10 June 2009

हाय! हम उसके बिना कैसे रहें?

वो हमारी जान है। हाय! हम उसके बिना कैसे रहें? हमने उसके साथ कितना समय बिताया। और अब वो हमसे दूर है। गली-गली, कूचे-कस्बे सब जगह ढूंढ़ लिया, पर वो कहीं नहीं है। हमने लाख उपाए किए कि वो वापस आ जाए, पर पता नहीं किसकी नजर लग गई। मंदिर, मस्जिद हर जगह माथा टेका, पर शायद ऊपरवाले को भी मंजूर नहीं कि वो हमें नसीब हो। उसके बिना ना रातों की नींद है और ना ही दिन का करार। उसके लिए हम ही नहीं, हमारे दोस्त, हमारे शुभचिंतक यहां तक कि हमारे दुश्मन भी दुआ कर रहे हैं कि उसे पाना है। वही तो हमारी इज्जत है, वही हमारी शान है। सच-सच बताना, कल तक जो आपका हो, अगर वो किसी और के पास जाकर रहने लगे, तो क्या आपको बुरा नहीं लगेगा क्या?

हाय! हम उसके बिना कैसे रहें? कमबख्तों ने देश को खोखला कर दिया। यहां का सारा पैसा विदेशी बैंकों में ले जाकर ठूस दिया। इन नेताओं का बस नहीं चलता, वरना ये तो स्विट्जरलैंड में जाकर ही बस जाएं। इन्हें पांच बरस देते हैं, हम लोग, अपने विकास के लिए। पर देश का विकास तो जाए भाड़ में, इनकी आस तो अपने संतानों के सुख से जुड़ी है। हमारे लालजी इस चुनाव में बढिय़ा मुद्दा खोजकर लाए कि स्विस बैकों में जमा पैसा वापस भारत लाएंगे। एकबारगी तो इन नेताओं की जान पर बन आई होगी। हम तो ये चाहते हैं कि काश! वो पैसा जल्दी से जल्दी भारत वापस आ जाए। फिर देखते हैं कि किस नेता ने कितनी गद्दारी की है? छोड़ेंगे नहीं करमजलों को। मलाई खा-खाकर तुंदिया गए हैं। बुजुर्ग हो जाएंगे, पर नेतागिरी का भूत सिर से नहीं उतरेगा। युवाओं को टिकट देने के नाम से ही जान जाती है। अब जिस देश में करोड़ों लोग एक वक्त का खाना खाकर जिंदगी काट रहे हों, उस महान, भारत विशाल में अगर ऐसी धूर्तता चलती रहेगी, तो जल्द ही हम सबका बेड़ा गर्क हो जाएगा। हम तो मनमोहन भाई से इतना ही कहना चाहते हैं कि सरदारजी, आप इन पांच सालों में कुछ करें या ना करें, पर प्लीज विदेशी बैंकों में जमा नेताओं के पैसे को जरूर वापस ले आइए। ये देश आपका सदा ऋणी रहेगा।
हाय! हम उसके बिना कैसे रहें? गर्मी की छुट्टियां आते ही हमारी लख्तेजिगर, शरीकेहयात हमें छोड़ अपने मायके जा बसी है। मायका भी कहां अमरीका, इत्ती दूर। अब इस भरी दुपहरी में किससे दिल लगाएं, किससे अपने मन की बात कहें। वो होती थी कि गर्मी में भी ठंडक का एहसास होता था। चाहे वो हमें घर का काम ना करने के लाख ताने मारती थी, पर उसके बिना बहुत सूना लगता। राम कसम कपड़े धोने से लेकर खाना बनाने तक की मशक्कत में तेल ही निकल जाता है। दिनभर काम करने के बाद जब घर लौटकर उसकी गालियों की बौछार सुनता था, उसकी फरमाइशों की लिस्ट देखता था, तो लगता था कि ये भी कोई जिंदगी है। पर आज लग रहा है कि यह सुख भी बड़ी किस्मत वालों को ही नसीब होता है। कोई हमें बताए कि हम क्या जतन करें कि वो लौट आए। उससे फोन पर बात करने की कोशिश की, तो ससुरे ने फोन उठा लिया। हमने तो तपाक से अपनी आवाज बदल ली। और क्या करते? ससुरजी मिलिट्री में हैं। क्या पता भड़क उठें और बंदूक सिर पर तानकर बोलें कि मेरी बेटी पर अत्याचार करता है, दबाव डालता है। सो हम तो शांत हैं जी। हम तो अपने मन को यूं तसल्ली देते हैं कि जब उसे हम जैसे निरीह प्राणी पर तरस आएगा, तब खुद-ब-खुद लौट आएगी।
