12 June 2009

रिपोर्टर की रपटन

हे दुनिया के तुच्छ जीवों! मैं सर्वशक्तिमान हूं। मैं अनादि-अनंत हूं। मैं सर्वज्ञ हूं। और भी पता नहीं मैं क्या-क्या हूं। दरअसल मेरी उपमाएं अभी तैयार हो रही हैं। कुछ मुझे ज्ञात थी, सो मैंने कह दी। पर ये पक्का मानना कि मैं इस दुनिया में सबसे अद्भुत है। मेरा स्वरूप हर इंसान में है, पर जो मेरे भावों को अंगीकार कर लेता है, वही इंसान मुझ जैसा बन पाता है। मैं सुबह सवेरे से लेकर रात-बिरात तुम्हारे दिमाग पर कब्जा किए हुए रहता हूं। पापी मुझसे डरते हैं। वैसे तुम मुझे दुनिया का सबसे बड़ा पापी भी मान सकते हो, पर क्या करूं, मेरा काम भी तो अनोखा है। मेरे पास दुनिया के हर पल, हर कोने की सारी छोटी-बड़ी जानकारियां आंख झपकते ही पहुंच जाती हैं।

अगर इतना पढऩे के बाद भी तुम नहीं पहचान पाए कि मैं कौन हूं, तो तुम वाकई क्षुद्र बुद्धि के इंसान हो। जरा गौर करना, अलसुबह से जो अखबार तुम्हारे हाथों में रहता है, वही मेरा कर्मक्षेत्र है, वही मेरा दाता, मेरा ईश्वर है। मैं ही तो अखबार के लिए खबरें जुटाता हूं। मैं रिपोर्टर हूं। कुछ मुझे खबरनवीस, तो कुछ पत्रकार भी कहते हैं। पर मुझे खुद को जर्नलिस्ट कहलवाना ज्यादा पसंद है। इस शब्द से मुझे ज्यादा प्यार है। पत्रकार और रिपोर्टर शब्द सुनकर मैं भड़क जाता हूं, ये शब्द मुझे गाली की तरह लगते हैं। कोरेसपोंडेंट शब्द थोड़ा सोफिस्टिकेटेड है, इसी नाम से मुझे पुकारना। मात्र तुम्हारे पुकारने की देर है, मैं पल में तुम्हारे सामने हाजिर हो जाऊंगा। फिर तुम्हारे साथ घंटों बिताऊंगा और बतियाऊंगा। तुम्हें लगेगा कि मेरे पास टाइम ही टाइम है। मैं फालतू ही तुम्हारे पास बैठा हूं। पर ऐसा नहीं है। मैं घंटों बैठकर कोई काम की खबर तुमसे निकलवा ही लूंगा। अगर कोई तुम्हें परेशान कर रहा है, तो मुझे बताओ। उस बदमाश को अभी चित्त कर दूंगा और ज्यादा चूंचपड़ की तो, उसका बड़ा सा फोटो पहले पन्ने पर छापकर उसे बदनाम कर दूंगा। मेरा तो काम ही है, लोगों की मदद करना। पर इस महंगाई के जमाने में ये मत समझना कि सारे काम मुफ्त में हो जाएंगे। कुछ ना कुछ दक्षिणा तो देनी ही पड़ेगी। वैसे मेरी न्यूनतम फीस दो हजार रुपए है, पर तुम्हारी सूरत देखकर मुझे तुम पर तरस आ रहा है, इसलिए मैं सौ-दौ सौ में काम निपटा दूंगा। चाहे तुमने कोई तीर ना मार हो, पर अगर तुम्हारी दिलीइच्छा है कि तुम्हारा गुणगान भी लोग गाएं, तो मेरे पास आना। मैं शब्दों का मायाजाल रचूंगा और लोगों को भरमा दूंगा कि तुम जैसा इंसान तो दुनिया में पैदा ही एकाध बार होता है। शब्द माया ही तो मेरी असल ताकत है। लोगों को लगेगा कि तुम ही हो इस युग के युगपुरुष।
मुझे तुमसे बस एक चीज और चाहिए। तुम हर हफ्ते मुझे अपने सरकारी ऑफिस में बैठे बॉस की एक-दो ताजातरीन कारस्तानियां लाते रहना। चाहे उसमें आधी सच्चाई हो, पर उसे सत्यापित करके छापने की जिम्मेदारी मेरी है। जब चुनाव होते हैं, तो बिना सभा के ही मैं अखबार में नेताजी के लिए भीड़ की फोटू का जुगाड़ लगा देता हूं, तो ये तो मेरा चुटकियों का काम है। किसी को भी सेलिब्रिटी बनाकर पेश करने में मुझे मजा आता है। बाजार में चाहे कोई ट्रेंड सालों पहले खत्म हो चुका हो, मैं उसे इस तरह अखबार में छापता हूं कि लोगों को लगता है कि नया फैशन आया है। चाहे युवा सो रहे हों, पर मैं लिखता हूं कि युवा क्रांति की ओर अग्रसर हैं। मैं देश की अर्थव्यवस्था के बारे में उन लोगों की राय प्रकाशित करता हूं, जिन्हें देश के वित्तमंत्री तक का नाम मालूम नहीं होता।
मुझे तिल को ताड़ बनाने में महारत हासिल है। किसी की पर्सनल लाइफ में को भी मैं उछाल सकता हूं। मुझसे सब छिपते रहते हैं। चाहे दुनिया में सब ट्रेफिक रूल तोडऩा बंद कर दें, पर मैं कभी हेलमेट लगाकर नहीं चलता। जर्नलिस्ट हूं, तो अपनी गाड़ी पर प्रेस भी लिखवा रखा है। इससे मैं सड़क पर बेखौफ हो जाता हूं। हर उल्टा-सीधा काम कर सकता हूं। सब डरते हैं। पूरे देश में सूचना का अधिकार कानून लागू हो चुका है। हर बाबू से आप उसके काम का हिसाब मांग सकते हो, पर मुझे कंट्रोल करने की कभी कोई सोच भी नहीं सकता।
मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं। बचपन से ही आवारा था, पिताजी हमेशा कहते थे कि कुछ किया कर, नहीं तो मेरा नाम डूब जाएगा, पर अब भरा-पूरा घर देखकर वे भी मेरी तारीफ करते हैं। दारू और सिगरेट से ही मेरी जिंदगी चलती है। शुरू में मुझे देश में बदलाव और समाज-सुधार का शौक चर्राया था। पर अब मैं मशीन बन गया हूं। किसी के घर मौत होने पर मैं रोता नहीं हूं, बल्कि अपनी खबर खोजता हूं। मैं चलता-फिरता सहायता केंद्र बन गया हूं। किसी के बच्चे को पास करना है, किसी को प्लॉट दिलाना है, किसी को मंत्री से नौकरी की सिफारिश लगवानी है, इन सब कामों की मेरी प्राइज लिस्ट तैयार है। तुम्हें जब भी कोई जरूरत हो, मुझे याद करना।
-आशीष जैन

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