05 September 2009

दोस्ती लड़की से

'दोस्ती, वो भी लड़का-लड़की के बीच में? नहीं, ये हरगिज नहीं हो सकता।' कुछ सालों पहले हर घर में ऐसे तिरछे जुमले आम थे। कहीं किसी गली-मोहल्ले में लड़का-लड़की दो कोनों में खड़े रहते थे, तो उन्हें शक की निगाह से देखा जाता था। आज अगर एक इंच की जगह भी बची रहती है, तो कमेंट पास होने में देर नहीं लगती, 'क्या यार, डरता है!' अब 'सांझ ढले खिड़की तले, तेरा सीटी बजाना याद है...' वाले अंदाज फना हो चुके हैं। अब तो दिल भी एटमबम- सा लगे है।

सोने की साइकिल पर बैठाने वाले दोस्त अब हवाओं पर बिठाकर अपने दोस्त को जन्नत की सैर करवा रहे हैं। शाहरूख बोले तो अपना राहुल, सच्ची बोलता है यार, प्यार दोस्ती है। जो दोस्त है, उससे प्यार नहीं किया, तो विदेश से कुड़ी मगाएं तेरे लिए। आज का शाहरुख थोड़ा समझदार हो गया है। दोस्ती एक बार, प्यार बार-बार। आजकल में मार्केट में जो दिल आ रही है, वो कबड्डी खेलता है, तभी तो दिल कबड्डी होता है। कबड्डी खेलने में मजा है, फिर हार-जीत तो होती रहती। सहेली अगर अपने सहेला से कुछ अंदर के कपड़े मंगवा रही है, तो अच्छा है भई। इस बहाने अपने दोस्त की नॉलेज ही चैक हो जाएगी। वैसे नथिंग मैटर, अगर वो कपड़े लाने में फेल हो जाता है। सहेली ने क्लास ढंग से नहीं ली होगी।
दोस्ती तो आज स्टेटस सिंबल है भई। अगर जवान लड़का कॉलेज जाता है और उसके पास दो-चार गर्लफ्रैंड ना हों, तो सारे दोस्त मिलकर उसकी बज्जी ले लेते हैं। बज्जी देते-देते वो इतना पक जाता है कि खुद लड़की पटाने में बिजी हो जाता है। जनाब खुद किसी लड़की के पास खड़े रहने में कतराते हों, पर दोस्त की गर्लफ्रेंड के लिए देवर का फर्ज निभाने से नहीं चूकते। दोस्त मिलने ना जा सके, तो लपककर खुद हाजिरी देते हैं। पैसों की परवाह किसे है? दोस्त की गर्लफ्रेंड को अगर पसंद आ गए, तो हो सकता है कि वो अपनी कोई प्यारी सहेली ही उसको 'ऑफर' कर दे। है ना सेवा कर, मेवा मिलेगा वाली बात।
लड़कियां भी कहां कम हैं। हिंदी फिल्मों की तरह लास्ट सीन तक सस्पेंस बनाकर रखेंगी कि दिल का सौदा पक्का हुआ भी है या सिर्फ दिल्लगी ही थी। वैसे चाहे जमाना कितना भी बदल जाए, पर आज भी लड़कियों का फिक्स डॉयलॉग है- मैंने इस बारे में अभी नहीं सोचा! कसम से हर लड़की सीधा-सपाट दोस्ती-वोस्ती नहीं, सीधा वहीं के बारे में सोचती है। वहीं तो आप समझ रहे होंगे। फिर ये दौर आता है कि मैं तो तुम्हें अपना दोस्त समझती थी। 'अरे, दोस्ती पर तो लोग जान कुर्बान करते हैं और तुम...' बन गए ना बकरा। अरे, क्या सोचकर जवानी के सुहाने दिन, दिलकश रातें उसकी यादों में झोंक दिए और अब वो ये बोल रही है कि हम दोस्त हैं... चलो हम दोस्त ही रहेंगे...ठीक है, जो हुआ ठीक हुआ। कुछ दिनों बाद घंटी बजती है- राहुल, तुम कहां हो? राहुल तो लवली के साथ डेटिंग फिक्स कर रहा है... और अंजलि अभी भी दोस्ती की खातिर जिए जा रही है। राहुल को दोस्त के रूप में अंजलि तो मिल गई पर वो मिलना भी बाकी है...
-आशीष जैन

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8 comments:

  1. रोचक हास्य का तड़का लगी पोस्ट...
    नीरज

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  2. सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।

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  3. बात मे तो कुछ दम दिखता है आपकी ;-)

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  4. wah re dost, dost ke naam likh dala or bhi khub. dost me duubkar.

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  5. सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।

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  6. बढिया है ..........बहुत खुब

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  7. ये पबलिक हैं सब जानती हैं
    सतीश कुमार चौहान भिलाई
    satishkumarchouhan.blogspot.com
    satishchouhanbhilaicg.blogspot.com

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