10 June 2009

जन-गण का रण

आपको तो पता है कि गर्मी कितनी पड़ रही है? पारा कितना ऊपर चढ़ चुका है। ऐसे में लोगों का मगज भी ठिकाने पर नहीं है। उनका पारा किसी भी बात से चढ़ सकता है। पूरा देश छोटी-छोटी सी बात पर बौखला सकता है। सब चाहते हैं कि रेल की पटरी की तरह जिंदगी सब सीधी-सपाट चलती रहे। अब अगर क्रिकेट में मास्टर ब्लास्टर नहीं चला, राजनीति में कमल का फूल मुरझा गया और नौकरी पर संकट छा रहा है, तो इसमें हम क्या करें। क्या बोलना-लिखना छोड़ दें। किसी से कहो कि तसल्ली रखो, तो भड़क उठता है। अरे, क्या जमाना है भई, हम कह रहे हैं कि नौकरी गई नहीं है, सब अफवाह है और तुम हो कि अफवाहों को सुन-सुनकर ही पतले हुए जा रहे हो। सोच रहे हो, अब मेरा ही नंबर है नौकरी से निकलने का।
किंगखान का तो क्रिकेट का नशा उतर गया लगता है। कितनी तालियां बजाई थीं, अपने खिलाडिय़ों के चौक्के-छक्कों पे। पर फिर कुछ काम नहीं आया।

महारानी ने चुनौती दी थी 'जादूगर' भाई को। कहा था कि विधानसभा जैसा प्रदर्शन लोकसभा में करके बताओ, तो दम मानें। अपने 'जादूगर' गहलोत ने भी बता दिया कि हम चाहे पिछली बार की भाजपा का 21 का आंकड़ा ना छू पाए, पर आपको तो चार पर ही सिमेट दिया न। अब महारानी की बोलती बंद है। बाबोसा ने भ्रष्टाचार का राग अलापा, तो सबकी बोलती बंद। अब पुराने चिट्ठे खुल रहे हैं, तो बदले की राजनीति का नाम लेकर मुंह क्यों फेर रहो हो। पता है बहुत गर्मी है। पर इसमें हमारा क्या दोष। कूलर-एसी में बैठो। धूप में निकलते ही क्यों हो, जो गर्मी सिर में चढ़ जाए।
अपने फिल्म वाले रामू भैया भी कमाल है। राष्ट्रगान के शब्दों में उलटफेर करने चले थे। अरे भई, एक अदद अच्छा गीतकार नहीं खोजा जा रहा था क्या, जो दिल की बात को शब्दों में ढाल सके। तर्क भी तो देखिए जनाब का- इससे फिल्म की मूलभावना झलकती है। मूलभावना के लिए कोई और तरीका नहीं बचा क्या। सब चीजों को पैसे के तराजू पे तोलकर अपने इस्तेमाल की फितरत बदल डालो रामू भैया। अब लग गई ना सुप्रीम कोर्ट की रोक इस गीत पर। रामू को गुस्सा तो बहुत आ रहा होगा, पर किस पर निकालें।
अब देश के जन-जन ने सोचा था कि हमने स्पष्ट जनादेश दिया है, तो फिर केंद्र में कोई बवाल नहीं होगा। पर ये नेता हैं ना, अपनी आदत से बाज थोड़े ही ना आएंगे। करूणा की भावना कठोर हो गई है और ममता का पता नहीं, कब पलीता लगा दे। उसे अपनी संतानों का मोह है, तो उसे बंगाल चाहिए। मंत्रालयों की बंदरबांट के लिए यूं लालायित हैं, मानो देश नहीं चलाना, उसे लूटना-खसोटना है।
लोगों ने वोट किस बात के लिए दिया है, पहले ये समझो। लोग चाहते हैं कि जो विकास के काम पिछली सरकार ने किए हैं, वे लगातार चलते रहें। और ये सारे काम तभी लगातार चलते रहेंगे, जब सरकार के साथी उनके काम में कोई टांग ना अडाएं। जो भी विभाग मिले, उस में भी ही बैस्ट काम करें।
जन-जन का मन जानने के लिए उनकी बातों को ध्यान से सुनना जरूरी है। आज लोग युवा नेता चाहते हैं। 61 महिलाएं पहली बार संसद के गलियारों में पहुंचेंगी, तो संभव है कि अब राजनीति के स्तर में मौजूद गिरावट में कमी आए। यूं तो ये सारी महिलाएं किसी ना किसी दिग्गज नेता की बेटी या पोती हैं, पर उनसे ही आस है कि ये महिलाओं के मन की बात समझेंगी और महिला आरक्षण विधेयक को अपनी मंजिल तक पहुंचाएंगी। आज राजनीति के सुधार पर गली-मोहल्ले में चर्चा हो रही है, तो कहीं ना कहीं जनता की सोच में बदलाव तो है ही। अब वे चाहते हैं कि अगर कोई नेता संसद में नालायकी दिखाए, तो उसे वापस जनता के पास भेज देना चाहिए। जनता खुद-ब-खुद निपट लेगी।
-आशीष जैन

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