 के सम्मेलन को छोड़कर अपने देश पहुंचना पड़ा। चीनी सरकार ने दंगों पर नियंत्रण तो पा लिया है, पर इन दंगों ने दुनिया के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ये जातीय दंगे पिछले साल तिब्बत की राजधानी ल्हासा में हुए दंगों का दूसरा संस्करण मालूम पड़ते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह एक तरह से व्यापक इस्लामिक गोलबंदी के तहत किया जा रहा है। गौरतलब बात है कि कश्मीर में पकड़े गए विदेशी आतंकवादियों में शिनजियांगवासी उइगरों के नाम भी उजागर हुए। ऐसे में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।

दंगे की शुरुआत
जून में हॉन्गकॉन्ग के नजदीक दक्षिणी चीन के शहर ग्वांगदांग में एक खिलौना फैक्ट्री में चीन की बहुसंख्यक हान जाति के मजदूरों ने दो उइगर मजदूरों को किसी हान महिला से बलात्कार के आरोप में पीट-पीटकर मार डाला था। इस आपसी भिडंत में 118 लोग घायल भी हुए। इसके बाद उत्साहित हान समुदाय के लोगों ने वेबसाइटों के माध्यम से उइगरों पर जीत का एलान कर दिया। हान समुदाय ने चीन के सारे उइगर समुदाय को समाप्त करने का एलान कर दिया। इससे उइगर भड़क गए। जुलाई माह में उइगर जाति के लोग उस घटना का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे और पूरे मामले की जांच की बात कह रहे थे। इस प्रदर्शन में पुलिसिया कार्रवाई और हिंसक हुई भीड़ के चलते लगभग 160 लोग मारे गए और एक हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए। आश्चर्य की बात है कि शुरुआती लड़ाई ग्वांगदांग की खिलौना फैक्ट्री में हुई थी, जबकि इसका अंजाम ग्वांगदांग से बहुत दूरी पर स्थित शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमची में देखने को मिला। कहा यह भी जाता है कि उइगरों के अलकायदा से संबंध हैं, जबकि सभी उइगर खुद को स्वतंत्र सोच के प्रजातांत्रिक व्यक्ति बताते हैं। उनके मुताबिक चीन की सरकार उन्हें अल्पसंख्यक साबित करके हमारे क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए ऐसा कर रही है। बीजिंग ओलिम्पिक आयोजन के दौरान भी उइगर कट्टरपंथियों के हमले में 17 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया गया था। इसके बाद उइगर आबादी पर चीनी सेना का दमन चक्र चला था। उस समय चीन का आरोप था कि बीजिंग ओलंपिक में बाधा डालने के लिए अमरीका ने उइगरों को भड़काया है।
उइगर और शिनजियांग प्रांत
चीन के बहुसंख्यक हान बौद्ध समुदाय और 55 अल्पसंख्यक समुदायों के बीच हमेशा तनावपूर्ण और नाजुक संबंध रहे हैं। ध्यान देने वाली बात है कि हान समुदाय चीनी आबादी का लगभग 93 फीसदी है। उइगर नेता शिनजियांग को पूर्वी तुर्किस्तान कहते हैं। यह चीन का उत्तर-पश्चिम प्रांत है। इसकी सीमाएं पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान, खिरनीस्तान, कजाकिस्तान, रूस और मंगोलिया से मिली हुई हैं। यहां तुर्की भाषा से मिलती-जुलती भाषा बोली जाती है और यह प्रांत अपने आपको सेंट्रल एशिया के देशों के अधिक करीब पाता है। हालांकि शिनजियांग को स्वायत्त क्षेत्र का दर्जा प्राप्त है, लेकिन चीनी अधिकारी बाहर से हान समुदाय को लाकर शिनच्यांग में बसा रहे हैं ताकि उग्यूर अपने ही प्रांत में अल्पसंख्यक हो जाएं। टकराव की असल वजह यही है। उइगर तुर्की मूल के मुसलमान हैं। शिनजियांग प्रांत में उइगर समुदार की जनसंख्या 45 फीसदी है। वहीं हान चीनी समुदाय के लोगों की जनसंख्या 40 फीसदी है। 