13 June 2009

पिटाई और धुनाई में अंतर

मुझे बड़ा गर्व है कि मैं हिंदुस्तानी हूं और अपने ही देश में रहता हूं। ये देश वाकई कमाल का है। यहां के लोग बड़े सहिष्णु होते हैं। यहां पत्थरों को भगवान समझकर पूजा जाता है। आप क्या सोच रहे हैं। हम भाट नहीं हैं। देश की स्तुति भी नहीं कर रहे हैं। वाकई ये सच्चाई है कि अपना देश महान है। इस देश ने गांधी को जन्म दिया है, तो भगतसिंह को भी। यहां शांति और पौरुषता का अनोखा मेल देखने को मिलता है, जो पूरी दुनिया में कहीं नजर नहीं आता। पूरी दुनिया हमें घूरने मतलब घूमने आती है। उनकी यहां की दिलकश जगहों को देखने की बजाय यहां रहने वालों में ज्यादा दिलचस्पी है। उन्हें आश्चर्य इस बात पर है कि किस तरह हर तरह के संकट से जूझते हुए हम खुशी-खुशी अपनी-अपनी जिंदगी में मगन रहते हैं।

हम जब-जब इन विदेशी पर्यटकों को देखते हैं, तो सोचते हैं कि ये आखिर खाते क्या हैं। खा-पीकर बिल्कुल सांड रहते हैं। क्या आपने कभी कोई ऐसा विदेशी देखा है, जो मरियल हो, बीमार दिखाता हो। तो हम तो उन्हें देखकर डर जाते हैं कि कहीं अगर किसी दिन किसी विदेशी ने गलती से हमारे कंधे पर हाथ रख दिया, तो उस दिन तो सीधा खड़ा रहना ही मुश्किल हो जाएगा। जिस जगह पर हमें ये नजर आ जाते हैं, हम तो दस फुट दूर खिसक लेते हैं। इसका यह मतलब कतई नहीं कि हम कमजोर हैं। ये तो हमारा सीधापन है जी। वरना... हम तो...। अब रहने भी दीजिए।
वैसे हम अगर किसी से डरते हैं, तो एकमात्र अपनी बीवी से। रोज हमारी बीवी खुद को आस्ट्रेलिया समझकर हम पर हमला बोल देती है, पर हम आह तक नहीं भरते। उसके शस्त्र बदलते रहते हैं, पर हमारी खाल तो वही रहती है ना। पिटते-पिटते तो एक बार गधा भी अपने मालिक को दुलत्ती मारकर भाग छूटता है और एक हम हैं कि बस पिटे जाते हैं। यूं तो पिटने और पीटने में बस एक मात्रा को उल्टा-सीधा करने की देर रहती है। पर यह कदम पता नहीं, हम आज तक क्यों नहीं उठा पाए? जब भी मात्रा को बड़ा करने की कोशिश करते हैं, छोटी मात्रा की मात्रा हम पर इस कदर हावी होती है कि पूरा शरीर दर्द से कराहने लगता है। हम भी आस्ट्रेलिया रहने वाले भारतीय स्टूडेंट्स की तरह थोड़ा-सा हल्ला-गुल्ला मचाकर शांत पड़ जाते हैं और हमारी बीवी के हौसले बढ़ते ही जाते हैं। आप समझ रहे हैं ना कि हम क्या कह रहे हैं।
मेरा एक दोस्त आस्ट्रेलिया में रहता है। कुछ दिनों पहले उसका फोन आया। कहने लगा कि यार हम हिंदुस्तानी क्या इतने कमजोर हैं कि हर कोई हमें तंग करके चला जाता है और हम देखते रह जाते हैं। ये आस्ट्रेलिया के गोरे पता नहीं अपने आप को समझते क्या हैं? आज दुनिया कहां की, कहां पहुंच गई और ये अभी भी काले-गोरे के चक्कर में फंसे हुए हैं। मैंने उसे समझाया और कहा कि पिटते तो हम भी हैं। वो बोला कि तुम पिटते हो और हमारी तो धुनाई ही हो जाती है। हम उससे पिटाई और धुनाई का अंतर पूछने लगे, तो वो बात घुमा गया और दुखी होने लगा। हमने उसे शांत करने के लिए लगे हाथ एक कहानी सुना डाली।
कहानी दरअसल यूं है कि एक बार भगवान ने सोचा कि क्यों ना मैं भी रोटी सेक कर देखूं। उन्होंने रोटी बेलना शुरू किया। जो पहली रोटी उन्होंने तवे पर सेकी, वो एकदम जली हुई थी। तब भगवान ने दूसरी रोटी सेकनी शुरू की। दूसरी रोटी अच्छी सेकने के चक्कर में वो कच्ची ही रह गई। तब आखिर में जाकर भगवान ने एकदम परफेक्ट रोटी सेकी। ना जली हुई और ना ही कच्ची। फिर भगवान ने रोटियां जमीन पर फेंक दीं। जली हुई रोटी जहां गिरी, वहां अफ्रीका बन गया। जहां कच्ची रोटी फेंकी, वहां इंग्लैंड जैसे देश बस गए और जहां एकदम गेहुंआ रोटी गिरी, वहां हिंदुस्तान बस गया। मतलब साफ है कि जहां साफ-सुथरे, गेहुंआ लोग रहते सकते हैं, वो जगह हिंदुस्तान ही है। तो ये कहानी सुनकर हमारा दोस्त भी मान गया वाकई हिंदुस्तानियों का कोई मुकाबला ही नहीं हो सकता। अब अगर आस्ट्रेलिया में हम पर हमला होता है, तो हमें खाली हाथ पर हाथ धरे तो बैठा नहीं रहना चाहिए। कब तक हम हमले सहते रहेंगे, संसद पर हमला हुआ, तो क्या हुआ था। मेरे देश के कर्णधारों, कम से कम इस बार तो उन्हें बता दो, वो पढऩे के लिए आए हैं, उनकी रक्षा करो। वैसे हमें लगता है कि जब आस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम ही हमारे भज्जियों को भाजी बनाकर खा जाती है, तो ये तो देश का मामला है, इसमें वो कोई कोर-कसर थोड़े ही रखेंगे। हमें तो पूरा शक है कि जहां-जहां हिंदुस्तानी स्टूडेंट्स पर हमले हुए, उन कॉलोनियों में जरूर ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट टीम के सदस्य भी रहते होंगे। क्या पता खेल-खेल में 'खेलÓ कर गए हों।
घर जाकर जब हमने बीवी को ये सारी बातें सुनाईं, तो भड़क गईं। वो बोली कि तुम भी किस मिट्टी के बने हो। पिटाई और धुनाई का अंतर नहीं समझ पाए। वो कहने लगी कि गलती मेरी ही है। मैंने ही कभी तुम्हें धुनाई से रूबरू नहीं करवाया। चलो आज तुम्हें धुनाई से मिलवा ही देती हूं। फिर जो उसने मेरा हाल किया, वो मैं अभी आपको बता नहीं पाऊंगा। दरअसल मैं बड़ा कमजोर दिल इंसान हूं। हो सकता है कि बताते-बताते रोने लगूं। पर उस धुनाई से मुझे पता लग गया कि पिटाई और धुनाई में बेसिक अंतर क्या होता है। आप भी जानना चाहते हैं, तो लीजिए सुनिए। पिटाई तो वो है, जो किसी बात पर की जाए। सामने वाले को बताकर की जाए। जबकि धुनाई तभी की जाती है, जब कोई वजह तो होती नहीं है, बिना कारण से बस खुन्नस निकाली जाती है और सामने वाले की एक भी सुनी नहीं जाती। यही सब तो आस्ट्रेलिया रहने वाले मेरे भारतीय दोस्तों के साथ हुआ है। चलिए, अब ये बात अपने तक ही रखना, किसी को बताना मत। वरना मैं पिटाई या धुनाई कुछ भी कर सकता हूं।
-आशीष जैन

