01 April 2009

मूर्खता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है


हमारे देश के लोगों को सबसे ज्यादा मजा ही खुद मूर्ख बनने में आता है। धन्य हैं हम हिंदुस्तानी, जो हर रोज अप्रेल फूल मनाते हैं।
'अरे ताऊ, गोपी की मां गुजर गई और आप यहां खाट पर टांग फैलाए हुक्का पी रहे हो। जल्दी करो, गोवर्धन चाचा आपको बुला रहे हैं।' मुआ रामू जैसे ही ये बोला मानो पूरे शरीर में 440 वॉट का करंट सा दौड़ गया। वक्त-बेवक्त नाशपीटा ऐसे समाचार लाता है कि दिल कुरते की जेब फाड़कर बाहर निकलने लगता है। ये उमरिया भी तो ऐसी है कि गांव में सबकी खैर-खबर रखनी पड़ती है। कौन जिया कौन मरा, कौन आया कौन गया। चाहे हम पंच पटेल ना हों, पर आज भी गांव के सारे लोग इत्ती इज्जत करते हैं कि दिल की बगिया में गुलाब सी खुशबू रहती है। तो मैंने तो अपनी लाठी उठाई और दौड़ा चला गोपी के घर की तरफ। वहां पहुंचते हैं, तो क्या देखते हैं कि गोपी की मैय्या तो सही-सलामत सिलबट्टे पर चटनी पीस रही है। पहले-पहल तो आंखों को भरोसा ही नहीं हुआ कि अरे क्या ये भूतनी तो नहीं बन गई। तभी ठकुराइन बोली, 'गज्जू, तू कैसे हांफते-हांफते आ रहा है, कोई बात हो गई क्या।' फिर तो हम समझ गए कि ये सब ऊ रामू की कारस्तानी है। हम तो उल्टे पांव दौड़ पड़े रामू को ढूढऩे वास्ते। चौपाल के रास्ते में क्या देखते हैं कि रामू मजे से पेड़ पर बैठकर आम चूस रहा है। हम बोले, 'उतर नीपूते। झूठ बोलकर पागल बनाता है।' जबरदस्ती उसे उतारकर दो चपत रसीद कर दी। रामू तो रोने की बजाय हम पर ही चढ़ बैठा और बोला, 'का ताऊ, ई तो फैशन है। आज एक अप्रेल है। आज तो बहुत लोगन को हमने बावला बना दिया और आप हमें मारत हो।' अब सोचने की हमारी बारी थी। एक और नया दिन। अंग्रजों का एक और गिफ्ट। कमबख्तन ने ये कैसे-कैसे दिन बना रखे हैं। कभी मदर्स डे, कभी फादर्स डे तो प्यार करने वालों के लिए वैलेंटाइन डे। अरे मां-बापन के साथ तो रोज ही रहते हो, फिर उनका तो रोज सम्मान करो भई। दिन मनावै से कौनसो मां-बाप निहाल हुए जा रहे हैं। और हम हिंदुस्तानी तो लोगों को हर रोज ही पागल बनाते हैं और दूसरे देशों से रोज पागल बनते हैं। इसमें एक अप्रेल को कौनसी बड़ी बात हो जाती है। अभी-अभी तो पागल बने हैं पाकिस्तान से। पहले उसने ही मुंबई में कांड करवाए, फिर खुद ही हमदर्दी का नाटक करता है। मियां जरदारी कहते रहे कि मदद करेंगे जांच में। फिर बोले कि कसाब पाकिस्तानी ही नाहीं। ई का है। पागल बनावो नाहीं, तो और का है। चीन कहत रहत कि ऊ हमार दोस्त है और अरूणाचल प्रदेश पर कब्जा करने की कोशिश। का ई पागल बनवो नाहीं। और हम कौनसे सीधे हैं। पूरी दुनिया से कह देत हैं कि यहां आओ, घूमो-फिरो। बेचारे पर्यटक भी मजे-मजे में चले आते हैं। फिर देखो कैसे मूर्ख बनाते हैं उन्हें। एक का माल दस में। पूरी लूटखसोट। भगवान झूठ ना बुलाए। पर हमने तो कइयों को पागल बनाया है। तस्लीमा नसरीन, एम एफ हुसैन तो याद ही होंगे। एक तो हमारे यहां मेहमान थीं, दूसरा तो घर का ही बच्चा था। पहले तो कहा था कि सब बराबर है। कोई अत्याचार नहीं। फिर कहने लगे कि हम नहीं संभाल सकते। बहुत ही पंगा है। चलो खुद ही बंदोबस्त करो अपना। ये क्या कम मजाक करा हमने। एक और बात ये बड़े-बड़े लोग हम जनता को वाकई बेवकूफ ही तो समझते हैं। तभी तो हमेशा नौटंकी चलती रहती है। कभी संसद में नोट लहराएंगे, फिर कहेंगे हमारा लोकतंत्र महान। एक बार कहेंगे बापू महान, फिर आंखों के सामने बापू की विरासत को बिकते देखेंगे। महिला आरक्षण के लिए जंग लड़ेंगे और चुनाव में महिलाओं को टिकट देंगे, ना के बराबर। कभी सत्यम को छूट देंगे, फिर उसी रामलिंगम को गाली देंगे। हम तो भई मूर्ख बनते-बनते अजीज आ चुके हैं। लगता है कि मूर्ख बनना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। बनो मूर्ख और हंसते रहो खुद पर। अब चुनाव आ रहे हैं और मौका मिलेगा मूर्ख बनने-बनाने का। मैं तो लाठी ठोककर दावा कर रहा हूं आप मूर्ख बनोगे, जरूर बनोगे। नेता आएंगे, आपके दरवाजे। लगाएंगे थोड़ा-सा मसका और आप बाअदब उनके झांसे में आओगे। फिर बाद में पछताओगे। हां, एक जुगत है, जिससे आप खुद उनको बावला बन सकता हो। अबकी बार नेता आएं, तो पकड़कर पूछ लेना, पिछली बार वोट दिया, उसका हिसाब दे दो और ले लो हमारा वोट। फिर उनका हिसाब आपकी गणित से फले, तो ठीक, वरना जै रामजी की।

-आशीष जैन


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