05 September 2009

बस एक कार्ड काफी है

राशन कार्ड, वाहन लाइसेंस कार्ड, पेन कार्ड, चुनाव पहचान पत्र और न जाने कितने कार्ड जिन्हें पास में रखने पर भी काम नहीं हो, तो मन करता है कि काश कोई ऐसा कार्ड होता, जो सारी समस्याओं को चुटकी बजाते ही हल कर देता। पर घबराइए मत, जल्द ही आपके हाथ में राष्ट्रीय पहचान पत्र या कहें नेशनल आइडेंटिटि कार्ड। विज्ञान की नई तकनीकों से इस लैस इस कार्ड को हर भारतीय को उपलब्ध करवाने के लिए भारत सरकार तेजी से काम कर रही है। सरकार का कहना है कि इस कार्ड में नागरिक की पूरी जानकारी उपलब्ध होगी। इस परियोजना को लेकर प्रधानमंत्री बहुत आशांन्वित हैं। हों भी क्यों न, उन्होंने इस विशाल परियोजना के लिए देश में सूचना-तकनीक के महारथी नंदन निलेकनी को इस परियोजना का प्रमुख बनाया है।

नंदन निलेकनी देश में सूचना क्रांति लाने में अहम योगदान रखते हैं और वे इंफोसिस के पूर्व उपाध्यक्ष हैं। वैसे यह परियोजना एनडीए सरकार ने 2003 में बनाई थी। इसके लिए सिटीजन एमेडमेंट एक्ट नाम का कानून भी बनाया गया। पर 2004 में यूपीए सरकार के आने से सबको लगा कि यह परियोजना खटाई में चली जाएगी। तब 2006 में उस वक्त के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इस परियोजना के अमल की बात की। सरकार को परियोजना के महत्व के बारे में पता लगा, तो 2008 में मनमोहन सिंह की सरकार ने मध्यावधि बजट में इस परियोजना के 100 करोड़ रुपए आवंटित किए और अब वे इस राशि को भी बढ़ाने की बात कह रहे हैं। अब इस साल इस परियोजना पर वास्तविक काम शुरू हो चुका है। उम्मीद है कि 2012 तक यह कार्ड बनकर तैयार हो जाएगा।
क्या होगा इस कार्ड में?
इस कार्ड में भारत के नागरिक की हर एक जानकारी होगी। उसका नाम, पता, परिवार, ब्लड गु्रप, स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े, जन्म तिथि, वित्तीय स्थिति, जाति, धर्म, वाहन की जानकारी, निवास स्थल का पता, हस्ताक्षर आदि सब कुछ। नंदन निलेकनी की बात मानी जाए, तो यह कार्ड नेशनल पासपोर्ट है। मतलब जल्द ही ऐसा समय आने वाला है, जब इस कार्ड का इस्तेमाल भारतीय होने के सबूत के तौर पर किया जाने लगेगा। इस कार्ड का प्रयोग टेक्स भरने में, फोन का कनेक्शन लेने में, बैंक में खाता खोलने में, वोट देने में, सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में किया जाएगा। इस कार्ड में आपके पैदा होने की तारीख से लेकर स्कूल, कॉलेज या फिर विदेशों में शिक्षा का ब्यौरा होगा। इसके अलावा मकान, दुकान, बैंक अकाउंट, इंश्योरेंस का पूरा ब्यौरा भी मौजूद होगा। आप कहां काम करते हैं या फिर कितनी नौकरियां बदल चुके हैं, रेलवे और हवाई जहाज में कब और कहां सफर किया है, उसके खिलाफ कोई कानूनी विवाद तो नहीं है, ये तमाम चीजें इस कार्ड में दर्ज होंगी। बायोमीट्रिक पहचान के तहत फिंगर प्रिंट, चेहरे का डिजिटाइज्ड स्कैन या आंख की पुतली का स्कैन होगा। इस कार्ड में तरह-तरह की 15 तरह की सूचनाएं होंगी। योजना में बायो मैट्रिक, अंगुली के छाप वाला या कोई अन्य ऐसा तरीका खोजा जाएगा जिससे लोगों की विशेष पहचान हो सके। इसके बाद प्राधिकरण राष्ट्रीय स्तर पर जांच के लिए नेटवर्क तैयार करेगा। इस कार्ड के चलते केंद्र सरकार के पास देश के हर नागरिक की जानकारी होंगी। इससे सरकारी योजनाओं की रूपरेखा बनाने में भी मदद मिलेगी। सुरक्षा एजेंसियों को इससे विस्तृत डेटाबेस मिल जाएगा, ताकि अपराधियों से निपटने में मदद हो सकेगी। यह प्रोजक्ट काफी बड़ा है और इसे पूरा करने में वक्त भी लगेगा। अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसमें तीन साल का समय लग सकता है, इस तरह से इसे पूरा करने का लक्ष्य 2012 तय हो जाता है। यह नेशनल आईकार्ड एक स्मार्ट कार्ड की तरह होगा। जिसमें एक चिप होगी। इस चिप में नागरिक से जुड़ी तमाम जानकारियां दर्ज होंगी। इस योजना के सही क्रियान्वन के लिए जरूरी है कि किसी तरह की लालफीताशाही को रोका जाए और भारी-भरकम धनराशि का सदुपयोग किया जाए। इसके लिए उच्च स्तर पर पारदर्शिता जरूरी है।