20 वीं शताब्दी के शुरुआत में उइगरों ने आजादी का एलान किया था लेकिन यह अधिक समय तक टिक नहीं सकी और 1949 में पूर्वी तुकिस्तान पर फिर कब्जा कर लिया गया। तब से वहां बड़ी संख्या में हान चीनी लोग बसने लगे हैं। उइगर लोग अपनी पारंपरिक संस्कृति को लेकर चिंतित हैं। साल 1991 से वहां रुक-रुककर हिंसा होती रही है। चार अगस्त, 2008 में काशगार में 16 चीनी पुलिसकर्मी मारे गए। शिनजियांग प्रांत में उइगर समुदाय की आबादी लगभग 80 लाख के करीब है, वहीं प्रांत की राजधानी में हान समुदाय के लोगों की संख्या 23 लाख है। शिनजियांग चीन का 1/6 हिस्सा है और इसकी आबादी 210 लाख है। इसमें 47 देशज गुट हैं। इनमें सबसे बडा गुट 80 लाख उइगर मुस्लिमों का है। भौगोलिक रूप से कश्मीर से सटा और आकार में भारत का आधा शिनजियांग प्रांत न सिर्फ चीन के कुल क्षेत्रफल का छठा हिस्सा घेरे हुए है बल्कि तेल-गैस और धातुओं के मामले में चीनी अर्थव्यवस्था इस पर पूरी तरह निर्भर करती है।
चीन की विस्तारवादी नीति के चलते तिब्बत, हेन्नान और शिनजियांग प्रांत में भी अब धार्मिक और नस्लीय तनाव हिंसा में बदलने लगा है। जिस तरह चीन ने तिब्बत पर कब्जा करके वहां बड़ी संख्या में हान लोगों को बसाया था, उसी तरह इस बार शिनजियांग प्रांत में भी शिकायत आ रही है कि उइगरों के मुकाबले हान लोगों को बसाकर चीन सरकार उस क्षेत्र में उइगरों को अल्पसंख्यक साबित करना चाहती है।
सांस्कृतिक रूप से संपन्न
चीन में केवल एक मुस्लिम बहुल प्रांत है- शिनजियांग। यहां लगभग आधी आबादी उइगर मुसलमानों की है, जो पूर्वी तुर्किस्तानी मूल के हैं। उनके चेहरे, भाषा, खान-पान, रहन-सहन सब कुछ चीन की मुख्यभूमि के हान समाज से एकदम अलग हैं। 18वीं सदी के मध्य में चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान पर कब्जा कर उसे शिनजियांग नाम दिया था। इसका शाब्दिक अनुवाद है-नया सीमांत। उइगरों की भाषा तुर्की परिवार की है, जो आज भी अरबी लिपि में लिखी जाती है। हालाकि चीन सरकार ने वहा उइगर भाषा ही नहीं, कुरान भी चीनी लिपि में पढ़ानी शुरू की है। काशगर यहां का मुख्य महानगर है। यह संपूर्ण क्षेत्र ग्यारह शताब्दियों तक बौद्ध मत का अनुगामी रहा। यहा हजारों की संख्या में बौद्ध स्तूप, मठ, मंदिर और अनुवाद शालाओं का निर्माण हुआ। कश्मीर से आए युवा भिक्षु कुमार जीव ने इस क्षेत्र में अपने ज्ञान और करुणा के माध्यम से बौद्ध मत का प्रसार किया। दसवीं शताब्दी के मध्य में चंगेज खान की फौजों ने बौद्ध मंदिरों को तबाह करते हुए सारी आबादी को जबरदस्ती इस्लाम मंजूर करवाया था। लुयान, कुचा के बौद्ध शिल्प और तुरपान की बौद्ध गुफाएं आज भी सुरक्षित हैं। उस समय यह क्षेत्र चीन में बौद्ध मत के प्रवेश का प्रथम द्वार था और शाति एवं अहिंसा के मंत्रों से दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कला और साहित्य के सृजन का गढ़ बना था। इस्लामी हमलावरों ने उस समय के समाज को पूरी तरह से तबाह कर दिया। बीच में बीजिंग के सम्राटों का दखल चलता रहा। कुमार जीव को बीजिंग के सम्राट ने अपने दरबार में आमंत्रित कर उन्हें 'राजगुरुÓ की उपाधि दी थी। उसी दखलंदाजी और संबंधों का हवाला देकर चीन शिनजियांग पर अपना प्राचीन नियंत्रण होने का दावा करता है। ऊरुमकी को मूल उर्वशी भी माना जाता है। शिनजियांग नामकरण से पूर्व भारतीय शास्त्रों तथा बौद्ध ग्रंथों में यह क्षेत्र 'रत्नभूमिÓ के नाम से प्रसिद्ध रहा है। यहा की स्त्रिया उर्वशी के समान सुंदर, पुरुष कद्दावर और बलिष्ठ तथा धरती रत्नगर्भा मानी गई है। चीन ने शिनजियांग के तालिबानों पर नियंत्रण के लिए पाकिस्तान पर भरोसा किया। कहा जाता है कि ओसामा बिन लादेन ने चीन सरकार को संदेश भिजवाया था कि इस क्षेत्र को अमेरिकी दखल से मुक्त रखने के लिए वह चीन के सहयोग के लिए तैयार है। शिनजियांग की प्रांतीय सरकार ने अफगानिस्तान के तालिबानों को नब्बे अरब डालर की मदद की।
