22 May 2009

जय जुगाड़ बाबा की

युगों-युगों से मैं काम करता आया हूं। मेरे पास हर मर्ज की दवा है। मुफ्त की सलाह दे रहा हूं- आज के दौर में अगर मौके-बेमौके सफलता चाहिए, तो अपनी जेब में मेरे नाम की पुडिया रखनी ही पड़ेगी। जो मेरे नाम का प्रसाद नहीं चढ़ाता, उसका कभी भला नहीं होता। तो बोलो, जय जुगाड़ बाबा की।

राम-राम सा। कैसे हो? सब कुशल से है कि नहीं। क्या कहा, परेशान हो, कुछ सूझ नहीं रहा। तो भैया मुश्किल में हमें क्यों बिसरा रहे हो। अब तक याद काहे नहीं किया। हम हैं ना हर मर्ज की दवा। हमें भूल गए क्या? तुमारी कितनी बार मदद की है। कितनी बार संकट से उबारा है। कितनी बार तुमने हमारी वजह से घर बैठे-बिठाए वाहवाही लूटी है। हमें पता था कि समय फिरते ही तुम हमें भूल जाओगे। अब देख लो, अपना हाल। हमारे नाम का प्रसाद नहीं चढ़ाओगे, तो ऐसा ही होगा। मैं तो हमेशा से ही कहता हूं कि हर काम करने से पहले सोच लिया करो कि हमें याद किया कि नहीं। क्या कहा- समझ नहीं आ रहा, हम कौन हैं। अरे हमें पता है तुम्हारी याददाश्त कमजोर पड़ गई है। चलो, हम ही बताय देते हैं। हम हैं जुगाड़।

तुम इंसानों ने ही तो पैदा किया था हमें। तुम्हारा तो शुरू से ही मंत्र रहा है कि सीधी उंगली से घी ना निकले, तो जुगाड़ लगाकर घी निकालो। अब तुम्हें बस घी खाने से मतलब है जी। भूल गए, तुमने अपनी जिंदगी में मेहनत से कुछ हासिल नहीं किया। बस मेरी मदद से ही तो तुम बादशाह बन पाए हो। जुगाड़ बिठाकर ही तो तुम गली के गुंडे से शहर से नामचीन नेता बन बैठे थे। याद नहीं वो दिन, जब पूरे शहर में किसी को भी उल्लू बनाकर रुपए एंठने में तुम उस्ताद थे। एक दिन एक नेताजी को पलीता क्या लगाया, नाराज होने की बजाय खुश होकर उन्होंने कहा था- तुम में तो नेता बनने के सारे गुण मौजूद हैं। आ जाओ, हमारी पार्टी में और बन जाओ मोहल्ले के नेता। फिर तो तुम्हारी चल निकली। पूरे शहर में तुम्हारी नेतागिरी के चर्चे होने लगे। कोई काम ऐसा नहीं, जो तुम ना कर पाओ। पर भूलो मत, हर उल्टा-सीधा काम करने से पहले तुम मुझे ही तो याद किया करते थे। पार्टी की सरकार बनी, तो दाब-धौंस से जुगाड़ लगाया और अपने राजदुलारे घीस्या को पेट्रोल पंप दिलवा दिया। सिफारिश करके तुमने हाईकमान से टिकट पटा लिया और दारू बंटवाकर तुम संसद के गलियारों में चहल-कदमी करने लग गए। फिर मौका लगा, तो किसी दूसरी पार्टी का जुगाड़ लगाकर उसमें घुस गए। अब देखो ना, इस बार चुनाव हुए, तो दुबारा पुरानी पार्टी में आकर फिर जीत गए। मानना पड़ेगा, इंसानी जमात में मेरा जितना इस्तेमाल तुम नेता लोगों ने किया है, उतना शायद ही किसी ने किया हो। जुगाड़ लगाकर कर किसी तरह से अपना काम बनता और भाड़ में जाए जनता। यह तो तुम्हारे जीवन का सिद्धांत है भई। पर अब लगता है कि तुम्हें हमारी कद्र नहीं रही। पावर जो आ गई है, तुम्हारे पास। लेकिन तुमने हमारी खूब सेवा की है। इसलिए तुम्हारी परेशानी के बारे में सुना, तो हम ही चले आए। अब बता भी दो, क्या प्रॉब्लम है। मेरे पास है ना हर ताले की चाबी। क्या कहा- सरकार बनानी है। पर गणित पूरी नहीं बैठ रही। मन में डर है कि कहीं विपक्ष में ना बैठना पड़े। अरे, इतनी-सी बात और इतनी ज्यादा टेंशन। तुम भी क्या इंसान हो। इतना टाइम मेरे साथ रहे और कुछ नहीं सीखा। करना क्या है, बस बयान देते रहो। जो छोटे दल हैं, उन्हें पुचकारते रहो, सपने दिखाते रहो और जो तुम्हारे साथी-संगी हैं, उनसे कह दो-यह सब तो पॉलिटिक्स का हिस्सा है, सरकार अपनी ही बनेगी। निर्दलीयों को खरीद लो, मीडिया में सरकार बनाने की हवा फैला दो। किसी को अपनी पोल खुलने मत दो कि डर तो तुम्हें भी लग रहा है। अगर लोगों को तुम्हारा हौव्वा बना रहेगा, तो तुम जरूर सफल हो जाओगे। लो हो गया ना जुगाड़। पर अब से एक बात याद रखना- मुझे कभी मत भूलना, वरना दुबारा तुम्हारी कभी मदद करने नहीं आऊंगा। अभी तो चलता हूं और दीन-दुखियों की भी तो सेवा करनी है। जय राम जी की।
-आशीष जैन

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


No comments:

Post a Comment