पता नहीं आजकल हमें हो क्या गया है? कहीं मन नहीं लगता। मन करता है कि किसी दूसरी दुनिया में चलें जाएं। चारों तरफ परेशानी ही परेशानी है। बीवी मायके गई है। खाने तक के लाले पड़ गए हैं। ऊपर से घर की बिजली हमेशा गुल रहती है। ये सब सोचते-सोचते हमें लगा कि आज तो हम अपने दोस्त कन्फ्यूजन सिंह के घर ही हो आते हैं। कन्फ्यूजन की सबसे बड़ी समस्या है कि वह खुद तो कन्फ्यूज रहता ही है, हमें भी कान फ्यूज कर देता है। मतलब उसकी बातें सुन-सुनकर हमारे कानों में दर्द होने लगता है। वैसे भी उसकी बातें बेसिर-पैर की ही होती हैं। कभी कहता है कि मैं पानी में आग लगा सकता हूं। कभी कहता है कि भ्रष्टाचार मिटाने का फार्मूला है मेरे पास। कभी-कभी तो कहता है कि मैं सबके मन की बात जान सकता हूं।
अब तो मैंने ठान ही लिया कि उसकी सच्चाई जानकर रहूंगा। वैसे भी आधा बावला वो खुद नजर आता है और रही-सही कसर उसकी बातें पूरी कर देती हैं। मैं उसके घर पहुंचा और पूछने लगा कि चल बता इस वक्त मेरे मन में क्या चल रहा है? तो बोला, 'अभी तो तू मुझे गालियां दे रहा है और सोच रहा है कि आज इसकी सच्चाई पता लगाकर रहूंगा।Ó मैं तो भौचक्का रह गया। मैंने पूछा कि मेरे मन की बात कैसे जान गया तो उसका जवाब था- टैलीपेथी से। 'अरे ये क्या बला है? टेलीविजन का विकसित रूप है क्या?Ó 'नहीं यार, तू बस इतना समझ ले कि जादू है जादू।Ó
हमने सोचा, 'हमें इससे क्या? हम तो इसे दूसरों की सच्चाई पता करने में इस्तेमाल करेंगे?Ó हमने पूछा, 'चल बता, तेरी भाभी मतलब मेरी बीवी उबटन, इस वक्त पीहर में बैठी-बैठी क्या सोच रही है?Ó कन्फ्यूजन बोला, 'उबटन भाभी तो अभी टीवी देख रही है और सोच रही है कि कैसे पति के पल्ले पड़ गई, जो मुझे मायके में छोड़कर खुद मजे उड़ता है। वो तुझ पर शक करती है और सोचती है कि जरूर तेरा किसी दूसरी औरत के साथ चक्कर है, तभी मुझे मायके छोड़ रखा है। इसीलिए वो तेरी पड़ोसन मंथरा को फोन करके तेरी जासूसी करती है।Ó यह सुनकर तो हमारे होश फाख्ता हो गए। हमने कहा कि तू सच तो कह रहा है ना। वो बोला, 'सोलह आना सच बोल रहा हूं मेरे दोस्त।Ó एक बारगी तो हमने उसे भी शक की निगाह से देखा, पर अगले ही पल हमें अपनी पड़ोसन मंथरा याद आ गई, जो वाकई मौके-बेमौके मेरे घर के इर्द-गिर्द पाई जाती है। जब मैं उसे टोकता हूं, तो कहती है कि भाईसाहब घर में चीनी खत्म हो गई थी, सो मैं तो आपसे चीनी लेने आ रही थी।
अब जब बात चली थी, तो मैंने सोचा क्यों ना अपने बॉस उघाड़मल की सच्चाई भी पता कर लूं। जब मैंने अपने बॉस के मन की बात जाननी चाही, तो कन्फ्यूजन सिंह बोला, 'भई देखो, वैसे तो तुम्हारा बॉस बड़ा नेक दिल है, पर अभी मंदी के दौर में वो तुम पर टेढ़ी निगाह रखे हुए है। वो वैसे तो भोला कबूतर है, पर इन दिनों मंदी के चलते उसमें बिल्ली की आत्मा घुस गई है। वो घात लगाकर बैठा है कि कब तुम गलती करो, कब वो तुम्हें बर्खास्तगी का लैटर थमाए। यूं तो और लोग भी उसकी निगाह में थे, पर उन्होंने तो बॉस को मक्खन लगाकर अपनी कुर्सी बचा ली। पर तुम चूक गए। कल-परसों तुम्हें नौकरी से हमेशा के लिए छुट्टी मिलने वाली है।