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6 comments:

  1. भाई आशीष जी
    जय हिंद
    मजा आ गया आपकी धुनाई पढ़ के
    हम जो कुछ हैं ,हम जैसे हैं ,वैसे ही दिखाई देते हैं
    गालों पर भभूत नहीं मलते ,हम काले बाल नहीं करते
    निज आन-मान -मर्यादा का नित ध्यान रहे , अभिमान रहे
    अगर आप अपने अन्नदाता किसानों और धरती माँ का कर्ज उतारना चाहते हैं तो कृपया मेरासमस्त पर पधारिये और जानकारियों का खुद भी लाभ उठाएं तथा किसानों एवं रोगियों को भी लाभान्वित करें

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  2. धुनाई पिटाई पुराण अच्छा लगा पर ऐसा केसे हो सकता है कि मै ये बात पचा लूँ और आपकी बीवी को ना बताऊं

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  3. पिटाई और धुनाई में बेसिक अंतर नहीं है पर इनके तरीको में अंतर जरुर हो सकता है .

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  4. क्या बात है!! बहुत बढिया व सही अंतर बताया।बस मिडिया वालो को बताना भर शेष है कि पिटाई नही धुनाई हो रही है:))

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  5. बहुत बढ़िया भाई,
    आखिरकार पता चल ही गया दोनों के फर्क का ना!
    बड़े भोले हो, दोस्त! साईनाईड का स्वाद पता करने के लिये उसे चखने की क्या जरुरत थी?
    पिटाई और धुनाई का फर्क हमसे पूछ लेते, हम बता देते। हमें दोनों का बड़ा पुराना अनुभव है। :)
    मजेदार पोस्ट।

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