या खुदा, ये दिन किसी को देखना ना पड़े। सब हंसते-खेलते रहें, तो मन को अच्छा लगता है। हम तो चाहते हैं कि इस झुलसती गर्मी में किसी भी प्राणी मात्र को कोई भी वेदना ना झेलनी पड़े। जीते-जी मरन का सा एहसास होने लगता है। छुईमुई से चेहरों की हवाइयां सी उड़ जाती हैं। सारे कसमें-वादे अधूरे से रह जाते हैं। जिंदगी अधरझूल सी लगने लगती है। ऐसा लगता है कि खाना खाते-खाते मुंह में कंकड़ आ गया हो। सारा स्वाद किरकिरा हो जाता है। अब क्या बताएं कल तक अपने ऑफिस में बादशाह की तरह थे मियां गुमसुम और बत्तोरानी।
जो उन्होंने कह दिया, कर दिया, वही सबके सिर-माथे। किसी की क्या मजाल, जो उनके काम पर उंगली तो उठाए। जो यह गलती करता था, वो तो समझो गया काम से। उसका तो जीना हराम हो जाता था। सौ बातें सुननी पड़ती थीं और रहते वही थे ढाक के तीन पात। रहो बेटा, कुढ़ते। खुद काम करते रहो और उनको फायदे की मलाई खाते देखते रहो। काम में कोई गलती हो जाए, तो हमारे सिर और तारीफ सारी उनके खाते में। गधे की तरह पिदें हम और घोड़े की तरह घास चरें वो। उनकी हर बात को खुदा की सलाह की तरह मानकर दिन-रात घुसे रहते थे अपने काम में। हमें लगता था कि यही है जिंदगी। हम सोचते थे कि ये ही हमारे तारणहार हैं। पर उन तारणहार की तो खुद की ही किश्ती डूब गई। किसी ने कहा है ना कि खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान। तो हम भी कौनसे सदा के लिए गधे रहने वाले थे। वो खिसक लिए और हम जम गए। खुदा कसम, शुरू में अखबार में ये मंदी-मंदी सुनकर हमें डर नहीं लगता था। सोचते थे कि ऐसा भी कहीं होता है कि अमरीका में मंदी और फर्क पड़े हमारे देश पर। नौकरियां जा रही हैं, तो जाएं। अमरीका से हमें क्या वास्ता। पर जब अपन के देश को ये बीमारी लगी, तो गाज तो अपने साथी लोगों पर ही आकर गिरी। उनका तबादला हो गया। हमें लगा कि ये क्या हुआ, गाज तो हम पर गिरनी चाहिए थी। सबकी नजर में गधे तो हम ही थे ना। पर मंदी की मार तो सारे घोड़ों को ले मरी। किसी को कहां फेंका, किसी को कहां। कोई जंगल में डाल दिया गया, तो किसी को बार्डर एरिया मिल गया। अब चरो बैठकर आराम से घास। कसम ऑफिस में चलते कूलर और पंखों की। आज तक हमने कभी उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं देखी। उन्हें देखकर लगता था कि क्या कूल लाइफ है इनकी। काम की कोई टेंशन ही नहीं और एक हम हैं कि कूलर के सामने बैठकर भी पसीने में तरबतर रहते हैं। काम की टेंशन के चलते हांफते हुए कुत्ते बन जाते हैं। कसम से जब वे जा विदाई ले रहे थे, तो हमने कइयों की आंखों में आंसू तक देखे हैं। कुछ का उनसे स्नेह का संबंध का था, तो किसी का वास्ता प्यार के रिश्ते से। अब कैसे दिन कटेगा। हमारे मियां गुमसुम और बत्तोरानी तो अब विदा हो रहे हैं। मियां गुमसुम का चेहरा देखकर हंसी के फव्वारे छूटते थे और बत्तोरानी की बातें हमारे चांद-सितारों की सैर करा देती थी। ऑफिस में उनके बिना तो 'बिन पानी सब सूनÓ वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी। गम तो हमें भी था कि इतने दिनों हमारे साथ काम किया, अब एकदम से सारा काम हमें ही करने पड़ेगा। पर हमें यह ज्यादा लग रहा था कि जान बची, तो लाखों पाए। वे तो समझ नहीं पाए कि कब, क्यूं और कैसे ये हुआ। कल तक तो सब सही था। फिर एकदम से घंटी बजी और ट्रांसफर का लैटर हाथ में। मन ही मन सोचने लगे, 'कहां कमी रह गई, सारी सेटिंग तो ठीक थी। कोई बयानबाजी नहीं, कोई हंसी-मजाक नहीं। सोचा था कि ये सारी खुराफातें तो तबादलों के दौर के बाद में कर लेंगे। बॉस की भी खूब चापलूसी की थी। हो ना हो, जरूर किसी ने हमारी शिकायत की है।Ó इन सब बातों के बीच में वे ये भूल गए कि ये जो बॉस नाम की जीव होता है, वो यूं तो हमेशा आपकी तारीफ करेगा, हमेशा मुस्कराता रहेगा, पर जब आखिरी दांव लगाना पड़ेगा, तो निखट्टुओं को ही आगे करेगा। उसे पता है कि अगर गधों की तरह पिदने वालों को बाहर भेज दिया, तो फिर ऑफिस का काम कौन करेगा। दरअसल हमें हमारे गुरु ने पहले ही एक मंत्र दे रखा था कि ये बॉस नामक जीव कभी किसी का सगा नहीं होता। अगर वो आपकी तारीफ नहीं कर रहा, तो घबराने की जरूरत नहीं है। भई, ये बॉस चिंघाड़ते मतलब बोलते तब ही हैं, जब आपसे कोई गलती हो गई हो। तो भाईजान, हम तो तबादलों की चक्की में पिसने से बच गए। पर मियां गुमसुम और बत्तोरानी अपने गमजदा चेहरे पर हंसने की भाव-भंगिमा बनाकर हमें यह दिखाने की कोशिश कर रहें कि लल्लू, हमारे ऊपर कोई असर नहीं पड़ता, हम तो जहां जाएंगे, वहां एक नया चमन बना लेंगे।
-आशीष जैन
Mohalla Live
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जाहिलों पर क्या कलम खराब करना!
Posted: 07 Jan 2016 03:37 AM PST
➧ *नदीम एस अख्तर*
मित्रगण कह रहे हैं कि...
8 years ago
badiyaa apko bahut bahut shubhakaamnayen apki ye asha bani rahe
ReplyDeleteबहुत खूब......
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......