03 November 2008

नखरा बड़ा खाने-पीने में



बच्चों की खाने की आदतें बिगड़ रही हैं। अनाश-शनाप खाने वाले बच्चों पर एक पड़ताल।

13 साल की निखिला आनंद नोएडा के अपमार्केट पब्लिक स्कूल में पढ़ती है। निखिला जब स्कूल में प्रोअर के लिए जाती है तो अक्सर उसे चक्कर आने लगते हैं और वह बेहोश हो जाती है। डॉक्टर ने उसकी जांच की तो पाया कि उसका हीमोग्लोबिन का स्तर काफी कम है। तीर की तरह दुबली-पतली निखिला खाने के मामले में काफी ना-नुकुर करती है और खाने की मेज पर उसकी मां और उसमें हमेशा तकरार चलती रहती है। उसकी खाने की इस आदत से उसमें लौह तत्व की कमी की वजह से एनीमिया हो गया है। दूसरी तरफ 12 साल का रितिक घोष उच्च कॉलेस्ट्रोल से परेशान है और उसे अब रोजउठाकर फुटबाल खेलने की हिदायत है। रोहित का मोटापा पूरी तरह से उसके अनियमित और गलत खान-पान से जुड़ा हुआ है। रोहित सारे जंक फूड्स खाने का शौकीन है, पर उसे फल-सब्जी खाने के नाम पर काफी परेशानी होती है। खाने में उसके काफी नखरे होते हैं।सर गंगाराम हॉस्पिटल, नई दिल्ली को शिशु और पेट रोग विशेषज्ञ नीलम मोहन के मुताबिक, 'सबसे ज्यादा परिजन इसी शिकायत के साथ हमारे पास आते हैं, कि उनका बच्चा ढंग से खाता-पीता नहीं है।

'मैक्स हेल्थकेयर, नई दिल्ली के शिशु रोग विशेषज्ञ राहुल नागपाल साफ कहते हैं, 'जितने दौलतमंद परिजन हैं, उतनी ही गंभीर समस्या बनने लगती है।' मैंने देखा है कि संपन्न घर के माता-पिता खूब खिलाने की कोशिश करते हैं, पर बच्चे उतना ही खाने-पीने से घृणा करते हैं।' इसे हमें 'गरीबी से त्रस्त अमीर बच्चे' कह सकते हैं। इस आदत के प्रभाव भारतीय बच्चों में दिखाई देने लगे हैं।

बुरे प्रभाव

नई दिल्ली स्थित पोषण विशेषज्ञ ईषी खोसला कहती हैं कि खाने में मां-बाप को परेशान करने वाले बच्चों का स्टेमिना काफी कम होता है। उनकी एकाग्रता क्षमता भी घट जाती है और बाल व त्वचा पर कुप्रभाव नजर आने लगता है। वे कहती हैं कि 11 साल की उम्र तक खाने की जो आदतें बन जाती हैं, वह ताउम्र बनी रहती है। डॉ. नागपाल कहते हैं 'अध्ययन बताते हैं कि जिन बच्चों को दिन की शुरुआत में ग्लूकोज की कमी होती है उनमें 'लर्निंग डिसऑर्डर' की संभावना बढ़ जाती है। चुन- चुनकर खाने वाले बच्चों में विटामिन और खनिजों की कमी होती है। उनका विकास भी इससे प्रभावित हो जाता है। अधिकतर मामलों में इससे 'नियोफोबिया- नए खाने से डर' की आशंका बन जाती है। अगर बचपन में बच्चों में स्वास्थ्यपरक भोजन के प्रति रुचि जागृत की जाए तो आगे भयंकर बीमारियों जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन की संभावना कम हो जाती है।इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली के शिशु- पेट रोग विशेषज्ञ अनुपम सिबल के अनुसार 'इस पूरी समस्या का जन्म बचपन से ही शुरू हो जाता है। जब बच्चे का दूध छुड़ाया जाता है, तो यह समस्या सामने आती है।'

वजह खास है

अगर बचपन में बच्चे का दूध छुड़ाने में मां कोताही बरतती है, तो आगे चलकर बच्चे के लिए खाने पीने की आदतें बिगड़ने की आशंका बढ़ जाती है। कुछ माताएं अपने छोटे बच्चे को भूख से ज्यादा बहुतसी चीजें खिलाती ही जाती हैं, इस वजह से बच्चे में भोजन के प्रति घृणा पैदा होने लगती है। कुछ मांएं दूध छुड़ाने के बाद भी लगातार तरल चीजें ही बच्चों को खिलाती हैं। इस वजह से भी आगे चलकर बच्चों में तरल, आसानी से खाया जाने वाली चीजों की आदत पड़ जाती है।कुछ परिजन तो खाने के समय को मनोरंजन का समय मानते हैं और टीवी, खिलौने दे देते हैं और सोचते हैं कि इन चीजों से बहलकर बच्चा खूब खाएगा। पर होता इससे उलट है। बच्चे खाना तो खाते नहीं है बल्कि लगातार टीवी और खिलौने मांगते रहते हैं। बच्चों के दांत निकलना, गले में दर्द, बंद नाक और पेट में खराबी होने की वजह से बच्चे हमेशा खाने से नाक-मुंह सिकुड़ने लगते हैं। पर यह कुछ ही समय की समस्या रहती है। इस दौरान अगर बच्चों को जबर्दस्ती खिलाया जाता है, तो आगे चलकर समस्या बढ़ जाती है और बच्चा भोजन से दूर भागने लगता है। जो मां-बाप हर वक्त अपने बच्चों के पीछे खाने-पीने को लेकर पड़े रहते हैं, उनमें यह समस्या अधिक होती है। डॉ. नागपाल कहते हैं '90 फीसदी मामलों में जबर्दस्ती भोजन खिलाने की वजह से ही बच्चे खाने में लापरवाह हो जाते हैं।'

