05 September 2009

खेल में नशा

डोपिंग खेलों के लिए अभिशाप बन चुका है। पूरी दुनिया चाहती है कि खेल किसी तरह के नशे से मुक्त रहें। इसके लिए दुनिया के सारे खेल प्राधिकरण चाहते हैं कि डोपिंग की जांच में पूरी दुनिया के खिलाड़ी अपना सहयोग दें। दूसरी तरह देश के क्रिकेट खिलाड़ी इस पर मंथन कर रहे हैं कि डोपिंग की जांच के नाम पर किसी एजेंसी का निजी जिंदगी में खलल हो या न हो। क्रिकेट खिलाडिय़ों का साथ बीसीसीआई है। बीसीसीआई क्रिकेट में सबसे धनी संस्था है। आईसीसी जैसी क्रिकेट की सर्वोपरि संस्था चाहे विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) के नियम मान चुकी हो, पर देश के क्रिकेट की संस्था बीसीसीआई के पैसे के आगे आईसीसी को भी सोचा पड़ रहा है। एक तरफ पूरी दुनिया के खिलाड़ी हैं, तो दूसरी तरफ हमारे क्रिकेट सितारे, जो हमारे लिए भगवान से कम नहीं हैं। वे कह रहे हैं कि वाडा डोपिंग के नाम पर क्रिकेट खिलाडिय़ों का सुख-चैन छीनने पर आमादा है। कुछ खिलाडिय़ों का कहना है कि इससे उनकी सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगती है, तो कुछ का मानना है कि यह निजी जिंदगी में जहर घोल देगा। वाडा के एग्रीमेंट पर ऊपरी मन से चाहे दुनिया के दिग्गज खिलाड़ी साइन कर चुके हों, पर मन ही मन वे भी भारतीय क्रिकेट खिलाडिय़ों की तरह इस तरह की तांक-झांक से सहमत नहीं हैं। भारतीय खिलाडिय़ों का मानना है कि वे सालभर खेल में व्यस्त रहते हैं। थोड़े से बचे हुए समय को वे अपने परिवार के साथ बिताना पसंद करते हैं। ऐसे में वे तीन महीने पहले कैसे बता सकते हैं कि वे कहां जा रहे हैं।

क्या है नियम-
भारतीय क्रिकेट खिलाडिय़ों को आईसीसी द्वारा वाडा के साथ किए गए करार के 'व्हेयर एबाउट्स क्लॉजÓ पर गहरी आपत्ति है। इस नियम के अनुसार प्रत्येक खिलाड़ी को तीन महीने पहले प्रत्येक दिन में एक सुनिश्चित जगह पर एक घंटे की जानकारी देनी होगी और अगर खिलाड़ी तीन बार उस बताई जगह पर नहीं मिलता तो कुछ निश्चित समय के लिए उस पर टूर्नामेंट में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। भारतीय क्रिकेटरों को वाडा की उस शर्त से मुख्य आपत्ति है, जिसमें उन्हें प्रतियोगिता के अलावा भी परीक्षण के लिए तीन महीने पहले अपने ठहरने के स्थान के बारे में जानकारी देनी होगी। यह जानकारी ईमेल पर वाडा को दी जा सकती है, तब वाडा का एक प्रतिनिधि आकर खिलाड़ी की जांच करेगा कि कहीं वह प्रतिबंधित दवाओं का सेवन तो नहीं कर रहा है। वाडा का विवादित प्रावधान उन सभी एथलीटों को दोषी मान लेता है जब तक वे अपने को निर्दोष नहीं साबित कर पाते। हमारे देश के खिलाडिय़ों का कहना है कि आईसीसी को खुद डोपिंग रोधी संहिता लानी चाहिए, ताकि क्रिकेटरों को वाडा की शर्तों को न मानना पड़े।
कैसे तय हों मानक
