30 May 2009

जादूगर जनता

जब कभी इस भरी गर्मी में हम घर से बाहर निकलते हैं और बरसती लाय के बीच ठंडी हवा का झोंका चलता है, तो तन-मन में मस्ती का खुमार चढ़ जाता है। और मुंह से यही शब्द निकलते हैं, वाह! मजा आ गया। कुछ-कुछ ऐसा ही हमारे साथ ऑफिस में भी होता है। जब ऑफिस में काम के साथ रामप्यारेजी की प्यारी-प्यारी बातों का तड़का लग जाए, कहना ही क्या। दिन बड़ा सुकून से गुजरता है। सारी टेंशन भाग जाती है। पर कल तो गजब ही हो गया। रामप्यारेजी को ऑफिस आए, एक घंटे से ज्यादा हो गया और एक शब्द भी मुख से नहीं निकाला। आश्चर्य था भई। दरअसल सुबह से ही उनका मूड कुछ उखड़ा-उखड़ा सा था। हम तो मन ही मन सोचने लगे, रोज तो उनके पास कहने-सुनने को हजार बातें रहती थीं। आज क्या हुआ? जरूर पत्नी से मार खाकर आ रहे होंगे। या फिर बच्चों ने कोई ऐसी मांग सामने रखी होगी, जिससे इनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और जुबान पर लगाम लग गई।

या हो सकता है कि बोलने की वजह से रास्ते में हाथापाई हो गई हो। हम उनके नजदीक गए। बात करने की कोशिश की, लाख समझाया। पर उनके बोल सुनने को हमारे कान तरस गए। तभी ख्याल आया कि अभी कुछ दिन पहले ही तो चुनाव परिणाम आए हैं। कहीं नेता-नांगलों की तरह इन्हें भी तो हार का गम नहीं बैठ गया। हमने ऑफिस में सबको इकट्ठा किया और गीत गाने लगे, 'चुप चुप बैठो हो.... जरूर कोई बात है।Ó हमने ये गीत गुनगुनाया ही था कि रामप्यारेजी भड़क उठे। बोले, 'बात है ना, जरूर है। हम कब मना कर रहे हैं। पर क्या चुप बैठना कोई गुनाह है? ज्यादा बोलने के परिणाम अच्छे नहीं होते। बोलना ही अच्छे-अच्छों की बोलती बंद कर देता है।Ó हम बोले, 'अब तनिक बता भी दो, रामू भैया। क्या है वो बात। क्यों आपके कमल से सुंदर मुख पर बारह बज रहे हैं।Ó फिर तो अपने रामप्यारे भैया को जाने क्या सूझी कि पुराने टेपरिकॉर्डर की तरह चालू हो गए। बोले, 'हमारा दर्द जुड़ा ही बोलने से है। काश! वे इतना नहीं गुर्राए होते, तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता। हमने पूछा, 'किसकी बात कर रहे हो रामू? बताओ तो सही।Ó बोले, 'और किसकी बात करेंगे, अपन के भाई लोग, इन नेता लोगों की और किसकी। लालजी को भूल गए क्या। पहले-पहल दहाड़ लगाई और अब बैठे होंगे कहीं दुबक कर। बातें करते थे- प्रधानमंत्री बनने की। तिल का ताड़ बनाकर रख दिया। ख्वाबों के आसमान की सैर करा लाए। घर का पैसा वापस लाने का मंत्र दे दिया। कह दिया कि मैं मजबूत और बाकी सब मजबूर। जनता की भीड़ इकट्ठा कर ली। पर आज पहली बार लगा कि जादू का खेल देखने के लिए यूं ही पैसे खर्च करते थे। अपन के देश की जनता है ना, सबसे बड़ी जादूगर। पल में सारे सपनों को धोकर सच्चाई पेश कर दी। अब सब हारे हुए दिग्गज एक स्वर में कह रहे हैं कि हम उन्हें समझ नहीं पाए। अरे समझते कैसे। जनता तो पहले से ही सोचती आ रही थी कि क्या तुम नेता लोग ही हमें पागल बनाना जानते हो। अरे, अगर हमने तुम्हें नेता बनाया था, तो तुम्हें सांप सूंघाना भी आता है। क्या सोचा था, तुम्हारी सभाओं की भीड़ में शामिल हो लिए, तो इसका मतलब है कि वोट भी तुम्हें भी देंगे। अरे, हम तो एक बारगी देखना चाहते थे कि तुम्हारी बकवास बातों के पिटारे में शब्दों का कैसा मायाजाल छुपा है? हम तो पल में ही तय कर लेते हैं कि किसको राज सौपेंगे। और ई ससुरे चंगू-मंगू। हम बनेंगे प्रधानमंत्री। अरे अपने राज्य में तो सीट बचाना मुश्किल हो गई और सपने देखने लगे थे- प्राइम मिनिस्टर बनने के। और ये उलटे चलने वालों ने तो क्या खूब की। जुट गए खुद को बुद्धिजीवी साबित करने में। पर उनके दिमाग के सारे पेंच ममता दीदी ने ढीले कर दिए। हद होती है जुबान की। बस बोलने की काम। उल्टा-सीधा जो मन में आए, बस बोले जाओ। अरे, पहले देखो। फिर जानो। फिर समझो और तब जाकर कुछ बोलो। जनता हर शब्द के पीछे छुपे अर्थ को तौलती है। क्या समझा था। बातों से चुनाव जीत जाएंगे। भई, विकास भी किसी चिडिय़ा का राज है। इनको समझाए कौन कि अब ये देश युवाओं का है। जो युवाओं के मन की बात करेगा, वही तो उनका दिल जीत पाएगा। अब अपने राहुल बाबा समझ गए, इस राज को। खेल ली बाजी यू.पी. में। भिड़ गए कथित सूरमाओं से और अब तो जोश आ गया है राहुल बाबा में। अब तो कह दिया कि जब तक पूरी यूपी फतह ना कर लें, दम नहीं लेंगे। एक बार कह दिया और बस लग गए। यह तो हुई कुछ बात।Ó रामप्यारेजी को यूं धाराप्रवाह बोलता देख कुछ चैन मिला। लगा कि अब पूरा दिन मजे से गुजरेगा। दिल से बस यही दुआ निकलती है कि रामप्यारे बस यूं ही खरी-खरी बोलते रहें और हम सदा यूं ही अपनी ज्ञान वृद्धि करते रहें।
-आशीष जैन

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