रेबिया कदीर उग्रवादी या समाजसेवी
रेबिया कदीर और दलाई लामा दोनों ही चीन में अपने-अपने लोगों के हकों के लिए काम कर रहे हैं। जहां दलाई लामा तिब्बत की आजादी के लिए प्रयासरत हैं। वहीं रेबिया कदीर उइगरों के हक के लिए सोचती हैं। वे कभी चीन की सबसे अमीर महिलाओं में से एक हुआ करती थीं, पर आज उनके पास अपना एक पैसा भी नहीं है और वे अमरीका के वॉशिंगटन में निर्वासित जीवन बिता रही हैं। रेबिया कदीर के यूं तो ग्यारह बच्चे हैं, पर वे एक करोड़ से ज्यादा उइगरों की मां हैं। बासठ साल की रेबिया को चीन की कम्युनिस्ट सरकार उग्रवादी के रूप में देखती है। गौर करने वाली है कि रेबिया कभी चीन की संसद की सदस्य थीं और चीन की महिलाओं का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया करती थीं। कभी उनका बहुत सम्मान करने वाली चीन की सरकार ने उन पर आरोप लगा दिया कि वे शिनजियांग प्रांत में छपने वाले स्थानीय अखबारों को वे अपने पति सिद्दीक रौजी के लिए देश से बाहर भेजती थीं। इस काम के लिए उन्हें चीन की सरकार ने छह साल के जेल में डाल दिया। पूरी दुनिया के दबाव में आकर चीन सरकार ने उन्हें बरी तो किया, पर निर्वासित जीवन जीने पर मजबूर कर दिया। अब रेबिया ने अपने जीने का एक ही उद्देश्य बना लिया है, वह है-शिनजियांग की आजादी। चीन में हान समुदाय और उइगर लोगों से बीच में हुए दंगों का आरोप रेबिया पर लगाया गया है। जिस तरह चीन में साल 2008 को तिब्बत विद्रोह के रूप में जाना गया, वैसे ही साल 2009 को उइगर विद्रोह के रूप में देखा जाएगा। चाहे चीन सरकार ने चप्पे-चप्पे पर पुलिस का पहरा तैनात करके विद्रोह को दबा दिया है, पर बगावत से यह बात तो साबित ही हुई है कि चीन दमन नीति को आज भी सर्वोपरि समझता है। रेबिया का जन्म 21 जनवरी 1947 को एक गरीब परिवार में हुआ। लॉन्ड्री के काम से अपने बिजनेस की शुरुआत करके वे एक टे्रडिंग कंपनी की मालिक बनीं। उन्होंने एक प्रोजेक्ट के तहत उइगर महिलाओं को रोजगार शुरू करने के लिए धन मुहैया कराया। 1997 के शिनजियांग के गुलजा उइगर नरसंहार के बाद वे चीनी सरकार के विरोध में उतर आईं। 1999 के आते-आते चीनी सरकार ने उन पर देशद्रोह का इल्जाम लगाकर जेल में डाल दिया। साल 2005 में उस समय की विदेश मंत्री कोंडालिसा राइस के हस्तक्षेप के चलते उन्हें रिहा किया गया। रोचक बात है कि जिस राबिया पर चीन में दंगे फैलाए जाने का आरोप लगाया जा रहा है, उन्हें 2006 में नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया गया। उन्हें समाजसेवा के लिए 2004 में 'राफ्टो पुरस्कारÓ से भी सम्मानित किया गया था। रेबिया ने दो शादियां की थीं। उनके दो बच्चे अभी भी जेल में हैं। वे उइगरों के हक के लिए किए जाने वाले शांतिपूर्ण संघर्ष की पक्षधर रही हैं। चीन उन पर आरोप लगाता आया है कि उनके संबंध पूर्वी तुर्किस्तान के उग्रवादी संगठन इस्लामिक मूवमेंट से है। गौर करने वाली बात है कि शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुस्लिमों के तुर्की से काफी गहरे सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध रहे हैं। शिनजियांग चीन में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा स्रोत है और इसकी सीमाएं रूस, मंगोलिया, कजाकिस्तान, किरगिस्तान, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत से मिलती हैं।
अंतरराष्ट्रीय सोच