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिबंधित दवाओं की श्रेणियों को भी जांचने की जरूरत है। आजकल बाजार में कुछ ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं, जिसको लेने के 24 या 48 घंटे के बाद कोई जांच यह तय नहीं कर सकती कि खिलाड़ी ने प्रतिबंधित दवा ली भी है या नहीं। हमारे ही देश के निशानेबाज अभिनव बिंद्रा और टेनिस प्लेयर सानिया मिर्जा ने वाडा की शर्तों को मान लिया है। न्यूजीलैंड के खिलाड़ी, आस्टे्रलिया क्रिकेट टीम के खिलाड़ी, मशहूर टेनिस खिलाड़ी एंडी मरे, रोजर फेडरर भी इसके विरोध में उतरे थे। दवा लेकर खेल के मैदान में उतरने वाले खिलाडिय़ों की निगरानी रखने के लिए वाडा के नियम ओलंपिक में पहले से ही लागू हैं। अब चूंकि आईसीसी भी ओलंपिक में क्रिकेट को शामिल करवाना चाहता है, तो आईसीसी ने वाडा से एक करार किया है और इसके तहत अब वाडा के नियम क्रिकेट खेलने वाले देशों के खिलाडिय़ों पर भी लागू होंगे। वाडा के नियमों के मुताबिक खिलाड़ी तीन बार उस स्थान पर नहीं मिलता, जहां उसने होने की सूचना दी थी, तो उस खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। खिलाडिय़ों का कहना है कि इमरजेंसी आने पर वह शहर या जगह छोडऩी पड़ सकती है, पर वाडा इस बात को स्वीकार नहीं करता। विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी के प्रमुख जान फाहे ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के वाडा नियमों को न मानने की आलोचना करते हुए कहा कि इससे दिल्ली में अगले साल होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन पर गलत असर पड़ सकता है। पर क्रिकेट खिलाड़ी हैं कि टस से मस होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। भारतीय संविधान अपने नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। ऐसे में विशेष सुरक्षा प्राप्त खिलाड़ी जैसे सचिन और धोनी अपने भावी कार्यक्रम की सूचना देकर सुरक्षा संबंधी खतरा उठाने से कतरा रहे हैं। साथ ही कई क्रिकेट खिलाड़ी इंटरनेट को ढंग से नहीं समझते। कई खिलाड़ी रोज या जरूरत के हिसाब से अपना भावी कार्यक्रम तय करते हैं। क्रिकेट खेलने वाले ज्यादातर देश वाडा के करार पर साइन कर चुके हैं। साथ ही अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ सहित दुनिया की 571 खेल संस्थाओं ने जब इस खास क्लॉज को स्वीकार कर लिया है, तो ऐसे में भारतीय क्रिकेट खिलाडिय़ों को आपत्ति दर्ज कराने से पहले दस बार सोचना चाहिए था। इससे पूरी दुनिया के सामने भारतीय क्रिकेट की छवि धूमिल होने का खतरा भी है।
क्या है वाडा
मादक पदार्थो के जरिए शारीरिक क्षमता में बढ़ोतरी का मुद्दा 1988 के सिओल ओलिंपिक खेलों में तब चर्चा में आया, जब 100 मीटर की फर्राटा दौड़ में कनाडा के बेन जॉनसन ने सबको चौंकाते हुए तबके विश्व रिकॉर्डधारी कार्ल लुइस को न केवल परास्त किया, बल्कि नया विश्व रिकॉर्ड भी बना डाला। बाद में पता चला कि जॉनसन ने प्रतिबंधित मादक दवा स्टैनाजोलोल का सेवन करके यह उपलब्धि हासिल की थी। अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) ने उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें स्वर्ण पदक से वंचित करके उन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद से ही आईओसी ऐसी व्यवस्था बनाने को लेकर प्रयास करती रही ताकि खिलाडिय़ों को मादक पदार्थो का सेवन करने से हतोत्साहित किया जा सके। आईओसी और अन्य संस्थाओं की पहल पर ही आखिरकार नवंबर 1999 को स्विट्जरलैंड के ल्युसाने में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था