13 August 2009

बलूचिस्तान के बहाने भारत पर निशाने

अच्छे-अच्छे राजनीतिज्ञों को आज तक एक बात समझ नहीं आई कि पाकिस्तान के पास इतने बेहतरीन हुक्मरान हैं, फिर भी यह देश पिछड़ा हुआ क्यों है? जब ये नेता अपनी कुटिल चालों और वक्तव्यों से पूरी दुनिया को पगला बना सकते हैं, तो खुद अपने देश का भला क्यों नहीं कर सकते? क्यों वे पाकिस्तान के विकास की गाड़ी को संभाल नहीं पाते। ताजा संदर्भ मिस्र के शर्म अल शेख में गुटनिरेपक्ष आंदोलन के 15वें शिखर सम्मेलन को लेकर है।

मानना पड़ेगा, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी बड़े कूटनीतिज्ञ हैं। भारत के भोले-भाले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन को साझा घोषणा पत्र में उलझाकर रख दिया। उन्होंने बड़ी सफाई से यह जतला दिया कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान में भारत की वजह से गड़बड़ी हो रही है। सबसे दिलचस्प बात है कि इस सबमें कश्मीर का जिक्र तक नहीं आया। पाकिस्तान से अब लगभग हर रोज बलूचिस्तान और हिंदुस्तान के झूठे गठजोड़ की खबरें आ रही हैं। दरअसल पाकिस्तान विश्व समुदाय का ध्यान मुंबई बम हमलों के आरोपियों से हटाना चाहता है और यह दिखलाना चाहता है कि वह भी आतंक से पीडि़त है। वह दुनिया की सहानुभूति बटोरना चाहता है और पीछे से मुंबई हमलों के आरोपियों को पाकिस्तान में खुली छूट देना चाहता है। यूं उसे भारत के खिलाफ आतंकियों को पोसने से कोई गुरेज नहीं है, पर जब खुद के हालात सुधारने की बात आती है, तो वह कदम पीछे क्यों हटाता है, यह समझ से परे है। पाकिस्तान की नीति रही है कि किसी भी मुद्दे पर भारत को फंसाकर विश्व समुदाय के सामने अपनी वाहवाही लूटना। यहीं भारत के नेता मात खाते हैं। वे दूरगामी सोच की बजाय मुद्दों को सतही तौर पर लेते हैं। अगर ऐसी बात नहीं होती, तो यह आसान बात नहीं थी कि भारत-पाक साझा घोषणा पत्र में बलूचिस्तान का जिक्र आ जाता और देश के प्रधानमंत्री को सबको सफाई देनी पड़ती।
धूल भरी आंधी, रेतीले इलाके, बंजर जमीन और बर्बर लड़ाकू कबीले ही बलूचिस्तान की असल तस्वीर हैं। वहां इन कबीलों का खुद का कानून चलता है। इस कानून में हाथ के बदले हाथ और सिर के बदले सिर लेने की परंपरा आम है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी प्रांत है। इसकी राजधानी क्वेटा है। यहां के लोगों की प्रमुख भाषा बलूची है। इस प्रांत में 27 जिले हैं। 1944 में बलूचिस्तान की आजादी का खयाल जनरल मनी के दिमाग में आया था, पर 1947 में ब्रिटिश सरकार के इशारे पर इसे पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया । 1970 के दशक में बलोच राष्ट्रवाद का उदय हुआ, जिसमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करने की मांग उठने लगी। यह प्रदेश पाकिस्तन के सबसे कम आबाद इलाकों में से एक है । सत्तर के दशक में यहां पाकिस्तानी शासन के खिलाफ मुक्ति अभियान भी चलाया गया था, पर उसे कुचल दिया गया । पाकिस्तान के 40 फीसदी से ज्यादा क्षेत्र में फैले बलूचिस्तान में जिंदगी नरक से भी बदतर है। पर पाकिस्तान सरकार चाहती है कि किसी तरह यह इलाका पूरी तरह से उसके कब्जे में रहे। इसका कारण हैं- वहां पाए जाने वाले यूरेनियम, पेट्रोल, नेचुरल गैस, तांबा। पाकिस्तान किसी तरह से इन संसाधनों पर अपना कब्जा करना चाहता है। इसीलिए पाकिस्तान को बलूचियों की अफगानिस्तानियों से बढ़ती नजदीकियां रास नहीं आती। पाकिस्तानी सरकार के पास अभी बलूचिस्तान के पांच फीसदी हिस्से पर ही कब्जा है। बाकी के 95 फीसदी हिस्से पर कबीलों का राज चलता है। पाकिस्तान सरकार उसी हिस्से को पाने के लिए संघर्ष करती रहती है और सारे विद्रोह को भारत की कारस्तानी साबित करना चाहती है।
बलूचिस्तान के हक की बात करने वाले नवाब बुगती की मौत को बलूची लोग अभी पूरी तरह भुला नहीं पाए हैं। विद्रोही नेता अकबर बुगती को जनरल परवेज मुशर्रफ के इशारों पर सुरक्षाबलों ने 2006 में मुठभेड़ में मार गिराया। तब पूरा बलूचिस्तान में हडकंप मच गया। पाकिस्तान ने इसे दबाने की बहुत कोशिशें कीं, पर पूरी तरह बलूचियों पर लगाम नहीं लगा पाए। भारत ने 2006 में बुगती की मौत पर दुख प्रकट किया था, तो पाकिस्तान की भौंहें तन गई थीं। पर वही पाकिस्तान बलूचिस्तान की समस्या को लोकतांत्रिक तरीके से निपटाने की बजाय गोलियों के दम पर खत्म करना चाहता है। हद तो यह है कि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गाहे-बगाहे बता रहा है कि बलूचिस्तान में असल समस्या भारत ने पैदा की है। 1970 के दशक में बलूचिस्तान में हुए सशस्त्र विद्रोह को भी पाकिस्तान ने ईरान की मदद से कुचल दिया गया था। अब लगभग 30 साल बाद दुबारा बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी पाकिस्तान सरकार को जबरदस्त चुनौती पेश कर रही है। बलूचियों का मानना है कि हम तो अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे इलाकों में पंजाबियों का प्रभुत्व बढ़े। बलूचिस्तान के लोगों के पास मूलभूत सुविधाओं की कमी है। पीने के पानी का अभाव, बच्चों के लिए स्कूल, अस्पताल से लेकर दो जून की रोटी के लिए वहां के लोग तरसते हैं। ऐसे में पाकिस्तान सरकार को चाहिए कि वह भारत पर निराधार आरोप मढऩे की बजाय अपने नागरिकों की आम जरूरतों के लिए ईमानदारी से कुछ खास प्रयास करे। तब पूरी दुनिया देखेगी कि अपने आप ही बलूचिस्तान की समस्या हल हो जाएगी। पाकिस्तान सरकार यह क्यों भूल जाती है कि उसने ही अपने कर्मों की वजह से तालिबानियों को स्वात घाटी और वजीरिस्तान सौंपे हैं। भारत तो सदैव अपने पड़ोसियों का भला चाहता है और चाहता रहेगा।
-आशीष जैन

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