पश्चिमी देश चीन को घेरने के लिए दक्षिणी और पश्चिमी प्रांतों तिब्बत और शिनचियांग का सहारा लेते हैं। कम्युनिस्ट चीन के संस्थापक माओत्से तुंग जो भी यह बात पता थी। तभी वे अपने देश की सबसे बड़ी समस्याओं में हान बनाम गैर हान टकराव को प्रमुख तरजीह देते थे। उन्होंने सरकार के नीति निर्देशक तत्वों में इस बात को शामिल करवाया कि किसी भी कीमत पर इनमें शत्रुतापूर्ण संबंध ना पनप पाएं। पर ऐसा ज्याादा समय तक हो नहीं पाया। जनसंख्या का अनुपात बदलते रहने से लोगों के बीच में कटुता बढ़ती ही जा रही है। शिनजियांग में किसी न किसी रूप में मुस्लिम असंतोष पनपता रहे, इसमें अमेरिका और ब्रिटेन के उन रणनीतिकारों की गहरी दिलचस्पी है जो मध्य एशिया में चीन के वर्चस्व को कम करते हुए अमेरिकी प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। माना जाता है कि पश्चिमी देश उइगरों के बड़े समर्थक हैं। तुर्की के प्रधानमंत्री एर्डोगान का बयान भी मायने रखता है कि चीन में दंगे नहीं, सामूहिक नरसंहार हो रहा है। उनका तो यहां तक कहना है कि वह रेबिया कदीर को तुर्की का वीजा देने की तैयारी कर रहे हैं।
क्या है इतिहास
चीन के कम्युनिज्म के जन्मदाता नेता माओत्से तुंग तिब्बत और शिनजियांग पर कब्जे के साथ-साथ इन दोनों क्षेत्रों के बीच में गलियारे के रूप में भारत के अक्साई चिन क्षेत्र को चाहते थे। उन्होंने ऐसा किया भी। 1949 में शिनजियांग पर कब्जा करने के एक साल बाद ही तिब्बत को चीनी शासन के अधीन ले लिया। तभी से वह भारत के 38,000 वर्ग किलोमीटर के अक्साई चिन इलाके पर अतिक्रमण करने लगा। यह क्षेत्र करीब-करीब स्विट्जरलैंड के जितना है। फिर माओ ने 1962 में भारत के साथ लड़ाई में अक्साई चिन को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया। अब चीन अक्साई चिन की कुनलुन पहाडिय़ों के जरिए तिब्बत और शिनजियांग तक पहुंचने वाले एकमात्र गलियारे पर अपना कब्जा रखता है। चीनी गणराज्य का करीब 60 प्रतिशत भूभाग ऐसा है जिस पर सीधे हान शासन नहीं चलता था। क्षेत्र के हिसाब से हान सत्ता अपने उत्कर्ष पर है। यह इस बात से पता चलता है कि चीन की दीवार चीन के बाहरी क्षेत्र के घेरे में बनाई गई थी।
तारीख पर भारी तवारीख
चीन में कम्युनिस्ट सत्ता को इस साल 60 साल पूरे हो रहे हैं। चीनी सरकार इस बार बड़ा जश्न मनाना चाहती है, ऐसे में वह किसी भी तरह के विद्रोह को दबाने के लिए तैयार है। चीन का तकरीबन 60 फीसदी भूभाग ऐसे क्षेत्रों से मिलकर बना है, जो ऐतिहासिक तौर पर हान साम्राज्य के अधीन नहीं थे। आज शिनजियांग और तिब्बत कुल मिलाकर चीन का तकरीबन आधा क्षेत्र है। इस बार 4 जून (इसी तारीख को 1989 को थियानमन चौक पर लोकतंत्र समर्थकों के मौत के घाट उतारा गया था) के बीस साल पूरे होने पर बीजिंग में बहुत तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी। चीन के पूर्वी तुर्किस्तान को खुद में मिलाने के 60 बरस पूरे होने के अवसर पर उइगरों का विद्रोह एक प्रतीकात्मक संकेत देता है। चीनी सरकार भी कम नहीं है। वह 28 मार्च (तिब्बत पर सीधे शासन की घोषणा की पचासवीं वर्षगांठ) को 'गुलाम उद्धार दिवसÓ के रूप में मनाकर खुद को ऊंचा साबित कर रही है, वहीं दूसरी ओर इस बात पर भी खुश हो रही है कि चीन के कब्जे के खिलाफ तिब्बत के राष्ट्रीय विद्रोह और इसके बाद दलाई लामा के विमान से सकुशल भारत चले जाने की पचासवीं सालगिरह बिना शोर-शराबे के गुजर गए। हान समुदाय में मंचू लोगों को साथ मिलाने और स्थानीय लोगों को अंदरूनी मंगोलिया में ठूंसने के बाद तिब्बती और शिनजिंयाग के तुर्की बोलने वाले परंपरागत मुस्लिम समूह ही भिन्न समुदाय के रूप में बचे हैं। यहां पर जहां स्थानीय लोगों को छोटे-मोटे काम ही मिले, वहीं बाहर से आकर बसे हान समुदाय के लोगों को अच्छी कमाई वाली नौकरियां मिलीं।
-आशीष जैन

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