03 November 2008

बहकते नन्हे कदम

घटना1- 11 दिसंबर 2007 को गुडगांव के एक स्कूल में दो स्कूली छात्रों ने आठवीं कक्षा के अपने दोस्त पर 5 गोलियां दागकर उसे मार डाला।
घटना2- 3 जनवरी 2008 को मध्यप्रदेश के सतना जिले के चोरवाड़ी गांव में दसवीं कक्षा के एक छात्र ने अपने से जूनियर कक्षा 8 के एक छात्र को गोली चलाकर मार डाला।

हाल ही हुई बच्चों में बढ़ती हिंसा की घटनाओं ने सबके सामने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर क्यों बालमन भटक रहा है? मासूमियत कहां गुम होती जा रही है? यह प्रवृत्ति परिवार, देश-समाज के लिए नासूर बने, उससे पहले सोचना होगा कि कैसे नन्हे कदमों को भटकने से रोका जा सकता है? इसी का खुलासा कर रहा है यह लेख-

आंकड़ों की जुबानी
1. पिछले दस सालों में बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में 400 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।(इंडियन एसोसिएशन फॉर चाइल्ड एंड एडोलेसेंट मेंटल हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक)

2. हर 10 में से चार बच्चे अवसादग्रस्त हैं। (विमहंस के अध्ययन के मुताबिक)

3. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सन्‌ 2020 तक बचपन में न्यूरोसाइकरेटिक समस्या में 50 फीसदी तक का इजाफा हो जाएगा और रोग व मृत्युदर में इजाफे के लिए जिम्मेदार पांच कारणों में एक प्रमुख कारण होगा।
4. विद्यासागर मानसिक स्वास्थ्य और न्यूरो विज्ञान संस्थान (विमहंस) ने 1200 बच्चों पर किए एक अध्ययन के आधार पर बताया है कि दिल्ली में पिछले एक दशक में 15 से 18 साल के बच्चों में तम्बाकू और अल्कोहल का इस्तेमाल चार गुना बढ़ गया है।
ये घटनाएं आजकल सबके बीच चर्चा का विषय बनी हुई हैं। सभी को बच्चों में बढ़ती हिंसा ने हैरत में डाल दिया है। बच्चों में इस कदर बढ़ती हिंसा वाकई चिंता का विषय है। मनोवैज्ञानिक बच्चों के इस बदलते व्यवहार को व्यापक दायरे में देखते हैं और इसके लिए कई कारकों को जिम्मेदार मानते हैं। अगर इसे समय पर नहीं सुलझाया गया, तो समाज में बच्चों की स्थिति बिगड़ सकती है और हम सबको इसके नकारात्मक परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।
कोमल मन, मिट्टी समान
बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। बच्चे अपने परिवार, परिवेश, समाज और स्कूल से बहुत कुछ सीखते हैं। उनमें यह समझ नहीं होती कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। ऐसे में वे कई बार गलत कदम उठा लेते हैं। मुंबई में बच्चों की काउंसलर दिव्या प्रसाद इसी बात का समर्थन करते हुए कहती हैं, 'बच्चों का मन कच्ची मिट्टी की तरह होता है। ऐसे में बच्चे हर चीज से बहुत जल्दी प्रभावित होते हैं। बच्चों में सही-गलत का निर्णय लेने का गुण विकसित करना बेहद जरूरी है।'
बढ़ती सुख-सुविधा और पैसा
उदारीकरण के दौर में भारतीय परिवारों की आय में तेजी से इजाफा हुआ है। इसके चलते सुख-सुविधाओं की वस्तुएं बढ़ी है। बच्चों को भी ज्यादा जेबखर्च दिया जाने लगा है। बच्चे इस पैसे का गलत इस्तेमाल करते हैं। पैसे के बल पर माता-पिता के खरीदे लाइसेंस्ड हथियार बच्चों तक आसानी से पहुंच जाते हैं। घर में रखे हथियारों के प्रति बच्चों में उत्सुकता बनी रहती है। बच्चे मौका देखते ही हथियार को लेकर उसका असल जिंदगी में प्रदर्शन करते हैं और दोस्तों के बीच आपनी धौंस जमाने लगते हैं। कभी-कभी इन हथियारों के जरिए अपना गुस्सा जाहिर करने से भी नहीं चूकते।
पढ़ाई का तनाव
आज प्रतिस्पर्धा का दौर है। मां-बाप व अध्यापक से लेकर रिश्तेदार और साथी-संगी सभी चाहते हैं कि बच्चा स्कूल में हमेशा टॉप पर रहे। बच्चे के मन को समझने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। ऐसे में बच्चा अपनी पढ़ाई को लेकर हमेशा तनाव में रहता है। बच्चा अपने मन की बात किसी से नहीं कह पाता और ऐसे में मन ही मन परेशान रहने लगता है। पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को समय से पूर्व ही करियर का भूत भी सताते लगता है। माता-पिता की बढ़ती अपेक्षाओं के चलते बच्चा अवसाद में आ जाता है।
टीवी और इंटरनेट, कम्प्यूटर गेम्स
तकनीक ने हमारी जीवनशैली का स्तर सुधारा है। पर तकनीक के बढ़ते प्रभाव के चलते बच्चे असल जिंदगी और टीवी के किरदारों में फर्क महसूस नहीं कर पाते। टेलीविजन पर दिखलाई जाने वाली हिंसा बाल-मन पर कुप्रभाव छोड़ती है। वहीं इंटरनेट पर जानकारियों का अनवरत प्रवाह के बीच बच्चे भ्रमित होकर हिंसा को वास्तविक जीवन की सच्चाई मानने लगते हैं। वहीं आजकल कम्प्यूटर गेम्स के बढ़ते चलन से बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता सिकुड़ गई है। कम्प्यूटर गेम्स जैसे हिटमैन, ब्लड मनी, रोड रश बच्चों को सीधे तौर पर हिंसा के जरिए अपना काम निकालने का संदेश देते हैं। बच्चे कम्प्यूटर गेम्स के इस मायावी संसार को असल जिंदगी में भी लागू करते हैं। उसके परिणाम बहुत घातक होते हैं।
तेज जीवनशैली और खान पान
आज के युग में किसी के पास समय नहीं है। हर किसी को जल्द से जल्द परिणाम चाहिए। बच्चे भी तेजी से खुद को बड़ा साबित करना चाहते हैं। इस होड़ में बच्चे अपनी कोमलता छोड़कर प्रतिस्पर्धा में शामिल हो गए हैं। वे अपनी हार बर्दाश्त नहीं कर सकते। बच्चे सफलता में बाधा बनने वाली हर चीज का हल हथियार में ढूंढने लग जाते हैं। वहीं कई शोध साबित करते हैं कि जंक फूड खाने से भी बच्चों की मानसिकता प्रभावित होती है। फास्ट फूड के बढ़ते चलन से बच्चों का बौद्धिक स्तर कम हुआ है। अकेलापन
आधुनिक समय में माता-पिता दोनों रोजगार के लिए दिन के समय घर से बाहर रहते हैं। जिस समय बच्चा स्कूल से घर आता है उसे चाहिए मां का दुलार, उसके ममता भरे बोल। लेकिन उसे इसकी बजाय खालीपन मिलता है।वह घर पर सारे दिन अकेला रहता है। बच्चा इस अकेलेपन को सहन नहीं कर पाता है। अकेलापन हावी होने से उसकी मानसिकता में विकृति आने लगती है। अकेलेपन का कोई रचनात्मक उपयोग न होने की वजह से बच्चे में तनाव, अवसाद और निराशा घर करने लगती है।
कुछ खास बातें
बच्चों के कुछ खास लक्षणों को देखकर आप पता लगा सकते हैं कि आपका लाडला भी किसी मानसिक परव्शानी या अवसाद से तो नहीं गुजर रहा-
1. हमेशा उदास रहना और अनावश्यक तनाव लेकर आंसू बहाते रहना।
2. हमेशा माता-पिता का साथ पसंद करना और एक पल को भी उनसे दूर नहीं होना।
