13 August 2009

कभी चांद तो कभी चंद्र

हाल ही विधि आयोग ने कानून मंत्रालय के समक्ष इस बात की सिफारिश की है कि एक पत्नी के रहते हुए धर्म परिवर्तन कर दूसरी शादी करने को अपराध करार दिया जाना चाहिए। मीडिया में भी समय-समय पर ऐसे मामले उछलते रहे हैं। हरियाणा के उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन का मामला ही लें। वे शादीशुदा थे। उन्होंने राज्य की पूर्व उपमहाधिवक्ता अनुराधा बाली से शादी करने के लिए इस्लाम धर्म कबूला और दोनों बन गए चांद मोहम्मद और फिजा। फिर दोनों में खटपट हुई और चांद मोहम्मद अब वापस अपने परिवार के पास लौट आए और वापस बन गए चंद्रमोहन। सवाल यह है कि आखिर खुद के स्वार्थ के लिए कब तक धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ होता रहेगा? इस पूरे मामले पर हमने राय ली समाजशास्त्री, कानूनी जानकार और धार्मिक नेता से-

मेरा मानना है कि कानून बना देने से कोई अपराध खत्म नहीं हो जाएगा। कानून से ज्यादा जरूरी लोगों को रिश्तों की पवित्रता को समझने की जरूरत है। जब कोई पावरफुल आदमी ऐसी हरकत करता है, तो मीडिया इस पर काफी हो-हल्ला करता है। पर अगर वे जमीनी हकीकत देखें, तो पता लगेगा कि आज भी हिंदू मैरिज एक्ट की धज्जियां सरेआम उड़ाई जा रही हैं। लोग न केवल विवाह जैसी पवित्र संस्था का मजाक उड़ा रहे हैं, बल्कि धार्मिक भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। अगर आप धर्म परिवर्तन भी करना चाहते हैं, तो स्थायी रूप से धर्म को अपना लीजिए, बार-बार की नौटंकी से परिवार और समाज सब पर बुरा असर पड़ता है। पत्नी को तो लोग चुप करा देते हैं, पर उन्हें अपने बच्चों के बारे में सोचना चाहिए। जब बच्चों को पता लगता है कि उनके पिता ने दो शादियां कर रखी हैं, तो इसका बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। विधि आयोग को अपनी सिफारिश में यह बात भी जोडऩी चाहिए थी कि दूसरी शादी बच्चों की सहमति से ही की जानी चाहिए। सामंती समाज में ज्यादा पत्नियां रखना स्टेटल सिंबल होता था। इसे रोकने के लिए ही बाइगेमी (द्विविवाह) कानून आया। विवाह संस्कार होता है, इसे समझौता बनाना बड़ी भूल होगी। सिर्फ कानून से कुछ होने वाला नहीं है। मीडिया और गैर सरकारी संस्थाओं को एकजुट होकर लोगों को प्रेरित करना चाहिए कि वे शादी के महत्त्व को समझें। पहली पत्नी से धोखाधड़ी करके दूसरी शादी करने वाले लोग कभी सुखी नहीं रह सकते।
-ज्योति सिडाना, समाजशास्त्री

हिंदू मैरिज एक्ट में एक पुरुष या स्त्री तलाक के बाद या दोनों में से किसी एक की मृत्यु के बाद ही दूसरी शादी कर सकते हैं। बाइगेमी के लिए लोग धर्म परिवर्तन करते हैं और कानूनी सजा से बच जाते हैं। ऐसे में विधि आयोग की सिफारिश बिल्कुल सही है। धर्म परिवर्तन करने पर भी अगर उसकी पत्नी या पति जीवित है, तो उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए। ज्यादातर मामलों में यह साबित नहीं हो पाता कि व्यक्ति ने दूसरी शादी कर ली है। ऐसे में वह कानून से बच जाता है। अगर दूसरी महिला से पैदा हुआ बच्चा या दूसरी शादी का कोई प्रमाण मिल जाए, तो व्यक्ति को सजा दिलवाई जा सकती है। आईपीसी की धारा 495 के मुताबिक कोई व्यक्ति पहले विवाह की बात छुपाकर किसी व्यक्ति से दूसरा विवाह करता है, तो उसे 10 साल के कारावास की सजा का प्रावधान है। आयोग की यह भी सिफारिश है कि मुस्लिम मैरिज एक्ट के तहत उस महिला पर कार्रवाई की जानी चाहिए, जो शादी से पहले मुस्लिम नहीं थी और बाद में वह वापस अपने मजहब में लौट जाती है। उस पर भी बाइगेमी का केस चलना चाहिए। - संजय श्रीवास्तव, पारिवारिक न्यायालय के मामलों के जानकार

कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म किसी खास मकसद से अपनाता है, तो यह गलत बात है। सिर्फ शादी के लिए इस्लाम अपनाना ठीक नहीं। इस्लाम में आस्था और विश्वास के बाद ही आप इसे अपनाएं। मेरा मानना है कि कोई इस्लाम में जाकर शादी कर ले और वापस हिंदू धर्म अपना ले, तो फिर उस पर नए धर्म (हिंदू धर्म) का कानून लगना चाहिए। हर धर्म की तरह इस्लाम भी अपने बंदों से अपेक्षा रखता है कि वह चरित्रवान हो और उच्च सामाजिक और नैतिक मूल्यों का बखूबी पालन करे। भई, धर्म तो व्यक्ति, परिवार और समाज को जोडऩे का काम करता है। ऐसे में धर्म की आड़ लेकर अपना हित साधना बेहद गलत है। - जमाअते इस्लामी हिंद, राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष सलीम इंजीनियर
प्रस्तुति-आशीष जैन

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