14 June 2009

एनजीओ: एक अद्भुत जीव

इन दिनों हमारे भारत विशाल में एक नई किस्म की मकड़ी अवतरित हुई है। क्या मकड़ी है, जी। हमें तो लग रहा है कि इस प्रजाति के बिना पूरा मकड़ी समुदाय ही बैचेन था। कब से आस लगाकर बैठी थीं मकडिय़ां कि हमारी तारणहार मकड़ी जल्द से जल्द स्वर्ग से उतरे और धरा पर आए। इसकी खूबी देखिए कि इसका बनाया जाल पूरे के पूरे शहर को अपने शिकंजे में कस सकता है। इसे भोजन करने के लिए कभी परेशान नहीं होता पड़ता। बेचारे भोले-भाले छोटे-छोटे जीव खुद-ब-खुद चलकर इसके जाल में फंसते हैं और ये मजे से उनका आहार करती है और आराम करती है। मुझे लोग अक्सर कहते हैं कि हम तो इसे एनजीओ पुकारते हैं, फिर तुम इसे मकड़ी क्यों कहते हो। हमने उनसे कहा कि जिस दिन तुम इसके जाल में फंसोगे, तुम सब समझ में आ जाएगा कि एनजीओ वाकई एक विशालकाय मकड़ी ही है।

यूं तो धरती पर अनादिकाल से विद्यमान है, पर कलियुग में इसका प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है। गांव-शहर-कस्बे, गली-नुक्कड़-चौराहे हर जगह इसकी की चर्चा है। इस मकड़ी को सरकार अपनी पाले में कभी नहीं आने देती। इसीलिए इसे गैर सरकारी मकड़ी कहा जाता है। पर यह गैर सरकारी मकड़ी अपनी बासी तरकारी बड़े ही सरकारी ढंग से लोगों को मुहैया कराती है। लोगों का दिल बहलाने के लिए इसके पास कई सारी कैटेगिरी हैं। दुख-सुख, लाभ-हानि, पाप-पुण्य जो आपको पसंद है, बोलिए। ये मुफ्त में सेवा प्रदान कराने के लिए भी काफी मशहूर है। इन सब कामों के लिए ये इंसानी रूप धारण करके इंसानी भाषा भी बोल लेती है। आपका दिल जीतने के लिए क्या नहीं करती। सबकी मदद करने के बहाने सबका सब कुछ लेने की जो अदा ऊपरवाले ने इसे दी है, वो वाकई कमाल है।
एनजीओ आजकल फैशनबेल भी हो गई है। हर चमक-दमक का सामान इसके पास मौजूद है। देखकर लगता ही नहीं कि ये कोई मकड़ी की प्रजाति का जीव है। दुनिया में सबसे प्यारा व्यक्ति एनजीओ को पत्रकार लगता है। अगर आप पत्रकार हैं, तो आपको बिना काटे आपके साथ घंटों बिता सकती है। इस दौरान आपको इसके कारनामों और करामातों की लंबी लिस्ट सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए। एनजीओ को अपना फोटू अखबार में छपवाना बहुत भाता है। इसलिए आपको सख्त हिदायत है कि पत्रकार होने के नाते जब भी आप इससे मिलने जाएं, आपके गले में कैमरा जरूर टंगा होना चाहिए। वरना यह क्रोधित हो सकती है। वार्ता के अंत में दो-चार क्लिक अगर आप ज्यादा कर देंगे, तो आपको अलग से पुरस्कृत करने की व्यवस्था भी इसने करवा रखी है। एनजीओ से सरकार चलती है। इसे शायद भगवान शिव से वशीकरण मंत्र भी मिला हुआ। जिससे ये सारे नेता, अभिनेताओं को अपने वश में कर लेती है। नेता और अभिनेता के बहाने लोगों को सीरियस काम में भी लगातार मनोरंजन तत्व मिलता रहता है। उनका इस्तेमाल यह अपने महिमामंडन के लिए करती है। इसके लिए सबसे तुच्छ चीज है- पैसा। इसे तो रुपयों से मतलब रहता है, हां, अगर बात डॉलर और पौंड की हो, तो इसके मुंह में लार आसानी से देखी जा सकती है।
एनजीओ नियम-कायदे कानून को भी दिल से मानती है। ये औरतों को काम-धंधा खोलने के लिए पैसे देती है और बदले में मोटा ब्याज लेती है। ये किसी से भेदभाव भी नहीं करती। मकड़ी होने पर भी ये हर इंसान की बात को पूरे ध्यान से तब तक सुनती है, जब तक कि इसका मतलब पूरा ना हो जाए। ये दिखावा पसंद भी है। अंदर से चाहे थकी हो, पर चेहरे पर हमेशा स्माइल रखती है, पता नहीं कब कोई फोटू ही खींच ले। यूं इसका कोई परिवार नहीं है। पर अलग-अलग जगहों पर ये किसी को अपना भाई, किसी को भतीजा बनाती हुई पाई जाती है। जो एक बार इसके पास आता है, इसी का होकर रह जाता है। ये खुद पूरा इंसान को चबाकर मंच पर शाकाहार की वकालात करती है। एक बार इसने देश में कन्याभ्रूण हत्या के बढ़ते मामलों से चिंतित होकर एक गोष्ठी का आयोजन करवाया और बाद में वहां आए डॉक्टरों को अल्ट्रासाउंड की नई तकनीक भी सप्लाई कर दी। इसे कहते हैं, एक तीर से दो निशाने। बच्चों से भी इसे बड़ा प्यार है। बच्चों के हर मामले पर इसका बयान तीर की तरह तुरंत आता है।
इसकी देश की हर गतिविधि पर पूरी नजर रहती है। चुनावों में किसने-क्या किया, खेलों में कौन हारा-कौन जीता इत्यादि, इत्यादि। इस नजर रखने का इसे बहुत फायदा मिलता है। नजर रखने के दौरान अगर कहीं दाल में कुछ काला पाया जाता है, तो उसे सफेद बनाए रखने के लिए ये करोड़ों रुपए चट करने में उस्ताद है। हां, एक जरूरी बात। वैसे इसके पास अपने कामों की बड़ी लिस्ट है। हर टाइम उन्हें करने में लगी रहती है, पर परिणाम कुछ खास नहीं मिलता। दरअसल इसे काम करने में बड़ा आलस आता है। इसे तो बस माल चाहिए। काम के बजाय आप इससे सुनहरे सपनों की संपूर्ण व्याख्या सुन सकते हैं। इन दिनों यह अपना मकडज़ाल पहले से भी मजबूत कर चुकी है। तो अगर आप अपनी जिंदगी से नाखुश हैं, तो इसके जाल में फंस जाइए और ताउम्र जाल में औंधे मुंह लटके रहिए। बाकी आपकी मर्जी, धन्यवाद।
-आशीष जैन

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2 comments:

  1. सारा देश इस मकड़ी के जाल मे उलझता जा रहा है।पता नही किस प्रजाती कि है ये मकड़ी,रोज़ कई गुना बढ रही है।

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  2. कुछ सहमत.. पर बहुत कुछ असहमत.. सरकार विफल रही इसलिये ये विकल्प उभरे है... सरकार के द्वारा काम करने में सालों लगते है.. ये तुरंत निर्णय ले सकते है.. बाकि अच्छे बुरे हर जगह होते हैं..

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