30 May 2009

चीते पस्त लंका मस्त

कल ही बात है। पप्पू हमारे बगल में अपनी किताब खोलकर बैठ गया और अपना पाठ दोहराने लगा- चीते में बड़ी फुर्ती होती है। वो बहुत तेज दौड़ता है। हमने पूछा- बेटा, क्या चीते को कोई नहीं पकड़ सकता? कहां लिखा है ये? वो बोला- और कहां लिखा होगा, मेरी किताब में लिखा है और किताब में लिखी हर बात सही होती है। उसकी बात सुनकर हमने चुप्पी साध ली। और आज जब अखबार खोलकर देखा, तो पता लगा- अरे! ये क्या चीते पस्त हो गए। लंका की सेना ने प्रभाकरन का सफाया कर दिया। धो डाला लिट्टे को। चुन-चुनकर मारा लिट्टे के लोगों को। फिर हमने अपने मुन्ना को भी यह खबर पढ़वाई कि देख बेटा, जो चीता हमेशा जीता, वो आज लंका के चपेटे में आ गया है।

चलो, इससे एक बात तो तय हो गई कि ये ससुरे आतंकी चाहे कितना ही कहर ढहा लें, पर अगर हम डटे रहें, तो जीत भी हमारी ही होगी। मानना पड़ेगा लंका के राष्ट्रपति का हौसला और फैसला। सारी दुनिया एक तरफ और खुद की मर्जी एक तरफ। हार नहीं मानी, कह दिया पूरी दुनिया से- ये हमारे घर का मामला है। हमें भी चिंता है हमारे लोगों की। अब आगे बढ़े हैं, तो घर की पूरी सफाई करके ही दम लेंगे। जंच गए महेंद्राजी, दम तो है बात में। अब तमिलों को भी तो यकीन दिलाओ कि उन पर किसी तरह का जुल्मोसितम नहीं होगा। उन्हें हर वो अधिकार मिलेगा, जिसके वे हकदार हैं। हमें यकीन है कि एक मोर्चे पर अगर लंका ने जीत हासिल की है, तो फिर तमिलों को संतुष्ट करने में भी सरकार जरूर सफल हो जाएगी।
अब बारी है उस कमबख्त पाकिस्तान की। कोई उसे भी तो समझाओ। उसने अपने ही घर को पापीस्तान बना रखा है। खुद जिस डाल पर बैठा है, उसी को काट रहा है। दुनिया कहां की कहां पहुंच गई और वो ही अब भी जिए जा रहा है आदमयुग में। ना तो वो तलवार से डरता है और ना ही किसी तकरार से। अपनी मर्जी से चले जा रहा है। पर क्या करें, उसकी आदतों से हमें तो फर्क पड़ता है ना! नाक के नीचे तालिबानी काका उधम मचा रहे हैं और उन्हें दुत्कारने की बजाय पुचकार और रहे हैं। कल को वे तालिबानी स्वात के बाद दिल्ली फतह की सोचने लगे तो? अमरीका से ले लिया पैसा और कह दिया कि कर देंगे सफाई तालिबानियों का। अरे, अब हमें कोई ये बताए कि क्या ये पूरा मसला पैसे के चलते अटक रहा था क्या? खुद में हिम्मत हो, तो छोटी-सी फौज के आगे ना टिक पाएं, ये तालिबानी। यूं तो खबरें आ रही हैं कि तालिबानी संकट में हैं। पर आज तक पाक ने एक तस्वीर भी जारी की है, किसी तालिबानी की लाश की? इससे बढिय़ा तो पानी में तैरता लंका ही बढिय़ा। कम से कम प्रभाकरन की तस्वीर तो पेश कर दी और बता दिया कि जो टाइम उन्हें मिला था, उसमें आतंक का पूरा सफाया भी कर दिया है। भगवान झूठ ना बुलाए, पर हमें तो यह अमरीका के गाल पर करारा तमाचा लगता है भई। जो अमरीका अभी तक ग्यारह सितंबर के मुलजिम ओसामा बिन लादेन के बारे में यही पता नहीं लगा पा रहा कि वो जिंदा है या मर गया! वो क्या खाक आतंक का खात्मा करेगा?
और हम क्या खास कर रहे हैं आतंक के सफाए के लिए? क्या सिर्फ कसाब को पाकिस्तान नागरिक मनवा लेने से पाकिस्तान आतंक खत्म कर देगा। दीजिए उन्हें कसाब के डीएनए की रिपोर्ट? पर आखिर कोई तो हमें बताए कि क्या कछुआ चाल से चलते-चलते हम पाकिस्तान को कूटनीतिक पराजय दे पाएंगे? हम तो सिर्फ खड़े-खड़े देख सकते हैं। तस्लीमा नसरीन को देश से भागना पड़े, पर हम सिर्फ आश्वासन देते रहेंगे। यही हाल तो सलमान रुश्दी और एमएफ हुसैन का है। जी रहे हैं किसी और दुनिया में। लोगों को इस देश से बहुत आशा है। राहुल बाबा युवाओं को आगे आने की कह रहे हैं, पर राहुलजी एक बार इन युवाओं के भीतर उफनते सैलाब को तो देखें। कैसे उनके सामने उनके बड़े धर्म और जाति के नाम पर मरने-मारने को उकसा रहे हैं! ना रोजगार है और ना ही भविष्य को लेकर सपना। बस एक भीड़ बन चुके हैं युवा। अंदर की ताकत झूठे दिखावे में खर्च हो रही है। कोई भी टटपूंजिया उनका भाग्यविधाता बनने के सपने दिखाने लगता है। ऐसे में क्या हम सोच सकते हैं कि युवा शक्ति एकत्र होकर कोई बदलाव कर पाएगी। हां, ये जरूर संभव है कि अब इन्हीं युवाओं में से कोई युवा हिंदुस्तानी प्रभाकरन का चोला पहन ले और किसी भी मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों ले। हमें सोचना है। अब खाली बैठने का नहीं, कुछ करने का समय है। लंका को देखकर तो कुछ सीख लो, मेरे देश के भाग्यविधाताओं।
-आशीष जैन

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