इस साल पद्म भूषण से सम्मानित दंपती वी. पी. धनंजयन और शांता पिछले 50 सालों से साथ नृत्य कर रहे हैं। इस दंपती को एक साथ नृत्य करते हुए देखकर लगता है, मानो एक भाव है और दूजा भंगिमा, दोनों मिलकर भरतनाट्यम की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं।
केरल का पेयन्नुर गांव। 1953 में इस गांव के एक गरीब परिवार के 13 साल के लड़के पर मशहूर कथकली कलाकार टी. के. चंदू पणिकर का ध्यान जाता है, वे उसकी नृत्य कला पर मुग्ध हो जाते हैं। वे उसे नृत्य के मशहूर संस्थान 'कलाशेत्रÓ की संस्थापक और मशहूर नृत्यांगना रूक्मणीदेवी के पास ले जाते हैं। वहां उस लड़के की मुलाकात नौ साल की लड़की शांता से होती है। शांता भी वहां पर नृत्य सीखने आई है। पहली नजर में ही दोनों को प्यार हो जाता है। वे सालों तक राम और सीता की नृत्य नाटिकाएं पेश करते हैं और बाद में शादी कर लेते हैं। यह कहानी है- भरतनाट्यम की मशहूर नृत्य जोड़ी वी. पी. धनंजयन और शांता की। ये दोनों धनंजयंस के नाम से मशहूर हैं। वे दोनों अपने आप में परिपूर्ण हैं, पर जब दोनों मिलकर नृत्य करते हैं, तो लोग बिना पलक झपकाए उन्हें निहारते रहते हैं और भावनाओं के समंदर में गोते लगाते हैं। उनके नृत्य, पहनावे, बातचीत और बरताव में महान भारतीय संस्कृति की झलक मिलती है। अगर कहा जाए कि वे भारतीय संस्कृति के सच्चे दूत हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
बहुत कुछ करना है
दोनों कला की आराधना करते-करते बहुत मंजिलें तय कर चुके हैं। 70 साल के वन्नाडिल पुडियापेट्टिल धनंजयन (वी.पी. धनंजयन) को नृत्य करते हुए 60 साल हो गए हैं। चेन्नई में उनका नृत्य संस्थान 'भारतकलांजलिÓ 40 साल पूरे कर चुका है। यह संस्थान दुनिया को नामी नृत्यकार और संगीतकार दे चुका है। सालों से दोनों पति-पत्नी कला के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं और चाहते हैं कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत नित नई ऊंचाइयों को छूता रहे। इस जोड़े को 2009 में भारत सरकार ने प्रतिष्ठित पद्मभूषण से सम्मानित किया। यह सम्मान पाने वाली यह दूसरी नृत्य जोड़ी है। जब दंपती को पद्मभूषण अवार्ड मिला, तो उनका कहना था, 'ये सम्मान हम सारे शिष्यों और कला की बारीकियां सिखाने वाले संस्थान 'कलाक्षेत्रÓ को समर्पित करते हैं। 1956 में हमारी संरक्षक और 'कलाक्षेत्रÓ की संस्थापक रुक्मणी देवी को भी यह अवार्ड मिला था। हमें गर्व है कि हम उनके पदचिह्नों पर चलकर यहां तक पहुंचे।Ó पुरस्कारों के बारे में धनंजयन कहते हैं, 'इंदिरा गांधी अपनी हत्या से 10 दिन पहले दिल्ली में हमसे मिली थीं और उन्होंने हमसे पूछा कि मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं, तो हमने विनम्रतापूर्वक ना कह दिया। मुझे कई पुरस्कार और पद मिलने की बातें होती थीं, पर मेरा मानना था कि उसे उसके सही हकदार को ही दिया जाना चाहिए। भारत सरकार के कलाक्षेत्र को अधिग्रहण करने से पहले सरकारी अधिकारियों ने मुझसे कहा कि क्या आपके इसके डायरेक्टर बनना चाहेंगे? तो मेरा जवाब था कि इस पद के लिए मुझे नहीं, किसी और योग्य व्यक्ति को चुना जाना चाहिए।Ó
कला और कलाकार
