30 March 2009

लाइफ में बिंदास मस्ती

काश! कॉलेज के ये दिन कभी ना बीतें। जिंदगी यूं ही थमी रहे और दोस्तों के साथ हरदम मस्ती का दौर चलता रहे। ना कोई फ्रिक ना कोई टेंशन बस फुल एन्जॉय।
'यार ये लड़के अपने आप को समझते क्या हैं? हमें देखते ही यूं स्टाइल मारने लगते हैं, जैसे सलमान खान हों, पर लगते पूरे जोकर हैं।' अदिती ये बोली ही थी कि मैं जोर-जोर से हंसने लगी। मैं बोली, 'तू अभी से टेंशन ले रही है। अरे, अभी तो हमें कॉलेज ज्वॉइन करे हुए, जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए हैं। आगे-आगे देख, होता है क्या। अब हमें बिंदास बनकर अपनी लाइफ गुजारनी है। फुल मस्ती, नो टेंशन।' मैं और अदिती बचपन के दोस्त हैं। साथ में स्कूलिंग की है और अब कॉलेज में भी साथ-साथ आ धमके हैं। हमने हमेशा गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की, सो लड़कों के पढ़ने के नाम से ही मन धड़कने लगता है। ना जाने कैसे होंगे। मन में खयाल आता कि हमें परेशान करेंगे। पर ये सब के सब तो पढ़ाकू निकले। कुछ एक टपोरी टाइप के लडक़े हमें देखकर चारों ओर मंडराने लगते हैं। पर हम कौनसा उन्हें भाव देते हैं। कॉलेज में आते ही ऐसा लगता है कि अरे पढ़ाई का असली मजा तो यही हैं। हमने स्कूल की बजाय सीधे की कॉलेज में एडमिशन लिया होता, तो कितना मजा आता। मन में तो यही उमंग है कि अब स्कूल की पाबंदियों से छुटकारा मिल गया। मन मयूर की तरह नाचता रहता है। एक तरफ लगता है कि चलो अब स्कूल यूनिफॉर्म और प्रेयर का झंझट खत्म हुआ। साथ ही कुछ अजीब विचार भी मन में आते हैं। चारों तरफ के दिखावे पर नजर पड़ती है, तो मन सोचता कि ये पढ़ने की जगह है या कोई फैशन शो। स्टाइल मारने में सारे बंदे परफेक्ट। कभी मन सोचता है कि यही तो दिन कॅरियर संवारने के हैं, दूसरी तरफ समाज की कई सच्चाइयां सामने आती हैं, तो मन में घिन्न होने लगती है। दरअसल पिछले दिनों मेरे साथ पढ़ने वाली रीना हमारी ही क्लास के सुरेश के साथ कहीं चली गई। सब कहते हैं कि वो सुरेश के साथ भाग गई। पर मैं सोचती हूं कि क्या सुरेश नहीं भागा था उसके साथ। फिर सब रीना को ही दोष क्यों देते हैं। अदिती ने मुझे बताया कि वे दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे। तो भई, प्यार करना कोई जुर्म थोड़े ही ना है। पर दोनों को अगर किसी पवित्र बंधन में बंधना ही था, तो घरवालों को प्यार की बात बताते और उन्हें समझा-बुझाकर शादी करते। इस तरह कायरों की तरह घर वालों को दुखी करके कहीं जाने से कौनसा वे ताउम्र खुश रह पाएंगे। चलिए ये तो हुई मेरे कॉलेज की बात। पर एक ऐसी बात भी आपको बताना जरूरी है, जिसके बिना मेरी कॉलेज लाइफ अधूरी है। इसी साल तो मुझे पापा ने नया मोबाइल और स्कूटी लाकर दी है। अब तो मानो मैं आसमान में उड़ती रहती हूं। जमीन पर तो कदम ही नहीं रखती। मोबाइल पर कब हम सब दोस्त मिलकर पार्टी की प्लानिंग कर लेते हैं, किसी को पता ही नहीं लगता। अब तो मम्मी ने मेरी पॉकेट मनी भी बढ़ा दी है। जो भी ड्रेस पसंद आती है, दोस्तों के साथ जाकर खरीद लाती हूं। थोड़े पैसे खुद के पास होते हैं और थोड़े दोस्तों से उधार। अरव्, सब चलता है, मैं भी तो मदद करती हूं सबकी। हां, मम्मी जरूर समझाती है कि बेटी, तू पैसे बहुत फिजूलखर्च करने लगी है। पर आप ही बताइए, अगर ड्रैस, मेकअप और गिफ्ट पर पैसे खर्च नहीं करूंगी, तो भला मेरे दोस्त क्या कहेंगे? कहेंगे, अभी भी बच्ची ही है क्या। हां, जब-जब शाहरूख की मूवी लगती है, मैं फ्रैड्स के साथ कॉलेज से बंक मारकर फिल्म जरूर देखती है। यार सच कहूं, कॉलेज से बंक मारने का भी एक अलग मजा है। बंक मारो और किसी दोस्त को पकड़ लो। फिर तो कोई भी बहाना बनाकर उससे मैक्डी में ट्रीट ले ही लेते हैं। बाद में उसे बताते हैं कि आज तो तू बकरा बन गया हो.. हो.. हो..। यूं तो हमारे कॉलेज का टाइम सुबह 11 से 3 बजे तक का है, पर हमारी मित्रमंडली तो 6 बजे तक कैंटीन में गप्पें ही लड़ाती रहती है। फिर जब थक-हारकर बोर होने लगते हैं, तो सबको बाय कहके निकले पड़ते हैं घरों की ओर। मम्मी-पापा से ज्यादा दोस्तों के साथ रहना-बातें करने को जी चाहता है। सब कुछ सुहाना-सा लगता है। लगता है कि ये दिन कभी खत्म ना हों। एक बार कहीं बैठ गए, तो घंटों बैठे रहें और बातों का सिलसिला चले, तो फिर कभी खत्म ना हो। घर पर भी जाकर चैन थोड़े ही ना पड़ता है। दादा-दादी, चाची-बुआ सबको अपनी राम-कहानी सुनाने लगती हूं। ये हुआ, ये खाया, यूं मजे किए। मेरे साथ-साथ पूरा घर की जवान हो उठता है। अब तो खुली आंखों से सपने देखती हूं। खुलकर जीती हूं। इन दिनों सब कुछ धुला-धुला, साफ-साफ और नया-नया नजर आता है। मेरी तो यही ख्वाहिश है कि हमेशा के लिए ये दिन मेरी आंखों में बस जाए और जिंदगी यूं ही खुशनुमा बनी रहे।

-आशीष जैन

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