का गठन किया गया। इसका नाम वल्र्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) रखा गया। साल 2001 में इसका मुख्यालय कनाडा के मांट्रियल में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्तमान में इसके चैयरमेन आस्ट्रेलिया के पूर्व वित्त मंत्री जॉन फाहे हैं। वाडा की एथलीट समिति की प्राथमिकताओं में खिलाडिय़ों से चर्चा करना और उनसे फीड बैक लेना शामिल है। इसके सदस्य डोपिंग के खिलाफ जागरूकता फैलाते हैं। समिति के एक तिहाई सदस्य हर साल बदले जाते हैं। समिति के अध्यक्ष रूस के आईस हाकी के ओलंपिक और विश्व चैंपियन वायाचेसलेव फिस्तोव हैं। दिलचस्प बात है कि भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी जिस वाडा से नाता तोडऩे की बात कह रहे हैं, उसकी एथलीट में हमारे भारतीय क्रिकेटर बॉलर अनिल कुंबले शामिल हैं। वह वाडा की किसी भी समिति में शामिल एकमात्र क्रिकेटर हैं। वे ही कुंबले खुद मानते हैं कि वाडा ने जो नियम दूसरे खेलों के लिए बनाए हैं, वे क्रिकेट के ऊपर लागू नहीं किए जाने चाहिए। और खेलों में तो एक-एक सैंकड के चलते हार या जीत तय होती है, जबकि क्रिकेट में डोपिंग की संभावना शून्य के बराबर होती है। संयोग देखिए जिस दिन (एक जनवरी 2009) से वाडा ने ठहरने का स्थान बताने संबंधी शर्त लागू की उसी दिन से कुंबले का वाडा की एथलीट समिति में कार्यकाल भी शुरू हुआ था। हालांकि इसकी शुरुआत आईओसी की पहल पर हुई, पर वाडा अपने आप में पूरी तरह से स्वायत्त संस्था है। वाडा का मुख्य उद्देश्य खेलों को मादक पदार्थों से मुक्त रखना है। इसने 2004 में एथेंस ओलंपिक खेलों से पहले वल्र्ड एंटी डोपिंग कोड लागू किया। जिसे आईओसी और आईसीसी सहित करीब 600 खेल संगठनों ने मान्यता दे दी। इसका सबसे विवादास्पद पहलू 'वेअर अबाउट्सÓ शर्त है जिसमें खिलाड़ी को कभी भी परीक्षण के लिए बुलाया जा सकता है। यह प्रावधान इसी साल 1 जनवरी से नए सिरे से लागू किया गया है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की इसी प्रावधान को लेकर आईसीसी से ठनी हुई है। इस शर्त को फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय संस्था फीफा पहले ही ठुकरा चुकी है।

क्रिकेट में नशा
1986- इंग्लैंड के पूर्व ऑलराउंडर इयान बॉथम को नशीले पदार्थों के सेवन के आरोप में निलंबित किया गया।
1993- पाकिस्तानी टीम के तीन खिलाडिय़ों वसीम अकरम, मुश्ताक अहमद और वकार युनिस को ग्रेनाडा में प्रतिबंधित ड्रग्स के साथ गिरफ्तार किया गया। बाद में ये आरोप वापस ले लिए गए।
1994-न्यूजीलैंड टीम के तीन खिलाडिय़ों स्टीफन फ्लेमिंग, मैथ्यू हॉर्ट और डियोन नाश ने एक बार में प्रतिबंधित ड्रग्स लेने की बात कबूली। तीनों ही खिलाडिय़ों पर जुर्माना और निलंबन तय हुआ।
1996- एड गिडिन्स को कोकीन के सेवन के आरोप में 19 महीनों तक क्रिकेट खेलने से प्रतिबंधित किया गया।
1997- ड्रग टेस्ट के लिए उपस्थित न होने पर इंग्लैंड के स्पिनर फिल टफनेल पर 1000 पाउंड के जुर्माने के साथ 18 महीनों का निलंबन लगाया गया।
2003- 2003 के वल्र्ड कप से ठीक पहले ऑस्ट्रेलिया के शेन वार्न को प्रतिबंधित दवाओं के सेवन के आरोप में स्वदेश वापस भेज दिया गया।