क्या होगा फायदा?
इस कार्ड से गरीब लोगों को बहुत लाभ होगा। उनकी क्रय शक्ति में इजाफा होगा। इससे सरकारी योजनाओं में होने वाले घोटालों पर रोक लगेगी, योजनाओं का लाभ सही लोगों को मिल पाएगा। भ्रष्टाचार के कारण अरबों रुपयों की हमारी योजनाओं का लाभ गरीब लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। सरकार नरेगा, भारत निर्माण और राष्ट्रीय स्वास्थ्य ग्रामीण मिशन जैसी योजनाओं को इस विशेष पहचान पत्र के जरिए चलाना चाहती है ताकि भ्रष्टाचार खत्म किया जा सके। विशेष पहचान बनने के बाद नौकरशाहों के लिए विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में गड़बड़ी करना आसान नहीं होगा। भ्रष्टाचार जल्द पकड़ में आ जाएगा। घुसपैठियों के साथ-साथ आतंकवादियों की पहचान भी की जा सकेगी। चुनाव आयोग के मुताबिक हाल के आम चुनावों में 71 करोड 40 लाख मतदाताओं में से 82 फीसदी को मतदाता पहचान पत्र प्रदान किए गए। अगले चुनावों में इसे 100 फीसदी मतदाताओं तक पहुंचाने का लक्ष्य होगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति में भी बहुद्देशीय राष्ट्रीय एकल पहचान-पत्र (एमएनआईसी) काफी मददगार साबित होगा। कम आबादी और कम भ्रष्टाचार वाले इंग्लैंड के गृह विभाग के अनुमानों के अनुसार राष्ट्रीय पहचान कार्ड से उनकी आय में प्रति वर्ष 65 करोड़ से एक अरब पौंड इजाफा होने की संभावना है। कहा जा रहा है कि यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड अथारिटी ऑफ इंडिया शुरू में एक यूनिक संख्या ही प्रदान करेगा, जिसके द्वारा अन्य सूचनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। बाद में अलग-अलग मंत्रालय और विभाग अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग कार्ड जारी कर सकते हैं। ऐसे में यह तो समय ही बताएगा कि एक कार्ड के चक्कर में कहीं दुविधाओं के चक्रव्यूह में हम फंस न जाएं।

क्या शंका हैं
कुछ लोगों का मानना है कि यह कार्ड भारत जैसे बड़े देश में कारगर नहीं हो पाएगा। साथ ही सबसे बड़ी दिक्कत सरकार के साथ यह आने वाली यह है कि वह किस आधार पर यह सुनिश्चित करेगी कि कौन भारतीय है और कौन नहीं। हमारे देश में कई देशों से आए अवैध नागरिक भी रह रहे हैं। आज भारत में दो करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी रह रहे हैं, उन्होंने किसी तरह राशन कार्ड भी बनवा लिए हैं। साथ ही नेपाली, पाकिस्तानी और दूसरे देशों के अवैध रूप से रह रहे लोगों को यह नया कार्ड उपलब्ध हो गया, तो वे अपने आप ही खुद को भारतीय नागरिक साबित कर देंगे। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे में सरकार को यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि किसी भी तरह किसी गैर भारतीय को इसका धारक बनने से रोका जाए। कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के पहचान पत्र से नागरिकों की निजता में घुसपैठ होगी। ब्रिटेन में इसी मुद्दे को लेकर इस तरह के पहचान पत्र का विरोध कंजरवेटिव और लिबरल डेमोक्रेट कर रहे हैं। वहां इस योजना को लेबर पार्टी लेकर आई थी। अभी वहां इस कार्ड के विरोध के चलते अगले साल तक इसके आने की उम्मीद है। अमरीका में भी 1980 के दशक में सामाजिक सुरक्षा नंबर जारी किए गए। पर 11 सितंबर को हुए अमरीकी हमलों ने जता दिया कि इससे आतंकी घटनाओं पर रोका लगाना मुमकिन नहीं है। आतंकी तो हमेशा ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जो पूरी दुनिया को चौंका देते हैं। साथ ही सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आज तकनीकी दौर है और तकनीकी समय में हर तकनीक की काट मौजूद है। ऐसा न हो कि नकली नोट की तरह नकली पहचान पत्र बनना भी शुरू हो जाएं।