वी.पी. धनंजयन अपनी किताब 'बियोंड परफॅारमेंसÓ में कला के इतर विषयों के बारे में बताते हैं, 'इस किताब में मैंने कला से जुड़ी सच्चाइयों का साफगोई से जिक्र किया था, अब अगर सच बोलने से कोई विवाद होता है तो लोग नाराज क्यों होते हैं? मैं तो शुरू से ही कला और कलाकारों के हित की बात करता हूं। जब लोग भारतीय शास्त्रीय नृत्य को डांस कहकर पुकारते हैं, तो मैं एतराज जताता हूं। भरतनाट्यम एक बड़ी और परिपूर्ण कला है। इसे उचित सम्मान मिलना चाहिए।Ó कलाकारों के राजनीति में प्रवेश के बारे में उनका कहना है कि कई कलाकार संसद में मनोनीत किए जाते हैं। पर कोई भी कला के प्रोत्साहन के लिए खास कदम नहीं उठाता। अगर मुझे ऐसा मौका मिला, ताकि मैं कला की शिक्षा और पहुंच बढ़ाने के लिए कुछ ठोस कदम उठा सकूं।
हम साथ-साथ हैं
केरल के पेयन्नुर में 1939 में पैदा हुए धनंजयन ने भरतनाट्यम और कथकली नृत्य में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है। उनके पिता ए. रामा अध्यापक थे। उनके परिवार में यूं तो कोई नृत्य से सीधे तौर पर जुड़ा नहीं था, पर पिता नाटकों में हिस्सा लिया करते थे। यहीं से उन्हें प्रेरणा मिली और वे नृत्य कला के प्रति गंभीर होते चले गए। धनंजय को बचपन से ही संस्कृत साहित्य से बहुत लगाव था और वे आठ साल की उम्र से ही कविताएं लिखने लग गए थे। उनके पिता ने बढ़ती पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते उन्हें 'कलाक्षेत्रÓ में भेज दिया। वहां उन्हें न केवल प्रवेश मिला, साथ ही नृत्य में बेहतरीन साधना के लिए स्कॉलरशिप भी दी गई।
शांता मलेशिया के एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हैं। शांता का जन्म यूं तो मलेशिया में हुआ, पर वे खुद को केरल से ही जुड़ा हुआ मानती हैं। दरअसल उनका परिवार तीन पीढिय़ों पहले केरल से मलेशिया में बस गया था। शांता ने भी नृत्य की बारीकियां धनंजयन के साथ ही कलाक्षेत्र में सीखीं। उनके पिता बीबीसी में अकाउंटेट के पद पर थे। बचपन में शांता की नृत्य के प्रति बढ़ती रुचि को देखकर उन्होंने उसे कलाक्षेत्र में भर्ती करा दिया। शांता शुरू से ही कला के प्रति बेहद गंभीर थीं। यहीं पर वे धनंजयन से मिलीं और दोनों ने साथ-साथ नृत्य नाटिकाएं पेश करना शुरू कर दिया। राम और सीता के किरदार करते-करते दोनों को एक-दूसरे का साथ भाने लगा और 1966 में दोनों ने शादी कर ली।
आज भी दोनों मिलकर गरीब और प्रतिभावान बच्चों को नृत्य की बारीकियां सिखाते हैं और विदेशों में भी भरतनाट्यम के बारे में प्रचार-प्रसार में सक्रिय रहते हैं। भारतकलांजलि में आज भी गुरुकुल परंपरा के अनुरूप शिक्षा दी जाती है। भरतनाट्यम को नित नए आयाम देने के लिए यह दंपती रचनात्मक संसार में जी-जान से जुटा है। उनके दो बेटे हैं। बड़ा बेटा संजय अपनी पत्नी के साथ अमरीका में रहता है और चेन्नई में रहने वाला छोटा बेटा सत्यजीत मशहूर फोटोग्राफर और नृत्यकार है। दोनों कमाल के गुरु हैं। उनके शिष्यों के लिए वे भगवान की तरह हैं। दोनों अपने शिष्यों को सिर्फ भरतनाट्यम ही नहीं सिखाते, बल्कि उन्हें भारतीय परंपरा और संस्कृति से भी रूबरू करवाते हैं।
-आशीष जैन
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