भई हम तो परेशान हो गए हैं, ये रोज-रोज एक ही बात सुनते-कहते। कभी-कभी तो लगता है कि यह सत्य वाक्य तो वेद वाक्य से भी ज्यादा शाश्वत है। कभी आपने गौर किया कि आप रोजमर्रा की जिंदगी में कितनी बार कहते हैं- अरे, यार टाइम ही नहीं है। मैं पक्के से दावा कर सकता है कि इस अखिल ब्रह्मांड में ऐसा कोई प्राणी नहीं है, जिसने इस मंत्र का उच्चारण नहीं किया हो। आज सुबह तो हद ही हो गई है। हम अपनी घड़ी साथ लाना भूल गए और जब बस से उतरते सज्जन से पूछा कि टाइम कितना हुआ, तो वे महाशय बोले- अभी टाइम नहीं है, मैं नहीं बता सकता। तो जनाब देखा आपने टाइम बताने के लिए भी टाइम नहीं है। आपको लग रहा होगा कि मैं तो मजाक कह रहा हूं।
ऐसा भी भला कहीं होता है। साथ में आप मुझे यह तर्क भी देगो कि लाले दी जान, ये इंडिया है। यहां सब के पास टाइम ही टाइम है। इतनी बेरोजगारी है, काम है नहीं। तो फिर लोगों के पास टाइम ही टाइम पड़ा है। जितना चाहो, थोक के भाव ले लो। गली-नुक्कड़ पर कई प्यारेलाल मिल जाएंगे, जिनके पास इस संपदा का भंडार है। पर मैं आपसे शर्त लगा सकता हूं कि मैं सही हूं। चाहे बूढ़ा हो या जवान, गोरा हो काला, उत्तर भारतीय हो या दक्षिण भारतीय, सब के पास इस अनमोल धन की कमी है। दूर से देखने से ही लगता है कि लोगों के पास टाइम है। पर अगर पास जाकर उनसे तनिक-सा टाइम मांग लिया, तो फिर देखिए, कैसे बरसते हैं आप पर। आपको उनकी तोहमत सुन-सुनकर यकीन हो जाएगा कि आपने दुनिया का सबसे बड़ा पाप कर दिया है।
हमें तो पहले के दिन याद करके खुद पर ही दया-सी आने लगती है। जाने कहां गए वो दिन। जब मैं गांव में रहा करते थे और सुबह-सुबह नीम की अच्छी दातुन की खोज में सैर करते-करते कहां से कहां चले जाया करते थे। दूर खेत में जाकर ही निपट भी लिया करते थे। सब काम तसल्ली से। और एक हमारा बेटा है। जो एक तो सुबह तो नौ बजे उठेगा। और उठते ही अखबार उठाकर भागेगा, लैट-बाथ की तरफ। हमने एक दिन पूछा कि ये अखबार साथ में क्यों ले जाते हो लल्लू। तो बोला- पापा, एक साथ दो काम करता हूं। निपटने के साथ-साथ अखबार भी चाट डालता है। उसकी बात सुनकर हमें तो बड़ी घिन्न-सी आई। उससे पूछो- लेट क्यों उठा, तो कहेगा, रात को इतना काम जो किया था। अरे क्या पहले के लोग काम नहीं करते थे क्या। काम भी ज्यादा करते थे और खुद के हाथों से करते थे। अब तो ससुरे कई तरीके ईजाद हो गए हैं। कपड़े धोने की वाशिंग मशीन आ गई है, रोटी बेलने की मशीन आ गई है। फिर भी टाइम नहीं है। ये अचरज नहीं है, तो और क्या है। अब ये कमबख्त मोबाइल फोन भी खूब करामात दिखा रहे हैं। खाते-पीते, नहाते-धोते, चलते-फिरते, उठते-बैठते और भी ना जाने कितने 'ते-तेÓ में ये मोबाइल घुस गया है। सारे काम मोबाइल पर पूरे हो रहे हैं। फिर भी पता नहीं कहां पहुंचने की जल्दी है। हमें तो लगता है कि टाइम नहीं करते-करते ही एक दिन पूरी दुनिया अपना टाइम पूरा कर लेगी। फिर लोग कहेंगे- अरे, यार टाइम तो था, पर अब हाथ से निकल गया। अब क्या करें। घर में कोई हमारी सुनता ही नहीं है। सब बस भागे जा रहे हैं। घर आते हैं, तो फिर वही रट- अभी टाइम नहीं है। और कभी पूछे कि किस काम में बिजी हो, तो कहेंगे कि काम ही तो कर रहा हूं।
'टाइम इज मनीÓ का फार्मूला इजाद करने वाला मुझे मिल जाए, तो उसके दो चपत लगाए बिना नहीं रहूंगा। उससे पूछेंगे कि क्यों लोगों को भरमाते हो। हम हिंदुस्तानियों के लिए तो टाइम और मनी दोनों से ज्यादा अहमियत तो रिश्ते रखते हैं। अगर बूढ़े बाप के पास बैठने के लिए दो पल नहीं बचे, तो ऐसे टाइम और मनी क्या करोगे? बच्चों की किलकारी सुने बिना मां अगर 'टाइम नहीं हैÓ चिल्लाती हुआ ऑफिस निकल जाएगी, तो क्या जिंदगी में कोई रस रह पाएगा। बचपन में दद्दा कहते थे कि दुनिया में आपसी प्यार से बड़ी अहमियत किसी चीज की नहीं हो सकती। किसी का टाइम कभी खराब होता है, तो कभी सही। पर अगर सबसे बनाकर चलोगे, तो बुरे टाइम को अच्छा बना लोगे। पर अब हमें लगता है कि इस दुनिया में टाइम से महंगी कोई चीज हो ही नहीं सकती। और मजेदार बात देखिए, ये महंगी चीज जिस के पास भरपूर मात्रा में होगी, वही सबसे निट्ठला कहलाएगा। सब कहेंगे- हमारे पास तो टाइम नहीं है। उसके पास खूब है, उसी के करा लो काम। सारा दिन टाइम पास ही तो करता है। तो जनाब, टाइम की सच्चाई हमें आज तक समझ में नहीं आई। एक तरफ टाइम ना होने का रोना रोते हो और दूसरी तरफ टाइम होने पर टाइमपास का ठप्पा लगाते हो। हम जैसे बेचारे क्या करें। लगता है कि हमारा ही टाइम खराब है, जो टाइम की थ्योरी हमारे समझ में नहीं आती। हम तो पूरी दुनिया से कहते हैं कि टाइम हम इंसानों ने ही बनाया है, तो फिर इसे अपने सिर पर सवार मत होने दो। अपने टाइम के मालिक खुद बनो। ऐसे काम मत करो कि खुद ही टाइम के गुलाम बनकर रह जाओ और बाद में पछताओ।
-आशीष जैन
Mohalla Live
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जाहिलों पर क्या कलम खराब करना!
Posted: 07 Jan 2016 03:37 AM PST
➧ *नदीम एस अख्तर*
मित्रगण कह रहे हैं कि...
8 years ago
सही कहा आपने। समय सबसे बडा धन है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ha ha ha ha
ReplyDeleteha ha ha ha