22 May 2009

परिणाम को प्रणाम

सावधान रहिएगा। सुनते हैं, अब परिणामों का दौर है। किस्म-किस्म के परिणाम अब बाजार में नजर आएंगे। देखना ये है कि भरी गरमी में कौनसा परिणाम कुल्फी-सी ठंडक देगा और कौनसा अंजाम तूफान बरपाएगा।
लो भैया हो गया काम तमाम। सारी भागदौड़ पूरी। अब तो दिल धड़काने की बारी है जी। मन में तड़पन, तन में हलचल। आप ही बताएं, जब किसी काम को मन रमाकर करा है, तो उसका अंजाम जानने की तो सबको जल्दी रहती ही है ना। अंजाम मतलब रिजल्ट मतलब परिणाम।

परिणाम भी दसियों तरह के। कभी स्कूल की एग्जाम के परिणाम, कभी मैच का परिणाम, तो कभी चुनावों का परिणाम। ससुरे जितनी टेंशन ये एग्जाम नहीं देते, उससे चौगुनी तकलीफ तो मुए रिजल्ट देते हैं। काम करते वक्त हमारा दिल इतना नहीं धड़कता, जितना परिणाम सोच-सोचकर धड़कने लगता है। इन परिणामों से हम बचपन से पीडि़त हैं। कक्षा की परीक्षा के परिणाम आने वाले दिनों में तो हम घर से निकलना ही छोड़ देते थे। अब देश के इन चुनावों की बात भी क्या खूब है। महीना-डेढ़ महीना नेताजी के नाम से खूब नारे लगाए, खूब भाग-दौड़ की। अब सब गुल। अब वही कंगाली के फटेहाल दिन। नेताजी जीत गए, तो बल्ले-बल्ले और अगर किसी की गलत नजर चलते हार गए, तो कुछ नहीं बचेगा। क्या-क्या आस लगा रखी है। नेताजी जीत गए, तो बेटे को नौकरी मिल जाएगी। थोड़ी पहुंच बढ़ जाएगी। हर तरफ रुतबा बढ़ जाएगा। अब देखते हैं कि इन परिणामों की पोटली में क्या छुपा है। हमें छोडि़ए, आप तो नेताजी के घर का नजारा देखिए। सब लोग लगे हैं नेताजी को तसल्ली देने में। सब अच्छा होगा, आप देखना। अब तो चुनाव जीत ही गए, समझ लो। पर अपने नेताजी तो शुतुरमुर्ग की तरह बेफ्रिक। वे तो जीत का भरोसा तभी करेंगे, जब परिणाम हाथ में होगा। वे तो सोच-सोचकर परेशान हैं कि नहीं जीते, तो क्या होगा? वही तेल बेचने का काम दुबारा करना होगा। बेइज्जती होगी सो अलग। हालत तो यूं होगी- माया मिली, न राम। हमने तो नेताजी की खैर-खबर रखने वाले एक-दो मुलाजिमों को कहलवा दिया है कि चुनाव परिणाम के एक दिन पहले से ही डॉक्टर-वॉक्टर को घर बुलवा लेना। इसी में भलाई है। क्या पता नेताजी सदमा झेल भी पाएं या नहीं।
कल-परसों से तो गजोधर के परिणाम ने भी हमारा जीना हराम कर रखा है। गजोधर हमारा बेटा। इस साल मैट्रिक की परीक्षा दी थी। सोचा था कि टॉप करके हमारा नाम रोशन करेगा। पर हमें क्या पता कमबख्त क्रिकेट के पीछे पड़कर अपना मटियामेट कर लेगा। कहता था- बापू, अब मैं ही अगला सचिन बनकर दिखाऊंगा। खुशी-खुशी हमने उसे गेंद-बल्ला दिला दिए। अब नीपूता फेल हो गया। अब क्या करें? किससे अपना दर्द बयां करें? ये क्रिकेट तो हमारे नूरे चमन का कॅरियर ही चौपट करके रहेगा। भई, क्रिकेट की दीवानगी तो हमें भी है। पर इसका मतलब यह थोड़े ही ना है कि सपूत की तरह चौबीसों घंटे हाथों में गेंद-बल्ला लेकर घूमते रहें। पूरे मोहल्ले को सचिन बनने का सपना दिखाते रहें।
हां, तो हम बात कर रहे थे परिणामों की। बीस-बीस क्रिकेट हो रहा है ना दक्षिण अफ्रीका में। उसके भी रंग निराले हैं। इस बार तो अपने डेक्कन चार्जर्स पूरे चार्ज में दिख रहे हैं। धो डाला सबको। और तो और लगता है शाहरुख भाईजान तो सड़कों पर ही आ जाएंगे। खानभाई ने बड़े सपने देखे थे नाइटराइडर्स से। खूब पाला-पोसा। बुकानन की हर बात पर कान लगाया। दादा की कप्तानी छीन ली। पर ढाक के वही तीन पात। बाहर हो लिए खेल से। अब कौन इस बार आईपीएल का सूरमा साबित होगा, ये बात अच्छे-अच्छों को परेशानी में डाले हुए है। प्रीतो के गालों के डिंपल पर, शिल्पा के चेहरे की खुशी अब परिणामों को जानने को मचल रही होगी। सबने मिलकर पहले तो क्रिकेट को जलेबी की तरह-तरह गोल-मोल कर दिया। पता ही नहीं लगा कि कहां खेल है, कहां कमाई? अब सब हिसाब लगा रहे हैं, कैसे भागते चोर की लंगोट पकड़ें। ये सब देखकर हमें तो रास-रसैया, माखनचोर श्रीकृष्ण की याद आ रही है। क्या खूब कह छोड़ा गीता में, कर्म करो और फल की चिंता मत करो। अबसे हम तो भैया एक बात पक्के से गांठ बांध चुके, नेकी कर और दरिया में डाल कर। काम किया और चिंता मिटी। बाकी रामजी करेंगे बेड़ा पार। परिणाम के फेर में फंसे रहे, तो क्या पता करम भी सही कर पाएंगे या नहीं। लो, कह दी हमने भी लाख पते की बात।
- आशीष जैन

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