01 April 2009

पहाड़ सा बुलंद हौसला

जब हौसला बड़ा हो, तो उम्र कभी बाधा नहीं बनती। मिलिए पचपन साल की वासुमती श्रीनिवासन से। वे साल में तीन बार पहाड़ों पर चढ़ती हैं और कई साहसिक कारनामों को अंजाम देती हैं।

उनकी बेटी की शादी का मौका है। अपनी नौ गज लंबी कांचीपुरम की सिल्क साड़ी को वे पारंपरिक तरीके से पहने हुए हैं। वासुमती श्रीनिवासन हर तरह से एक दक्षिण भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार की घरेलू महिला लग रही हैं। पर जब वे पहाड़ों पर चढ़ती हैं या बर्फ की चोटी पर जाती हैं, तो उनका पहनावा भी उसी के अनुरूप हो जाता है। मूल रूप से बंगलौर की वासुमती ने पिछले साल महिलाओं के ऊंट सवारी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। इस दल में माउंट एवरव्स्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल भी शामिल थीं। इस दौरान उन्होंने 35 दिन ऊंट पर सवारी करके थार के रव्गिस्तान और कच्छ के रन को पार किया। साथ ही वासुमती और उनकी बेटी स्मिथा पहली ऐसी मां-बेटी हैं, जो देश की हिमालय की 6,553 मीटर ऊंची कुलू पूमोरी चोटी पर चढ़ी हैं। उनके इस कारनामे को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी जगह मिली है।अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए वासुमती कहती हैं, 'मुझे हमेशा से इस बात की उत्सुकता रहती थी कि पहाड़ियों के दूसरी ओर क्या है? जब मैं बंगलौर के लोगों की पसंदीदा जगह नांदी हिल्स पर पिकनिक मनाने जाती थीं, तो वहीं रहने को मन करता था। एक बार मैं (1968 में) अपने मम्मी-पापा के साथ नांदी हिल्स आई थीं, तो वहीं कहीं झाड़ियों में छुप गई ताकि पूरा परिवार वापस बंगलौर न जा सके और मैं पूरे दिन पहाड़ियों पर चढ़ती-उतरती रहूं।'1976 में एडवांस्ड माउंटनियरिंग कोर्स पूरा करने के बाद उनका चयन माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के चौथे अभियान में हो गया। उस वक्त कुल 6 महिलाएं चुनी गईं। पर आखिरी चरण में उनका चयन नहीं हो पाया। लेकिन 1981 में उन्होंने कर्नाटक की महिलाओं की बंदरपुंछ पर चढ़ाई के अभियान पर नेतृत्व किया। वे कहती हैं, 'पहाड़ वाकई रहस्यमयी, अनुमान से परे और आश्चर्यजनक होते हैं। हालांकि रोमांच भरी माउंटनियरिंग में जान का जोखिम रहता है। पर जब पहाड़ों पर चढ़ने जाती हूं, तो पूरी तरह ध्यान उसी पर केंद्रित होता है। जब भी मैं किसी साहसिक अभियान में जाती हूं, तो यही सोचती हूं कि वापस आकर परिवार को संभाल लूंगी।' किसी चोटी को फतह करने के अपने अनुभव के बारे में वासुमती बताती हैं, 'किसी भी चोटी पर पहुंचने पर मैं काफी भावुक हो जाती हूं। काफी मशक्कत के बाद कामयाबी हासिल होती है, तो आंखें खुशी से छलक जाती हैं। वहां पहुंचकर हम पूजा-आराधना भी करते हैं और ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।' वासुमती इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते पहाड़ों को नुकसान पहुंच रहा है। वे समय-समय पर अभियानों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की अपील करती हैं कि हमें प्रकृति और पहाड़ों को बचाने के लिए प्रयत्न करने चाहिए।
-आशीष जैन

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