31 May 2009

आईपीएल की बल्ले-बल्ले

हो गई है बल्ले-बल्ले... हो जाएगी बल्ले। मजा आ गया जी। अरे कोई जीते, कोई हारे हमें इससे क्या जी। हमें तो मजा इस बात में आया कि जिसे सबने लल्लू समझा, उसने सबकी हेकड़ी निकला दी। बता दिया कि बादशाह बनने के लिए शोर मचाने की नहीं, हुनर की जरूरत होती है। अब लल्लाजी मुंह फुलाए क्यों बैठे हो। मुंह फुलाने से कौनसा हार जीत में बदल जाएगी। हमने तो कहा था ना कि बादशाह हमेशा बाद में ही नजर आता है। अरे वो क्या खाक शहंशाह जो अपने मुंह खुद मियां मिट्ठू बन जाए। शहशांह तो शह और मात के बीच में अपने असली मोहरों को आखिरी दांव के लिए बचाकर रखता है। अब देख लीजिए ना किसने सोचा था कि डेक्कन चार्जर्स सबको डिसचार्ज करके रख देगी। कमाल कर दिया ना। जीत लिया ना दूसरे आईपीएल का खिताब। आईपीएल चाहे दक्षिण अफ्रीका में हुआ, पर कसम से हमें तो शुरू से ही लग रहा था कि इस बार कुछ ऐसा होगा कि पूरी दुनिया देखा करेगी।

और हमारे लिए ये नई बात नहीं है। कल तक हमारी गली में एक गुंडा था, गणेशा। सब पर अपनी दाब-धौंस दिखाता था। कहता था कि कोई मुझसे भिड़कर तो देखे, हाथ-पांव तोड़कर रख दूंगा। सब सोचते थे कि ये आफत की जड़ तो अब हमेशा बनी रहेगी। हमारे पड़ोस में भोलारामजी रहते हैं। उनका किसी से कोई लेना-देना नहीं, बस अपने काम में लगे रहते हैं। सबसे अच्छा बोलते हैं, सुबह नौकरी करने जाते हैं और रात को घर आकर सो जाते हैं। कल पता नहीं गणेशा को क्या सूझा। उसने अपनी मोटरसाइकिल से भोलारामजी की साइकिल में जोरदार टक्कर मार दी और ऊपर से भोलाजी से गाली-गलौच करने लगा। भोलाजी जो कल तक गणेशा की दादागिरी को सहन करते आए थे, उन्होंने जो गणेशा को धोया, पूछिए मत। पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया गणेशा की मार देखने के लिए। अब गणेशा मोहल्ले में चूहा बनकर रहता है और भोलारामजी मोहल्ले के हीरो बन गए हैं।
अरे, आज के टाइम ना तो कोई हीरो है और ना ही सुपरहीरो। थोड़ा-सा जोर लगाओगे, तो अच्छे-अच्छों को मिट्टी सुंघा दोगे। डेक्कन ने भी तो धोनी के धुरंधरों से लेकर सचिन के करामातियों तक, सबको ढेर कर दिया। पिछली बार की हार से सबक लिया, देखा कि कहां हुई चूक। फिर लगे रहे चुपचाप अपने खेल को धार देने में। और कमाल देखिए, खेल-खेल में सबको चलता कर दिया। सबकी बोलती बंद दी। कमेंटेटर से लेकर टीमों के मालिक, दर्शकों से लेकर भविष्यवक्ता सब भौचक। जैसा जलवा पिछली बार राजस्थान के रॉयल्स ने किया था, कुछ-कुछ वैसा जादू ही, इस बार डेक्कन चार्जर्स ने किया। राजस्थान की टीम को पिछली बार कोई तवज्जो नहीं दे रहा था। पर शेन दादा ने अपने खेल से, अपनी कोचिंग से बता दिया कि मिट्टी भी सोना उगल सकती है। सिर्फ नाम से कुछ नहीं होता। नाम के साथ जब तक काम का तड़का नहीं लगेगा, स्वाद नहीं आएगा। प्रीतो से लेकर किंग खान और माल्या साहब से लेकर शिल्पा, सब दुखी हैं। अपना दुख किससे बांटे। क्या-क्या मोड नहीं आए खेल में, हर मोड पे अपने खिलाडिय़ों का साथ दिया। मीडिया को लगातार खबरें देते रहे। ब्लॉग पे, अखबार में, गली में, मोहल्ले में, चाय की थड़ी से लेकर पनवाड़ी की दुकान तक, हर जगह क्रिकेट से ज्यादा इनके जलवाकारों की बातें। कभी शाहरुख बोले कि प्रीति जिंटा और शिल्पा शेट्टी ने अपनी-अपनी पहली फिल्में मेरे साथ ही कीं। मैं पहले से ही हर हुनर जानता हूं। टीम तो कोलकाता की ही जीतेगी। गांगुली भाई को कप्तानी से हटाकर कोच बुकानन तो चार-चार कप्तानों की थ्योरी ले आए। पर ये बस भूल गए कि मैच थ्योरी से नहीं प्रेक्टिकल से जीते जाते हैं। मैदान में जब इक्कली गेंद के पीछे भागना पड़ता है, तो अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं।
तू-तू मैं-मैं करने से सस्ती पब्लिसिटी तो मिल जाती है, पर जीत हासिल नहीं होती। हम बात क्रिकेट की क्यों करें, अरे फ्रेंच ओपन पर ही नजर डाल लीजिए, क्या 22 साल की उम्र। हर कोई कहेगा कि इस उम्र में तो नौजवान सिर्फ सपने देखते हैं। और एक अपना नडाल भाई है, जो इस बार लगातार पांचवी बार खिताब जीतने की सोच रहा है। मेहनत करता है बंदा। क्ले कोर्ट में उसने जितना पसीना बहाया है, शायद ही किसी के बूते हो। जीतेगा क्यों नहीं। हमें पता है कि जब पिछले साल उसने ब्योन भाई के चार बार लगातार फ्रेंच ओपन जीतने का खिताब तोड़ दिया, तो फिर इस बार भी कमाल करके दिखाएगा। अब हम तो अपने देश के खिलाडिय़ों को यही सलाह देंगे कि ज्यादा ख्याली पुलाव मत पाला करो। पसीना बहाया करो। यह नहीं कि एक बार शतक ठोक दिया और फिर गई साल-दो साल की। मियां, आज के दौर में टिकना है, तो लगातार खुद को चलता सिक्का साबित करना होगा। वरना ये जनता तुमको चलता कर देगी।
-आशीष जैन

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