15 June 2009

नया नवेला आइडिया

हमारे एक परम मित्र हैं, गफलत कुमार। वे हमेशा इसी गफलत में रहते हैं कि वे कुछ नया करने वाले हैं। उनका तो तकिया कलाम बन चुका है- हम कुछ नया करने वाले हैं। देश-दुनिया से जब भी किसी नाम काम या किसी नए आविष्कार की खबर आती है, तो वह चहक उठते हैं और बोलते हैं कि देखो, हमारी बिरादरी के लोग बढ़ते जा रहे हैं और नए-नए कामों को अंजाम दे रहे हैं। हम उसे बस देखते रह जाते हैं और वो अपनी हर पुरानी चीज पर नए की मोहर लगाकर सबको उल्लू बनाते रहते हैं। नया-नया चिल्लाने से कोई चीज नई नहीं हो जाती है।

नई चीज पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है और ये ही एकमात्र चीज है, जो गफलत कुमार से कभी नहीं हो सकती। हमें पता है, वो आइडिया चुराने में बहुत माहिर है और हम तो बचपन से मानते हैं कि ये पूरी दुनिया गोल है। जो एक छोर से चलता है, वही आपको दूसरी छोर पर बैठा मिलेगा। पूरी दुनिया गोल चक्कर में दौड़े जा रही है। कुछ नया नहीं है। अगर आपको उनको पकडऩा है, तो कहीं जाने की जरूरत ही नहीं है। बंदा चक्कर लगाते हुए आपके पास से तो गुजरेगा ही, बस वहीं उसे थाम लीजिएगा। हम तो यह भी पक्की तौर पर जानते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, तो फिर नई चीज कैसे हो सकती है। नई तो नजर होती है जी। आंखों में जब तक नई नजर का चश्मा पहने रखोगे, तभी तक चीजें नई नजर आएंगी। हमारी बातों पर भरोसा नहीं है, तो अपने चारों ओर नजर उठाकर देख लीजिए। राजनीति में राहुल बाबा वही बात कह रहे हैं, जो सालों पहले उनके पापा राजीव गांधी कह चुके। बस पंद्रह पैसे को पांच पैसे में बदल दिया। राज ठाकरे वही कर रहे हैं, जो बाल ठाकरे कर चुके। और तो और वरुण गांधी कौनसा नया नुस्खा खोजकर लाए, वही पुरानी चाल। गठबंधन पहले भी होते थे, आगे भी जरूर होएंगे।
बाजार में चले जाइए, वही पुराने माल को नए पैकेट में पैक करके बेचा जा रहा है। एक से साथ एक फ्री की तरकीब पुरानी हो गई, तो एक के साथ पांच माल मुफ्त में दे रहे हैं। अरे! दुकानदार तो फिर भी खूब धन कूट रहा है और ग्राहक तो आज भी पहले की तरह ही दुखी है। बाजार में पहले भी बीवी नखरे दिखाकर सस्ते माल को महंगे में खरीद लाती थी और आज तो पूरा परिवार ही ऐसा करने में लगा है। राशन के पहले लाइनें लगती थी, पर आज तो राशन ही गायब हो जाता है। पहले लोग आपस में मिल-बैठकर दुख-सुख की बातें किया करते थे, आज भी मिलते हैं, पर इसकी जगह टीवी सीरियल्स के कपड़ों और गहनों ने ले ली है। गफलत कुमार को कौन समझाए कि जिस दिन से इंसान एक धरती पर आया है, उसने कुछ नया नहीं किया है। अगर उसे कुछ नया करना होता, तो वो ना जाने कब का भ्रष्टाचार मिटा चुका होता। कब का धर्म के नाम पर लडऩा बंद कर देता। पर उसे कुछ नया करने की सूझती ही नहीं। जैसे पहले परीक्षाओं में नकल हुआ करती थी, उससे ज्यादा हो रही है, पेपर ही आउट हो रहे हैं। आप अगर कोई किताब लिखते हैं, तो दो रोज बाद ही उससे मिलती-जुलती एक नई किताब मार्केट में आपको चिढ़ाती हुई नजर आने लग जाती है। फैशन में बदलाव की बात कहने वालों को शायद इतिहास का ज्ञान नहीं है। पुराने फैशन में दो-चार बदलाव का नाम नया फैशन है। क्रिएटिविटी के नाम पर पुराने की धज्जियां उठाते चलो और उस रहे-सहे में भी अपनी टांग फंसा दो। दसियों बार देवदास फिल्म बना लो। अमिताभ को डॉन बना दिया, तो अब शाहरुख को भी बना दो। यह है नयापन। सास-बहू के सीरियल कभी पुराने हुए क्या। हर बार दावा करते हैं कि नया-नया है और जब पास जाकर पैकेट खोलो, तो वही पुराना माल।
अरे गलती इन नया-पुराना बनाने वालों की नहीं है जी। हमें ही बासी खाना खाने की आदत हो गई है। कुछ भी नया पचता ही नहीं है। नए को नकारना हमारी आदत हो चुकी है। कोई नया विचार, नई सोच हमसे कहेगा, तो हम कहेंगे, ससुरा पागल हो गया है। उसे चैन से जीने नहीं देंगे। जब तो वो ढर्रे पर चलने का आदी नहीं हो जाएगा, उसे चैन नहीं लेने देंगे। हम नया करने के नाम पर बस इतना ही कर सकते हैं कि अपने नए माल की पोल ना खुलने दें कि इसे आखिर चुराया कहां से है। अब तो कोई इंसान कोई नया काम या नई खोज करता है, तो गुणीजन उसकी दाद नहीं देते बल्कि उसे शक की निगाह से देखते हैं और कुछ तो ये भी पूछ लेते हैं कि कहां से जुगाड़ लगाया इस प्लान का। लोगों को आज उम्मीद ही नहीं है कि कुछ नया हो सकता है क्या। ऐसे में वाकई जो लोग मेहनत करके कुछ नया पैदा करने की सोचते होंगे, उनका क्या हाल होता होगा, खुदा ही जाने।
- आशीष जैन

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1 comment:

  1. आशीष देते हैं आपको
    पोस्‍ट न लिखो तब भी
    सौ टिप्‍पणियां मिले आपको।

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