3. स्कूल में अपने सहपाठियों से घुल-मिल नहीं पाना और हमेशा उनसे लड़ने को उतारू रहना।
4. प्रायः उल्टी, सिरदर्द की शिकायत करना।
5. खेल, पढ़ाई और दूसरी गतिविधियों से अचानक मन उचटना।
6. खान-पान की आदतों में बदलाव और कम नींद लेना।
7. अल्कोहल या ड्रग लेना या एकाएक बहुत ज्यादा वजन बढ़ना।
8. बात-बात पर गुस्सा करना और तोड़फोड़ करना।
9. दोस्तों के नए समूह में शामिल होना
मनोचिकित्सक प्रवीण दादाचांजी और अनिल ताम्बी के मुताबिक अपने बच्चे में कोई मानसिक समस्या देखें, तो इससे निजात के लिए आपको निम्न उपाय करने चाहिए-
1. बच्चों के साथ समय गुजारें- जब तक आप अपने बच्चों के साथ स्तरीय समय व्यतीत नहीं करेंगे, बच्चे को सही राह नजर नहीं आ सकती है। माता-पिता को बच्चों की समस्याएं सुननी चाहिए व उनके साथ बैठकर हल खोजना चाहिए।
2. बच्चों को प्रेरणादायी और सकारात्मक किस्से सुनाएं- आज के युग में बच्चे दिशाहीन होते जा रहे हैं। ऐसे समय में अगर उन्हें प्रेरणादायी किस्से और सकारात्मक बातें बताई जाएं, तो उनका तनाव कम होगा और वे गलत राह पर जाने से बचे रहेंगे।
3. टीवी और कम्प्यूटर गेम्स की बजाय उन्हें पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करें- अगर बच्चे कम्प्यूटर की बजाय पुस्तकें पढ़ने की आदत विकसित करेंगे, तो वे अपना समय कहीं बेहतर ढंग से व्यतीत कर सकेंगे। पुस्तकें बच्चों की सबसे अच्छी मित्र साबित हो सकती हैं।
4. सामाजिक मान्यताओं के सम्मान की सीख दें- अपने बच्चों को सिखाएं कि व्यक्ति का विकास समाज में रहकर ही हो सकता है। सामाजिक मान्यताओं का आदर करना बहुत जरूरी है।
5. खुद मर्यादित व्यवहार करें- अक्सर बच्चे अपने माता-पिता को देखकर काफी कुछ सीखते हैं। अगर माता-पिता खुद अपना व्यवहार मर्यादित रखेंगे, तो बच्चों के सामने एक मिसाल कायम होगी और उनके कदम बहकने से बचेंगे।
6. रचनात्मकता को बढ़ावा दें- हर बच्चे में कुछ खास करने की इच्छा होती है। इसलिए आपको बच्चों की रचनात्मकता को विकसित करने का मौका देना चाहिए। पेंटिंग्स, लेखन और डांस से बच्चों को कुछ नया करने का मौका मिलता है और वे ज्यादा सकारात्मक बन पाते हैं।
7. एंगर मैनेजमनेंट की सीख दें- अगर बच्चे को बात-बात पर गुस्सा आता है, तो उसे गुस्सा कम करने की तकनीक बताएं। गुस्से के वक्त उसे अपनी सांस पर ध्यान देने की सलाह दें। ध्यान और योग से भी बच्चों के गुस्से को कम किया जा सकता है।
क्या कहना है स्कूल प्रिंसिपल्स और निदेशकों का
जयपुर के स्कूल के प्रिंसिपल्स और निदेशकों से जब स्कूल परिसर में बच्चों में बढ़ती हिंसा के बारव् में बातचीत की गई, तो पता लगा कि सभी को इस घटना के बारव् में पता था और इस घटना के पीछे छुपे संकेतों को भी सभी समझते थे। अधिकतर स्कूलों ने इस घटना के तुरंत बाद अध्यापकों के साथ मीटिंग की और बच्चों की भावनाओं को समझने की वकालत की। पर प्रायः स्कूलों ने बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी किसी ठोस कार्रवाई की बात नहीं कही।
नैतिक शिक्षा जरूरी
जैसे ही मुझे गुडगांव की हृदयविदारक घटना के बारे में पता लगा, मैंने स्कूल के अध्यापकों और बच्चों के साथ मीटिंग की और बच्चों को समझाया। मैं अध्यापकों को बच्चों को नैतिक शिक्षा देने की बात कही है।
- आर एल शर्मा, निदेशक, ब्राइट फ्यूचर सीनियर सैकण्डरी स्कूल
शिक्षक से मन की बात कहें
गुडगांव और चोरवाड़ी घटना के बाद हम बच्चों से पूछताछ कर रहे हैं कि उन्हें किसी साथी से डर तो नहीं है। हम निगाह रखते हैं कि किसी बच्चे का व्यवहार असामान्य तो नहीं है। अगर किसी बच्चे को किसी भी तरह की परव्शानी है, तो वह सीधे अपने शिक्षक से बात कर सकता है।
- बेला जोशी, प्रिंसिपल, सुबोध पब्लिक स्कूल
हर हरकत पर निगाह
आज बच्चों के दिल में जो गुबार है,उसे बाहर निकालना बहुत जरूरी है। मैं तो बच्चों के पास जाकर बच्चों जैसी हो जाती हूं। उनकी हर बात ध्यान से सुनती हूं। स्कूल में शिक्षकों को बच्चों की असंदिग्ध हरकतों पर निगाह रखने के निर्देश दिए हुए हैं। पर हर बच्चे की चैंकिंग करना नामुमकिन है।
- राज अग्रवाल, प्रिंसिपल, केन्द्रीय विद्यालय नं.1
हिदायत दी हुई है
स्कूल की हर कक्षा में कैमरे लगे हुए हैं, जिससे हम बच्चों की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं। अध्यापकों को बच्चों के लड़ाई-झगड़े निपटाने के भी निर्देश दे दिए हैं। बच्चों को हिदायत दी है कि अगर आप कुछ गलत चीज स्कूल में लेकर आए, तो आपको स्कूल से निकाला जा सकता है।
-मोहिनी बक्शी, प्रिंसिपल, सीडलिंग स्कूल
काउंसलिंग करवाते हैं
वैसे कोई बड़ा कदम तो नहीं उठाया है। हां, नियमित रूप से अकस्मात चैकिंग का काम चलता रहता है। इससे बच्चे किसी तरह का गलत काम करने से डरते हैं। बच्चों की काउंसलिंग का कार्यक्रम भी बढ़ा दिया है।- माला अग्निहोत्री, वाइस प्रिंसिपल, इंडिया इंटरनेशनल स्कूल
समझाइश से काम होगा
हम माता-पिता को समझा रहे हैं कि हथियारों को बच्चों की पहुंच से दूर रखें। बच्चों को भी पढ़ाई का तनाव नहीं लेने की सलाह दी है। बच्चों को हथियारों के नुकसान से भी चेताया है।
- कर्नल कौशल मिश्रा, प्रिंसिपल, महावीर दिगंबर सीनियर सैकंडरी स्कूल
आलेख- आशीष जैन

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