2004- इंगलिश काउंटी वारविकशायर के ऑलराउंडर ग्राहम वैग ने कोकीन के प्रयोग की बात स्वीकारी और उन्हें 15 महीनों के लिए प्रतिबंधित किया गया। वैग को काउंटी से भी निष्कासित कर दिया गया।
2005- चैनल 9 के कमेंटेटर डर्मोट रीव ने कोकीन के प्रयोग की बात स्वीकारते हुए अपना पद त्याग किया। कीथ पाइपर को डोप टेस्ट में दूसरी बार फेल होने पर पूरे सत्र के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। पाइपर इससे पहले 1997 में भी डोप टेस्ट में पकड़े गए थे।
2006- पाकिस्तान के शोएब अख्तर और मोहम्मद आसिफ को चैंपियंस ट्रॉफी से पहले डोप टेस्ट में फेल होने पर पीसीबी द्वारा क्रमश: दो और एक वर्ष के लिए निलंबन किया गया। हालांकि एक दूसरे ट्रिब्यूनल में अपील के बाद उन्हें निर्दोष पाया गया और उनका निलंबन रद्द हो गया।
2007- भारत के पूर्व क्रिकेटर मनिंदर सिंह को 1.5 ग्राम कोकीन के साथ गिरफ्तार किया गया।
2008- पाकिस्तान के मोहम्मद आसिफ को नशीले पदार्थ के साथ दुबई हवाई अड्डे पर रोका गया।

ओलंपिक में नशा-
ओलंपिक खेलों की शुरुआत 1896 में हुई और 1904 के सेंट लुई ओलंपिक में डोपिंग का पहला मामला सामने आया। इसके ठीक 100 साल बाद 2004 में एथेंस में डोपिंग के कई मामले सामने आए। एथेंस ओलंपिक में सबसे अधिक 27 खिलाडिय़ों को प्रतिबंधित दवा सेवन का दोषी पाया गया। खेलों में शक्ति बढ़ाने वाली दवाओं के बढ़ते प्रयोग के कारण विभिन्न खेल संघों ने 1960 के दशक के शुरुआती सालों में डोपिंग पर प्रतिबंध का फैसला लिया। इसे अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने 1967 में अपनाया। पहली बार मैक्सिको सिटी ओलंपिक के 1968 ओलंपिक में इसे लागू किया गया। ओलंपिक 1904 में अमेरिकी मैराथन धावक थामस हिक्स को उनके कोच ने दौड़ के दौरान स्ट्रेचनाइन और ब्रांडी दी थी। हिक्स ने दो घंटे 22 मिनट 18.4 सेकंड में नए ओलंपिक रिकार्ड के साथ मैराथन जीती थी लेकिन तब डोपिंग के लिए कोई नियम नहीं थे इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। रोम ओलंपिक 1960 में डेनमार्क के इनेमाक जेनसन साइकिल दौड़ के दौरान नीचे गिर गए और उनकी मौत हो गई। कोरोनोर जांच से पता चला कि वह तब एम्फेटेमाइंस के प्रभाव में थे। यह ओलंपिक में डोपिंग के कारण हुई एकमात्र मौत है। ओलंपिक में प्रतिबंधित दवा लेने के कारण प्रतिबंध झेलने वाले पहले खिलाड़ी स्वीडन के हांस गुनार लिजनेवाल थे। माडर्न पैंटाथलान के इस खिलाड़ी को 1968 ओलंपिक में एल्कोहल सेवन का दोषी पाया गया जिसके कारण उन्हें अपना कांस्य पदक गंवाना पड़ा। डोपिंग के कारण ओलंपिक पदक गंवाने का भी यह पहला मामला था। भारत की दो भारोत्तोलकों प्रतिमा कुमारी और सनामाचा चानू को भी एथेंस ओलंपिक 2004 में क्रमश: एनबोलिक स्टेरायड और फुटोसेनाइड के सेवन का दोषी पाया गया जिसके कारण इन दोनों के अलावा भारतीय भारोत्तोलन संघ (आईडब्ल्यूएफ) पर भी एक साल का प्रतिबंध लगा था। शेन वॉर्न क्रिकेट के इतिहास में पहले खिलाड़ी हैं जिन्हें प्रतिबंधित दवाओं के सेवन का दोषी पाया गया है और खेल से हटा दिया गया है।
-आशीष जैन

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