Ó अब तो कन्फ्यूजन ने वाकई हमें कन्फ्यूज कर दिया था। वाकई इन दिनों बॉस का बर्ताव हमारे प्रति बदल गया था। अब वो हमारी हर गलती पर मुस्कारता है। कभी-कभी तो हमारे हाल-चाल भी पूछ लेते हैं। पहले तो बिल्कुल शांत रहता था। इन दिनों ही ज्यादा फडफ़ड़ा रहा है। मतलब साफ है कि कन्फ्यूजन के कहे मुताबिक वो मुझे नौकरी से निकालने की पूरी बिसात बिछा चुका है।
अब जब पूरे का पूरा आसमान खुद पर गिरता दिख रहा था, तो हमने कन्फ्यूजन से पूछा कि तू ये तो बता कि मेरी गर्लफ्रैंड चिंचपोकली तो मेरे साथ ही रहेगी ना। इस बात पर कन्फ्यूजन हंसने लगा और बोला, 'तू भी क्या चिंचपोकली के पीछे पड़ा हुआ है। इतनी अच्छी उबटन भाभी है और तू कॉलेज के जमाने की महबूबा पर ही जान छिड़कता है। पर अब चिंचपोकली तेरे झांसे में नहीं फंसने वाली। थोड़े ही दिनों में उसे पता लगने वाला है कि तेरी शादी हो चुकी है। फिर अब तेरी नौकरी जाने के बाद तो उस पर पैसे भी नहीं उड़ा पाएगा, तो फिर वो तुझे ठोकर मारकर आगे बढ़ जाएगी।Ó अब तो हमारी जान गले तक आ चुकी थी। हम सोच रहे थे कि कन्फ्यूजन को हम यूं ही बेवकूफ समझते थे। अब हमें याद आया कि क्यों चिंचपोकली हर मुलाकात में हमारे पर्स की तरफ दौड़ती थी। उसे तो है ही पैसों से मतलब। सोचते-सोचते मेरी हार्टबीट बढऩे लगी। डर के मारे मुझे चक्कर से आने लगे। कन्फ्यूजन सिंह बोला, 'अरे, क्या हुआ? तूने ही तो कहा था सच्चाई बता।Ó मैं निस्तब्ध और एकदम शांत सोच रहा था कि मैं इसके पास आया ही क्यों? इसकी टेलीपेथी इसी को मुबारक कर देता। अब होशियारी के चक्कर में मैं परेशान होता रहूंगा और मेरी पत्नी, नौकरी और महबूबा तीनों मेरे हाथ से निकल जाएंगी। मेरे धन्य हो टेलीपेथी विद्या।
-आशीष जैन
Mohalla Live
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Mohalla Live
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जाहिलों पर क्या कलम खराब करना!
Posted: 07 Jan 2016 03:37 AM PST
➧ *नदीम एस अख्तर*
मित्रगण कह रहे हैं कि...
8 years ago
बढिया लिखा।यह ठेलीपैथी(टेलीपैथी) होती ही ऐसी है।.......वैसे फिर भी जिज्ञासा तो जगाती है ......जरा हमारे बारे में भी पूछ लेना.....;))
ReplyDeleteइतना कुछ हमें भी पता चल गया है...सो..अब देख लो...आगे क्या क्या होने वाला है...
ReplyDeleteek telepathy aapke vishay me main bhi kar doon?
ReplyDeleteaapko is post par kai tipaaniyon ki asha hai ....!:)
hai naa?
badhiya post likhi hai aapne .
बहुत ही अच्छी जानकारी देती पोस्ट....
ReplyDeleteआपका ब्लाग पसंद आया. रिलेक्स होने के लिए यहां आता रहूंगा.
ReplyDeleteनिरन्तरता बनाएं रखें, शुभकामनाएं.
राजेश अग्रवाल
www.sarokaar.blogspot.com
अब फिर से टेलीपैथी का उद्द्भभव करना होगा
ReplyDeleteजब लगे न कहीं मन
ReplyDeleteतो ब्लॉग की दुनिया
दहकाने चले आइये
पोस्ट और टिप्पणियों
का चमन खुला है
आइए पोस्ट लगाइए
टिप्पणी कर जाइए
जाते हैं कहां बंधु
ब्लॉगवाणी पर
पसंद तो कर जाइए।