15 April 2009

राजनीति की आंखों का ऑपरेशन

38 साल की नेत्र सर्जन मोना शाह शिक्षित लोगों को राजनीति से जोडऩे के लिए लड़ रही हैं चुनाव।

'मेरा पेशा है, लोगों की नजर सही करना। मैं चाहती हूं कि राजनीति की दृष्टि में भी कुछ सुधार करूं।' ऐसी ही कुछ सोच है दक्षिण मुंबई के मुन्सिपल अस्पताल की नेत्र सर्जन 38 साल की मोना शाह की। मोना दक्षिण मुंबई से लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं। बकौल मोना, 'अब प्रोफेशनल्स को राजनीति में ज्यादा से ज्यादा आना होगा। अगर पढ़े-लिखे लोग राजनीति में आएंगे, तो विकास की संभावना ज्यादा रहेगी। वे सही और त्वरित फैसले ले सकेंगे। संसद में जाने वाले एमपी को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए। मेरा लक्ष्य नोन-वोट बैंक के संपर्क में आना है। मैं दक्षिण मुंबई के उन शिक्षित लोगों से वोट डालने की अपील कर रही हूं, जो अपने काम के चलते वोट डालने को ज्यादा तरजीह नहीं देते। मैं चाहती हूं कि वे राजनीतिक नेतृत्व की अहमियत को समझें।' वे इस ओर ध्यान दिलाती हैं कि पिछले आम चुनावों में दक्षिण मुंबई में केवल 37 फीसदी मध्यवर्गीय मतदाता वोट देने पहुंचे थे। अगर मैं इस आंकड़े को 70 फीसदी तक पहुंचाने में कामयाब हो जाती हूं, तो मेरी जीत पक्की है। उन्होंने दिसंबर से ही अपना प्रचार अभियान शुरू कर दिया था। पहले वे निर्दलीय खड़ा होने का मानस बना चुकी थी। पर फिर पीपीआई (प्रोफेशनल पार्टी ऑफ इंडिया) से चुनाव लड़ना तय किया। 2007 में स्थापित पुणे की इस पार्टी का गठन कुछ प्रोफेशनल्स के एक समूह ने किया है। इसका मकसद उन लोगों को चुनावों के लिए प्रोत्साहित करना है, जिनके पास चुनाव लड़ने का कोई अनुभव नहीं है। शाह के प्रचार में दो खास मुद्दों की झलक साफ दिखाई दे रही है। वे सुरक्षा और आधारभूत ढांचे में सुधार को मुंबई की सबसे बड़ी जरूरत बताती हैं। वे राजनेताओं से सवाल पूछती हैं कि करोड़ों रुपए टैक्स में देने के बावजूद भी आधारभूत ढांचे में कोई बदलाव नहीं आया है। साथ ही वे पिछले साल 26 नवंबर को मुंबई पर हुए हमलों को लेकर भी जनता की आंखें खोलना चाहती हैं। वे एलान करती हैं, 'अब समय आ गया है, जब हमें राजनीतिक रूप से जागरुक हो जाना चाहिए।'
-आशीष जैन

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