हाय! हम उसके बिना कैसे रहें? हमारा कोहिनूर हीरा तो इंग्लैंड की रानी के ताज में ही अटक कर रह गया है। कब से हमारी सरकारें चाह रही हैं कि वो वापस आ जाएं। मजे की बात बताएं कि सब सरकारें बस चाह रही हैं, कोई उसे वापस ला नहीं रहा। इतना शानदार हीरा अगर हमारे पुराने आकाओं की जमीन पर पड़ा रहेगा, तो कैसे लगेगा कि हम आजाद हैं। जो हमारा है, उस पर हम अपना हक दिखा सकते हैं। ये तो कोई बात नहीं हुई जी। अब गांधी बाबा की विरासत को ही देख लो। कहीं चश्मा, कहीं घड़ी। कुछ-कुछ दिन छोड़कर अखबारों में खबर पढऩे को मिलती हैं कि नीलामी के लिए गांधीजी की फलां चीज सामने आई है। यूं तो हमारे राष्ट्रपिता हैं बापू। पर ये जोर कोई नहीं लगाता कि एक बार में छानबीन करके गांधीबाबा की सारी चीजें भारत ले आएं। सच कहें, बापू की चीजों की नीलामी होते देख, हमारा दिल तो बहुत दुखता है जी। जिन गांधीजी को शराब से नफरत थी, उसकी चीजों को देश में शराब बेचने वाला व्यापारी वापस लेकर आए, ये हमें कतई नहीं सुहाता। गांधी की विरासत अपनी जमीन पर वापस आएगी, तो हमें लगेगा कि हमारे लोगों की नजर में भी संस्कृति और धरोहर कोई मायने रखता है। नहीं तो ये दिल यूं ही मचलता-तड़पता रहेगा।
हाय! हम उसके बिना कैसे रहें? लगता है कल-परसों की ही तो बात है। हमारा भतीजा मोनू आईआईटी करने मुंबई गया था। पूरे घर ने सोचा था कि अपन का सपूत तो पूरे खानदान को निहाल कर देगा। पर वही हुआ, जिसका हमें डर था। ना जाने क्या सोचकर मोनू विदेश चला गया, नौकरी करने। यूं तो नौकरी उसे अपन के देश में भी कई मिल रही थी, पर वो होता है ना विदेश सैर का चस्का। अब आसानी से यह लत नहीं छूटेगी। अब तो बिल्कुल बदल गया है। फोन पर जब करते हैं, तो वही अंग्रेजी लटके-झटके। हाय मॉम-डैड। मुझे अंकल कहने लगा। खान-पान, संस्कृति सब कुछ भूल गया। साल में एक बार अपनी शक्ल दिखा जाता है। अरे, ये भी कोई जिंदगी है। मां-बाप ने पाला-पोसा, बढ़ा किया और तुम हो कि पैसे के पीछे भागते-भागते अपनी जमीन को छोड़कर। अरे लल्ला, एक बार अपने देश की सौंधी मिट्टी की महक लेकर तो देखो, फिर वापस नहीं जा पाओगे। और हमें क्या चाहिए? रुपए-पैसे तो हमारे पास भी बहुत हैं। देश ने तुम्हारे लिए कितना कुछ किया है, तो क्या तुम उसे वापस कुछ नहीं लौटाना चाहते। चलो और किसी के लिए नहीं, तो अपनी मां के लिए ही आ जाओ, जो तुम्हें कई दिनों से गले लगाने के लिए तड़प रही है।
-आशीष जैन

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1 comment:

  1. aap rupaye ke mulya ka mulyankan sahi rup me kiya hai, jisase usake mulya ka pata chalata hai

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