सहज समाधान

डॉ. सिबल के मुताबिक यह समस्या काफी आम है। परिजनों को पूरी स्थिति समझनी चाहिए और काफी धैर्य से काम लेना चाहिए। जल्दबाजी से इस परेशानी का हल नहीं ढूंढा जा सकता। काउंसलिंग इसमें मददगार साबित हो सकती है। अगर आपका बच्चा ढंग से खाता नहीं है, तो उसे भूख बढ़ाने की दवा देना सही उपाय नहीं है। खोसला समस्या को जल्द से जल्द पहचानने पर जोर देते हैं। अध्ययन बताते हैं कि खान-पान की आदतों के निर्माण का सबसे सही समय 3 साल की उम्र होता है। सबसे पहले परिजनों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यह समस्या पैदा किस वजह से हो रही है। इसके बाद परिजनों को आराम से, बिना दुखी हुए बच्चे को समझना चाहिए।खाने की मेज से जुड़े एक आधारभूत तथ्य पर अधिकतर डॉक्टर सहमत हैं कि खाना परोसने के 45 मिनिट के अंदर खाने की मेज साफ हो जानी चाहिए और फिर भोजन 3 घंटे बाद ही देना चाहिए। डॉ. नागपाल कहते हैं कि पूरे परिवार को मिलकर एक साथ भोजन करना चाहिए। अध्ययन बताते हैं कि जो बच्चे खासकर किशोरावस्था में प्रवेश करने वाले, नियमित रूप से परिवार के साथ खाना खाते हैं, उनमें फाइबर कैल्शियम, आयरन और दूसरे जरू री विटामिनों की कमी नहीं होती। अगर बच्चा कम मात्रा में भोजन करता है, तो परिजनों को उसी मात्रा में भोजन के जरूरी तत्वों के समावेश की कोशिश करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर बच्चा सिर्फ एक रोटी खाता है तो गेहूं के आटे की जगह उसे सोया या बेसन के आटे की रोटी खाने को दें और इसमें सब्जियां भर दें।

क्या करें-

माता- पिता को बच्चों के सामने खान-पान के मामले में बुराई करने की बजाय खुद का आदर्श स्थापित करना चाहिए। नियमित परिवार के भोजन की योजना तैयार करनी चाहिए।

- अगर आप खुद खूब फल-सब्जी और चपातियां खाते हैं, तो बच्चा भी आपसे सीखकर खाना खाएगा। खाना खाते वक्त टीवी ना देखें।

भोजन को आकर्षक बनाकर पेश करें। जिस खाने को बच्चा बहुत पसंद करता है, उसमें पौष्टिक और कम पसंद करने वाली चीजों का मेल करके भोजन में पेश करें।

- भोजन बनाने, खरीदने में बच्चे को भी शामिल करें। उससे खाने की लिस्ट बनाएं और अलग-अलग ढंग से सब्जियां जैसे- लाल (टमाटर), हरा (मटर), नारंगी (गाजर), पीला (मक्का) चुनने को कहें।- कभी भी भोजन को पुरस्कार या दण्ड के तौर पर न दें।

ऐसा न कहें 'अपनी गाजर खाओ, तभी आइसक्रीम मिलेगी।'

- सब्जियों को सूप, रोटी, मसाला डोसा, चावल, नूडल्स, पास्ता, मैदा, सलाद, चटनीऔर सॉस के साथ मिलाकर पेश करें।

- उसे हाथों से खाने के लिए प्रेरित करें।

- बच्चों को बच्चों या उसके दोस्तों के साथ खाना खिलाएं।

- दूध और ज्यूस ज्यादा ना दें।

- भोजन का समय नियमित रखें। बच्चे के भोजन में उसकी पसंदीदा चीजें भी परोसते रहें।

- अगर कुछ खास चीजें उसे पसंद नहीं है, तो उसके एवज में उतनी ही मात्रा के दूसरे पोषक तत्व दें। सारे डॉक्टर्स और न्यूट्रीशियन्स खान-पान की समस्याओं से ग्रस्त बच्चों के लिए अभिभावकों को रचनात्मक तरीके से भोजन को पेश करने की वकालत करते हैं।

खान-पान की समस्या से ग्रस्त बच्चों की समस्या सुलझाने के लिए इंटरनेट पर कुछ किताबें भी मौजूद हैं-1. आई विल नेवर नॉट एवर ईट ए टमाटो लेखक- लॉरेन चाइल्ड

2. फूसी ईटर्स रेसिपी बुक लेखक- अन्नाबेल करमेल

3. वन बाइट वॉन्ट फिल यू लेखक- एन्न हॉड्जमैन एंड रोज चास्ट

4. प्रीटेंड सूप एंड अदर रियल रेसिपील लेखक- मोली काटजेन एंड एल एल हेंडरसन।

-आशीष जैन

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