क्या है प्रगति?
अभी प्रक्रिया और प्रौद्योगिकी दोनों की पेचीदगियों को देखते हुए एक पायलट परियोजना को प्रायोगिक आधार पर चलाया जा रहा है, जिसमें 12 राज्यों और एक केन्द्र शासित क्षेत्र के चुनिंदा इलाकों के 30.95 लाख लोगों को शामिल किया गया है। तटीय जिलों तथा अंडमान निकोबार द्वीप में यह काम पहले ही चालू हो चुका है। पहचान पत्र एक स्मार्ट कार्ड है, जिसमें माइक्रोप्रोसेसर चिप लगी होगी। यह एक सुरक्षित कार्ड होगा, जिसकी सिफारिश सरकार द्वारा गठित तकनीकी समिति ने की थी। इस समिति में नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर, आईआईटी कानपुर, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड, इलेक्ट्रॉनिक्स कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और खुफिया ब्यूरो के प्रतिनिधि शामिल थे। केन्द्र सरकार के राष्टीय सूचना केन्द्र (एनआईसी) ने इस तरह का विशिष्ट नागरिक कार्ड तेयार करने में अच्छा योगदान दिया है। वर्ष 2007 में ऐसी एक शुरुआती योजना चलाई गई थी जिसमें 20 लाख लोगों को विशिष्ट पहचान संख्या कार्ड दिये गए थे। यह योजना दिल्ली, गोवा, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में चलाई गई थी। बहरहाल यह माना जा रहा है कि 100 करोड़ लोगों से अधिक को विशिष्ट पहचान संख्या कार्ड दिये जाने की परियोजना को इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो के अलावा महिन्द्रा सत्यम और आईबीएम तथा एचपी ही ऐसी बड़ी आईटी कंपनियां हैं, जो इतनी बड़ी परियोजना को अमला जामा पहना सकती हैं।

कैसा है प्राधिकरण
सरकार ने यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर अर्थात नागरिकों को विशिष्ट पहचान संख्या जारी करने की महत्वाकांक्षी योजना की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ाते हुए इससे संबंधित प्राधिकरण का गठन किया है और सूचना तकनीक के धुरंधर नंदन नीलेकणि को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी। नेशनल यूनिक आईडेंटिटि कार्ड के इस प्रोजेक्ट की कमान संभालने वाले नंदन निलेकनी को केबिनेट मंत्री स्तर का दर्जा मिला है। यह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की शुरुआत है, जो अमेरिका या यूरोप आदि देशों में तो सामान्य बात है, लेकिन भारत में यह नए तरह का प्रयोग है। दूसरे परियोजना प्रमुख नंदन नीलेकणि को प्राइवेट क्षेत्र से प्रतिभाओं को चुनने की आजादी भी होगी। नवगठित यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथारिटी आफ इंडिया (यूआईएआई) की मदद करने के लिए सरकार ने 11 सदस्यीय परिषद का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह करेंगे। यह परिषद प्राधिकार और विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और संबंधित लोगों के बीच समन्वय को सुनिश्चित करेगी । परिषद मेंं केंद्रीय मंत्री प्रणव मुखर्जी, शरद पवार, पी चिदंबरम, एस एम कृष्णा, एम वीरप्पा मोइली, कपिल सिब्बल, सी पी जोशी, मल्लिकाजरुन खडग़े और ए राजा शामिल हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया और यूआईएआई के अध्यक्ष नंदन निलेकनी भी इसके सदस्य होंगे । परिषद यूआईएआई को कार्यक्रम, तरीके और परियोजना को लागू करने के बारे में सलाह देगी । पहले चरण में नागरिकों को यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर 12 से 18 महीने के भीतर जारी किया जाएगा । इसका भारी भरकम सचिवालय पहले ही तैयार करवाया जा चुका है जिसमें 115 लोग काम कर रहे हैं तथा शुरूआती परियोजना के एसेसमेन्ट के लिए 100 करोड़ राशि का आवंटन भी किया जा चुका है।

और देशों में भी
राजीव गांधी के समय में सैम पित्रोदा का नियुक्ति सी-डॉट और फिर राष्ट्रीय टेक्नॉलजी मिशन के प्रमुख के रूप में हुई थी। उन्हें आज भी देश में आई दूरसंचार क्रांति की बुनियाद डालने वाले शख्स के रूप में जाना जाता है। सौ से ज्यादा तकनीकी पेटेंट रखने वाले सैम अमरीका में अपना जमा-जमाया बिजनेस छोड़कर राजीव गांधी के आग्रह पर देश वापिस आए थे। इसी तरह आज नंदन निलेकनी इंफोसिस के सह संस्थापक के रूप में करोड़ो रुपए के साम्राज्य को छोड़कर सरकारी दायित्व को संभालने को तैयार हो गए हैं। दुनिया में अब तक सिर्फ छह देशों द्वारा ही इस प्रकार के राष्ट्रीय पहचान कार्ड दिए जा रहे हैं। ब्रिटेन, साइप्रस, जिब्राल्टर, हांगकांग, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में पहचान पत्र जारी किए जा चुके हैं। अमेरिका में राष्ट्रीय पहचान कार्ड नहीं है। वहा एक राष्ट्रीय पहचान संख्या चलती है, जिसे सोशल सिक्योरिटी नंबर कहते हैं। वहा अलग-अलग राज्यों द्वारा अपने-अपने पहचान कार्ड जारी किए जाते हैं। विश्व के पचास से अधिक देशों में भी इस तरह की आइडंटिटी विभिन्न रूपों में उपलब्ध है।
-आशीष जैन

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