15 April 2009

बदलाव का बिगुल

ना मेरे पास मनी है, न मशीनरी और न ही मसल पावर। पर वंचितों को उनका हक दिलाने की मुहिम के लिए ही मैं राजनीति में आई हूं। मुझे यकीन है कि बदलाव होकर रहेगा।

मल्लिका साराभाई। कुचिपुड़ी और भारतनाट्यम जैसे नृत्य के क्षेत्र में जाना-माना चेहरा। मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और शास्त्रीय नृत्यांगना मृणालिनी की बेटी। थिएटर और सिनेमा जिनमें रचे-बसे हैं। माता-पिता की बनाई 'दर्पण एकेडमी' के जरिए वे कला को नए आयाम प्रदान कर रही हैं। क्या 56 वर्षीय मल्लिका का परिचय पूरा हो गया। जी नहीं, अब जानिए उनकी शख्सियत का एक और नया पहलू। वे चुनाव लड़ रही हैं, वह भी पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ और बिना किसी पार्टी से जुड़े हुए। उनका कहना है कि मैं डमी कैंडिडेट नहीं हूं। मैं जीतने के लिए जी-जान लगा दूंगी। अब शायद आईआईएम अहमदाबाद से किए गए एमबीए का इस्तेमाल वे अपने चुनावी प्रबंधन में करेंगी।
राजनीति में अपराधी
जानना दिलचस्प रहेगा कि 1984 में राजीव गांधी ने मल्लिका को पार्टी टिकट की पेशकश की थी। उस वक्त उनका मानना था कि राजनीति में प्रवेश किए बिना ही वे गलत चीजों पर खुलकर विरोध दर्ज करेंगी। पर पिछले 25 सालों में राजनीति का जिस तरह अपराधीकरण हुआ, उसे देखकर अब उन्हें महसूस होता है कि अगर बदलाव लाना है, तो राजनीति में शामिल होना ही होगा। बकौल मल्लिका, 'मैं किसी पार्टी से जुड़ी नहीं हूं, क्योंकि हर पार्टी में भ्रष्टाचार और अपराध का बोलबाला है। लोग मुझसे पूछते हैं कि आपको लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ने की क्या सूझी, तो मेरा जवाब होता है कि मैं गांधीनगर में ही पैदा हुई हूं। यहीं पली-बढ़ी और पिछले 20 साल से यहां के लोगों के साथ मिलकर काम कर रही हूं। फिर आडवाणीजी जिस रथयात्रा को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं, मेरी नजर में उसने ही देश के सामाजिक ताने-बाने को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई है।'
बदलाव का बिगुल
जब मल्लिका गांधीनगर कलेक्टर के पास अपना चुनावी नामांकन भरने के लिए गई, तो बांस की टोकरी में इसके लिए 10 हजार रुपए इकट्ठे किए। आगे भी चुनावी प्रचार के लिए पारिवारिक मदद लेने की बजाय जनता से ही चंदा प्राप्त करेंगी। मल्लिका ने अपना चुनाव चिह्न नगाड़ा चुना है। इसका संदेश है कि अब बदलाव का बिगुल बज चुका है और बदलाव होकर रहेगा। उनका मानना है कि अब राजनीति में पढ़े-लिखे लोगों को आना चाहिए। देश की सबसे बड़ी समस्याओं में सांप्रदायिकता भी अहम मुद्दा है। अगर लोग राजनीति में सुधार चाहते हैं, तो उन्हें राजनीति में आना चाहिए और अपनी बात खुलकर लोगों तक पहुंचानी चाहिए। आज नेता इस तरह व्यवहार करते हैं, मानो लोकतंत्र उनके पास गिरवी रखा हो। हमें बदलाव चाहिए और इसके लिए हमें ही पहल करनी होगी। मैं चाहती हूं कि राजनीति में भी पारदर्शिता आए और लोगों के नेताओं के प्रति नजरिए में बदलाव आए। मैं लोगों को यकीन दिलाना चाहती हूं कि आम जिंदगी में आज भी विचारधारा और आदर्शों के लिए उचित स्थान बचा हुआ है। मेरा मकसद है कि समाज के उन चंद ठेकेदारों को सबक सिखाऊं, जो निजी स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं। महिलाओं को उचित सम्मान दिलाना भी मेरी प्राथमिकता है।
-आशीष जैन

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